* इस बर्ष 13 से 15 दिसम्बर…फिर ले चलते हैं आगराखाल से कसमोली की यात्रा पर।
(मनोज इष्टवाल)
आगरखाल जिसे हम आगराखाल सम्बोधित करते हैं। यहाँ आगरा से आया कोई अग्रवाल व्यवसायी कभी बसा हो ऐसा मेरे संज्ञान में नहीं हैं, भले ही मैं बहुत उत्सुक हूँ कि इस नामकरण की वजह क्या रही होगी? विगत बर्ष से कसमोली आगरखाल थौळ के नाम से यहाँ के दो युवाओं ने एक अद्भुत मेले का यहाँ आयोजन शुरू किया है, जिसमें वाइल्ड वे साईक्लिट, ट्रैकर्स व ग्रामीण शामिल होते हैं और फिर कसमोली का मुख्य आकर्षण गगनचुम्बी पतंगे होती हैं।
आइये कसमोली आगरखाल थौळ के सूत्रधार उन लोगों को चिन्हित करते हैं जिन्होंने इस ‘थौल’ की रूपरेखा को तैयार किया। यूँ तो व्यवसायी व पत्रकार सुरेन्द्र सिंह कंडारी से हमारा हल्का फुल्का टिहरी आवत-जावत का परिचय था व फेसबुक हमारे परिचय का अच्छा माध्यम इसलिये बना कि हम समान विचारक हुए। 23 अगस्त बर्ष 2016 में एक दिन अचानक मित्र कुम्मी घिल्डियाल जोकि टीएचडीसी टिहरी में तब अकाउंट अफसर हुआ करते थे, का फोन आया बोले – जीजा जी आप जहाँ हो जैसे हो अभी आगराखाल पहुंचो बहुत गंभीर चर्चा करनी है। यहाँ आपके मित्र गजेंद्र रमोला व सुरेन्द्र सिंह कंडारी जी के साथ बैठना है। तब पत्रकार मित्र शिव प्रसाद सती व नवीन के साथ सती जी की कार से हम आगराखाल के लिए निकले।
आगराखाल में तब मित्र सुरेन्द्र सिंह कंडारी के बड़े भाई कांग्रेसी नेता वीरेंद्र सिंह कंडारी जी से मुलाक़ात हुई और फिर चर्चाएं शुरू हुई। कुम्मी घिल्डियाल ने बैग से लाल हैट निकाली व मेरे सिर में सुशोभित कर मुझे सम्मानित किया। चर्चा को विस्तार मिले इससे पहले ही आगराखाल से ही कुछ आगे हाईड प्लेस पर सड़क के निचले छोर पर बने एक शानदार होटल में हम गए जहाँ शानदार जश्न के बीच कसमोली नामक स्थान पर चर्चा हुई जो गजेंद्र रमोला व सुरेन्द्र सिंह कंडारी जी का गाँव हुआ। बात ककड़ी, हल्दी, अदरक जो आगराखाल में बिकने आता था उससे शुरू हुई और योजना बनी कि हम अगली सुबह गाँव भ्रमण की जगह कसमोली टॉप भी जाएंगे व कुछ वृक्षों का रोपण करेंगे। अगली सुबह हम यहाँ पहुँचे तो फिर कसमोली डांडा का जन्म हुआ कसमोली बुग्याल के रूप में….।
बर्ष 2017- 18 में यहाँ हमने पर्यटन के रूप में इसे चिन्हित करने का भरसक प्रयास किया। मुझे लगा कि अब बहुत हुआ। झंडीधार व कसमोली बुग्याल के सौंदर्य पर मेरे द्वारा लिखे लेखों ने कई ट्रैकर्स व पर्यटकों का ध्यान तब इस ओर खिंचा लेकिन हमारे पर्यटन विभाग ने तो यहाँ झांकने की भी हिमाकत नहीं की। इसके सम्मोहन ने यकीनन मुझे इसलिए निराश किया क्योंकि मैं आशान्वित था कि इस सुलभ स्थान को उत्तराखंड पर्यटन विभाग हाथों-हाथ संज्ञान लेगा व इसके विकास का मॉडल खड़ा करेगा लेकिन ढाक के तीन पात…।
निराश मैं था…भला ये जिद्दी युवा कहाँ मानने वाले थे। बर्ष 2019 में भी इन्होने मुहिम जारी रखी लेकिन 2020 से लेकर 2022 कोरोना काल ने चौपट कर डाला और 2023 में फिर इन्हीं के प्रयास से जन्मा आगराखाल थौल 2023….।
आइये जानते हैं क्या ख़ास है कसमोली में..!
प्रकृति ने अपना बेपनाह हुश्न यहाँ लुटा रखा है। पहले आगराखाल से यहाँ तक लगभग 05 किमी. ट्रैक करके पहुंचना पड़ता था लेकिन वर्तमान में यहाँ तक सड़क मार्ग बन गया है। कसमोली गाँव क़ृषि प्रदान गाँव है, जहाँ लोग प्रतिबर्ष अपने अदरक, अखरोट, माल्टा, हल्दी, पिंडालु (गागली), ककड़ी व मुंगरी (भुट्टे) टमाटर इत्यादि के उत्पादन से लाखों रूपये बाजार से कमाया करते हैं। यहाँ की मोटी दालें भी खूब प्रचलन में हैं लेकिन फिर भी यहाँ के इन दो युवाओं (सुरेन्द्र सिंह कंडारी /गजेंद्र रमोला) के दिलो-दिमाग में कसमोली गाँव के ऊपर डांडा व उस से लगी बरसाती झील का आकर्षण कायम था वे इस उधेड़बुन में थे, कि इसके विकास हेतु किस दृष्टिकोण को अपनाया जाय? शायद यही कारण भी था कि हम अगले दिन कसमोली बुग्याल थे। कसमोली क्या है, तो मेरे पास यहां के प्राकृतिक नजारों को बताने के लिए शब्दों की कमी पड़ जाएगी। तभी तो हम आपको आमंत्रित कर रहे हैं आगरखाल से कसमोली के ट्रैक पर, जहां से आप देखेंगे वो नजारे….., जो शायद पहले कम ही देखे होंगे। कसमोली के बुग्याल से विंटर लाइन देखिए, पहाड़ की संस्कृति को जानिए, प्रकृति की गोद में बैठकर पता लगाइए, वो कौन चित्रकार है…,जिसने रचा यह रंग बिरंगा संसार है।
क्या ख़ास है आगराखाल में…!
आगराखाल की बात करें तो यह टिहरी ही नहीं अपितु उत्तरकाशी व सेम मुखेम पहुँचने का मुख्य मार्ग हुआ। यहाँ पहुँचने पर सीजन की सब्जियाँ, दालें न लेकर कोई लौटे तो फिर बात ही क्या है। यहाँ आकर वेजिटेरियन लोग छोले और मांसाहारी भुटवा न खाएं भला ऐसे कैसे संभव होगा। यहाँ की रबड़ी और अरसे के तो पूरे हिन्दुस्तान में चर्चे हैं। आगरा खाल टिहरी गढ़वाल के कई गांवों का बाजार है, जिसे आप गांवों की लाइफ लाइन कहें तो ज्यादा शानदार होगा।
इस बार क्या ख़ास है आगराखाल-कसमोली थौळ में?
थौळ शब्द मूलत: मेला से जन्मा वह पहाड़ी शब्द है जिसकी मिठास पहाड़ी अंतस को परिभाषित करती है। विगत बर्ष की भांति इस बर्ष भी इस थौळ में रंगारंग कार्यक्रम होंगे। इस बार स्कूली छात्र छात्राएं अपनी लाजवाब प्रस्तुतियाँ देंगे। आकर्षण का मुख्य केंद्र ग्रामीणो के लिए वे रंग बिरंगी पतंगे होंगी जो आसमान छूने को लालायित होंगी। वहीं सैलानियों, पर्यटकों, ट्रैकर्स व साईक्लिटस के लिए इस मखमली बुग्याल की गुदगुदाहट में समाहित प्रकृति के नजारे व सुदूर तक फैली चोटियों का आभामंडल होगा तो ढलती शाम में यहाँ की विंटरलाइन की वानगी के साथ ठंड की झुरझुरी के साथ बोन फायर के पास चाय कॉफ़ी की प्याली में ढ़ोल दम्मो व पंडो नृत्य की ठसक…। बातों की भसक में हंसी की फुहारें होंगी.. हो न हो कहीं बर्फ के गिरते रोंयें आपका स्वागत करें।
गजेंद्र रमोला बताते हैं कि इस बार 13 शाम को साईक्लिटस का जत्था ऋषिकेश की गंगा आरती में शिरकत कर ध्यान व योग का साथ माँ गंगा के पवित्र जल का आचमन कर अगली सुबह आगराखाल के लिए रवाना होगा। जहाँ दोपहर का भोजन कर यहाँ से वाइल्ड वे से कसमोली बुग्याल थौळ के लिए रवानगी भरेगा व वहाँ की प्रकृति को आत्मसात करेगा।
मुझे लगता है इस बर्ष दो माह बाद आयोजित होने वाले इस थौळ के लिए हमें ज्यादा ऐतिहात की आवश्यकता होगी क्योंकि ठंड चरम पर है इसलिए गर्म कपड़ों की व्यवस्था के साथ इस थौळ में शिरकत करने पहुँचे।