(मनोज इष्टवाल)
दो दिन पूर्व की ही बाद तो है..! हमारे अजीज मित्र “गढ़ बैराट” के संपादक भारत सिंह चौहान जी का फोन आया। वे इतने प्रफुल्लित थे कि मानो ख़ुशी का कोई ठिकाना न हो। बोले – इष्टवाल जी आज 35 बर्ष बाद जौनसार बावर का परिवार जो आपसी बंटवारे में बंट गया था, पुन: एक हो गया है। मैं अभी बिजनु गाँव के उसी घर में हूँ। मैंने उन्हें शुभकामनायें तो दी लेकिन यह समझ नहीं आया कि आखिर ऐसे संभव हो कैसे सकता है क्योंकि जौनसार बावर की लोक परम्परा में जब “ओड़ा लाणा” परम्परा शुरू हो जाती है तब पुन: एक परिवार में तब्दील होना मुश्किल काम है। 35 बर्ष यानि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी की बात….!
विगत दिन सोशल साइट पर नजर दौड़ाई तो पाया कि उत्तराखंड सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में संयुक्त निदेशक पद पर कार्यरत जौनसार बावर क्षेत्र के केएस चौहान जी ने ट्वीट किया है “मैरै गाँव की बाट “ जौनसार बाबर के बिजनू गांव में 35 वर्ष पूर्व हुआ था परिवार का बंटवारा l आज पुनः एक हुआ परिवार l शानदार पहल..!
वैज्ञानिक डॉ लीला चौहान अपनी सोशल साइट पर लिखती हैं “पिता बंटे और बेटों ने 35 साल बाद बंटे हुए परिवार को एक कर दिया। हमारे पड़ोसी गांव बिजनू में नरेंद्र भाई साहब जो बेहद सुलझे, सरल , मददगार,समाजिक व्यक्ति है, जिन्होंने अपने बंटे हुए परिवार के छोटे भाई विरेश और अन्य लोगों के साथ सामंजस्य बनाया और परिवार को एक कर दिया। इस ऐतिहासिक कार्य के लिए नरेंद्र भाई साहब, विरेश और परिवार के सभी लोगों को इस अकल्पनीय, भावनात्मक पल के लिए बहुत बहुत बधाई।”
08 बर्ष पूर्व 28 नवंबर 2017 के वे सब चेहरे बिशेषकर महिलाओं के याद आ गए जब हम जौनसार बावर के समाजसेवी दर्शन डोभाल के गाँव पहुँचे थे व “ओड़ा लाणा” परम्परा को अपनी खुली आँखों से देखा था। तब मेरे साथ दर्शन डोभाल जी के आमंत्रण पर मेरे बड़े भाई समान अजीज मित्र वरिष्ठ पत्रकार स्व. राजेंद्र जोशी व पूर्व मुख्यमंत्री के पूर्व ओएसडी समाजसेवी उदित घिल्डियाल भी कुन्ना गाँव पहुँचे थे। ओड़ा लाणा परम्परा का वह बिषाक्त तब दर्शन डोभाल व उनके भाईयों के चेहरे पर साफ झलक रहा था, एक आत्मसंतोष भी था कि चलो जो महासू की मर्जी…।
क्या है बंटवारा/ ओड़ा लाणा/बारह बजाणा परम्परा?
जहाँ बंटवारा परम्परा को जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में अच्छा नहीं माना जाता वहीं यह कह पाना थोड़ा कठिन होगा कि बिजनू गाँव का जो परिवार तब बंटा था वह बंटवारा परम्परा में बंटा था या फिर ओड़ा लाणा के बाद या बारह बजाणा परम्परा के बाद।
जहाँ बंटवारा परम्परा यहाँ अच्छी नहीं मानी जाती क्योंकि भाई -भाई में बंटवारे में सबसे अधिक तब दिक्कत होती है जब दो भाईयों की एक पत्नी हो। यह पत्नी को तय करना होता है कि वह किस भाई के साथ रहना पसंद करेगी। ऐसा निर्णय लेना अक्सर पत्नी को ज्यादा व्यथित करता है लेकिन कई जगह ऐसे बंटवारे की वजह स्वयं पत्नी बनती है जो एक पति के साथ ही रहना पसंद करती है। ऐसे में वह पति इस बात के लिए स्वछंद रहता है कि वह दूसरा विवाह कर सके। बच्चे सभी बड़े भाई के नाम पर ही होते हैं क्योंकि ब्याहता अक्सर बड़े भाई से विवाह करके ही घर आती हैं। भले ही बंटवारे में ऐसे प्रकरण कम दिखने को मिले हैं। जनजातीय लोगों की नजर में बंटवारा किसी भी परिवार के विघटन का कारण समझा जाता है।
ओड़ा लाणा परम्परा के अधीन तब बाँटवारा आपसी सलाह मशविरे से होता है जब परिवार बढ़ जाए या परिवार में 08 से अधिक मर्द हो जाएँ। ऐसे में सभी भाई बैठते हैं व आपसी तालमेल के तहत ओड़ा लाणा परम्परा का हिस्सा बनते हैं। इस दौरान परिवार अपने सगे संबंधियों व रियांटुड़ी / ड़याँटुडियों को भी आमंत्रित करता है व ओड़ा लाणा परम्परा के तहत खेत खलिहान, मकान, जानवर व धन दौलत का बंटवारा करते हैं। इसमें बड़े भाई के हिस्से में अन्य भाईयों की अपेक्षा हल्की सी हिस्सेदारी बढ़ा दी जाती है। फिर गाँव के गणमान्य लोगों व सगे संबंधियों की मौजूदगी में मकान के बंटवारे की घर के बीचोंबीच एक लकड़ी की पट्टी लगाई जाती है जो तय करती है कि महासू देवता को हाजिर नाजिर मानकर यह बंटवारा सर्वसम्मति से मान्य है। तदोपरान्त परिजनों का आखिरी बड़ा खाना सामूहिक होता है जिसमें गाँव के प्रत्येक परिवार के एक व्यक्ति को आमंत्रित किया जाता है। ओड़ा लाणा परम्परा के हम गवाह रहे जब मित्र दर्शन डोभाल के घर में यह रस्म अदायगी हुई।
बारह बजाणा परम्परा में बंटवारा हो भी सकता है या नहीं भी..! बावर क्षेत्र के धन्नासेठ स्व. माधौराम बिजल्वाण के घर में जब हम बूढी दिवाली पर बर्ष 2004-2005 में गए थे तब उनके परिवार में 85 सदस्य थे और उनका कोई बंटवारा नहीं हुआ था। यह परिवार पूरे जौनसार बावर क्षेत्र की समृद्ध परिवार माना जाता रहा है। रही बारह बजाणा रीति या परम्परा का आशय तो यह परिवार में 12 पुरुषों के हो जाने पर एक बड़े कुनवे का प्रतीक माना जाता है। 12वें पुरुष के जन्म के समय वह परिवार बड़ा जश्न मनाता है। पूरे गाँव व रिश्तेदार व मित्रों को आमंत्रित कर बकरे काटे जाते हैं। खूब उत्सव मनाया जाता है व बड़ी दावत दी जाती है। यही परम्परा तब आपसी बंटवारे में भी मनाई जाती है।
बिगलैई ग्येनी/बंटवारु होणु
जौनसार बावर जनजातीय के इत्तर गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में मूलत: दो शब्द प्रचलन में आते हैं जिन्हें बिगलैई ग्येनी/बंटवारु होणु कहा जाता है। एक कहावत इस प्रकरण को लेकर गढ़वाल में प्रचलन में है कि “भै बिगलेनी बल स्वारा व्हेनी”! अर्थात भाई अलग हुए तो अलग परिवार कहलाये। बिगलैई ग्येनी शब्द दोनों जगह शामिल समझा जाता है। जब भाई भाई आपस में चूल्हा अलग कर दें तब भी और जब सारे खेत खलिहान, मकान जानवर इत्यादि का बंटवारा कर कर दें तब भी। यहाँ भी भाई अलग होने की परम्परा अच्छी नहीं समझी जाती व इस सबका दोषी ज्यादात्तर महिलाओं को समझा जाता है।
बंटवारु होणु परम्परा का सीधा मतलब है भाइयों का हर तरीके से बंटवारा होना। जल, जंगल, ज़मीन, जानवर व मनुष्य.. सभी का बंटवारा। ऐसा बंटवारा तभी मान्य समझा जाता है जब उस बंटवारे में पंचायत शरीक हो अन्यथा आपस में किया बंटवारा मान्य नहीं समझा जाता। इस बंटवारे में पंच प्रधान शामिल होते हैं और बंटवारे के बाद उन्हें चाय हलवा पूड़ी पकोड़ी खिलाने का रिवाज था।
जौनसार बावर के बिजनू गाँव का 35 बर्ष बाद फिर एक होना पूरे क्षेत्र में खुशियाँ मनाने जैसा हुआ। इस परिवार की ख़ुशी में शामिल हुए भारत चौहान सोशल साइट पर पोस्ट करके लिखते हैं :-
“जौनसार बावर के बिजनू गाव में 35 साल पहले बंटे दो परिवार हुए एक, गांव में जश्न का माहौल”
(भारत चौहान: गढ़ बैराट न्यूज़)
ऐसे समय में जब परिवार विखंडित हो रहे हैं लोग एकाकी परिवारों में रहना पसंद कर रहे हैं तब जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में एक ऐसा उदाहरण सामने आया है इस परिवार का 1990 में बटवारा हो गया था वह 2025 में एक हो गया। यह वास्तविकता है जौनसार बावर के खत ऊपरली अठगाव ग्राम बिजनू की।
बिजनू गांव में कुल 25 परिवार निवास करते हैं जिसमें तिरनोऊ परिवार के तीन भाई अतर सिंह, सूरत सिंह और किशन सिंह सामूहिक रूप से रहते थे, तीनों ही सगे भाई है। सन 1990 में परिवार में कुछ विवाद हुआ और परिवार का दो हिस्सों में बटवारा हो गया। जिसमें अतर सिंह और किशन सिंह एक तरफ हो गए और बीच वाले भाई सूरत सिंह अपने तीन बेटियों और दो बेटों पत्नी सहित अलग हो गए। समस्त गांव वासियों ने पंडित को बुलाकर नियमानुसार परिवार और खेती-बाड़ी का यह बंटवारा कर दिया।
सन 1990 में जब यह बंटवारा हुआ तब अतर सिंह के सबसे बड़े पुत्र नरेंद्र 8 साल के थे। 2009 में जब नरेंद्र के विवाह के बाद नरेंद्र और उनकी पत्नी पुनम ने प्रयास किया कि जो परिवार बंटा है वह वापस एक हो जाए परंतु प्रयास असफल रहा। हालांकि दोनों परिवार आपस में प्रेम पूर्वक और मेल-मिलाप से रहते थे।
बड़े भाई अतर सिंह और छोटे भाई किशन सिंह दोनों साथ रह रहे हैं दोनों के बच्चे पढ़ लिख करके बाहर निकल गए हैं परंतु सूरत सिंह जी गांव में ही रहते हैं उनके बच्चे भी अपना रोजगार कर रहे हैं। 25 दिसंबर 2024 को नरेंद्र ने अपने पुत्र सिद्धांत के जन्मदिन पर चकराता स्थित अपने होटल (सुकून) पर दोनों परिवारों के सभी सदस्यों को बुलाया और इस ख़ुशी के मौक़े पर एक बार फिर नरेंद्र ने अपना प्रस्ताव रखा जिसे सभी लोगों ने सहर्ष स्वीकार किया। और अतर सिंह, सूरत सिंह, किशन सिंह पुन: एक हो गए, जिसमे नरेंद्र व पत्रकार वीरेश चौहान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
आखिकार यह प्रयास सार्थक हुआ और 5 जनवरी 2025 को यह परिवार एक हो गया। सब लोगों ने एक दूसरे के गले लगाकर बधाई दी इस खुशी में सभी की आंखें नम हो गई। सभी रिश्तेदार व नज़दीक के लोगों के साथ साथ परिवार की जो बेटियां – बहने ब्याह कर अपने ससुराल जा रखी थी वह भी इस मौके पर मायके आई और परिजनों को बधाई व शुभकामनाएं दी।
35 वर्ष बाद एक हुए परिवार को सभी लोगों ने बधाई दी इस खुशी को लेकर संपूर्ण परिवार ने बिजनू गांव में एक बड़ा आयोजन किया जिसमें उनके रिश्तेदार और जौनसार बावर के प्रतिष्ठित लोग सम्मिलित हुए।
इस मौके पर खत तपलाड के सदर स्याणा विजयपाल सिंह, खत बौंदुर के स्याणा रजनैश सिंह, खत अठगांव के स्याणा विजयपाल, अतर सिंह पंवार ,डॉ अमर सिंह राय, दिनेश चौहान, अरविन्द चौहान, दिगंबर चौहान, (बिट्टु ) नितेश चौहान टीकम सिंह, फतेह सिंह, अनिल चांदना दीपक मौहल आदि अनेक लोग उपस्थित थे।
जौनसारी समाज में परिवार के बंटवारे को अच्छा नहीं माना जाता..
देहरादून जनपद के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में सामूहिक परिवार की परंपरा है यदि किसी परिवार का बंटवारा होता है तो उसे सामाजिक रूप से अच्छा नहीं माना जाता। हालांकि प्रारंभ में बंटवारे अधिक होते थे जो समय के साथ-साथ कम होते गए और अब ऐसे भी उदाहरण मिल रहे हैं कि जो परिवार बंटे हो वह पुनः एक हो रहे हैं। जौनसार बावर क्षेत्र में जो लोग सरकारी नौकरी और व्यवसाय के लिए बाहर गए हैं वह भी जब घर आते हैं तो सामूहिक परिवार में ही एक छत के नीचे 40 – 50 से अधिक लोग साथ रहते हैं और साथ ही भोजन करते हैं। इतना ही नहीं जौनसारी समाज में सहकारिता की भावना कूट-कूट कर भरी है। यहां परस्पर गांव में जो परिवार किसी भी कार्य में पिछड़ जाता है उसके सहयोग के लिए संपूर्ण गांववासी आगे आते हैं।
इससे पहले भी अनेक परिवार एक हुए हैं
जौनसार बावर में सामूहिक परिवार में यदि कोई विवाद हो जाता है तो हालांकि परिवारों के बंटवारे हुए हैं परंतु अनेक बार ऐसे उदाहरण भी मिले हैं कि कुछ समय अंतराल बाद जब सारे द्वेष भूल गए तो वह परिवार एक हुए हैं। बुजुर्गों का मानना है कि अनेक गांवों में इस प्रकार के क्षण आए हैं जब परिवार और जमीन जायदाद का संपूर्ण बंटवारा हो गया था उसके बाद भी परिवार एक हुए हैं, जो समाज के लिए एक अच्छा उदाहरण है।