Thursday, June 19, 2025
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ध्याणी बल कैमरा का बीचा, ध्याणी बल फोटू की मशीना।

(मनोज इष्टवाल)

लोक की वानगी की रवानगी तब ज्यादा खूबसूरती से निखरकर सामने आती है ज़ब उसकी रूह में रचे बसे शब्द नदी की भांति कल-कल, छल-छल बहते आगे निकलते हैं। यह लोक जब संस्कृति के सांस्कृतिक रंगों में ढलकर सामने आती हैं तो पीतल भी सोने जैसे ही धमकने लगता है। यह तब ज्यादा ही अद्भुत नजर आने लगता है जब सम्पूर्ण लोक विरासत को कांधे में लाधे कोई सल्ली लोक कलाकार उसे मूर्तीकार बन ढालता है। जैसे गढ़वाल के लोक संगीत के सिद्धस्त लोक कलाकार प्रीतम भरतवाण का यह गीत जिसने आजकल सोशल मीडिया में बबाल काटा हुआ है :-
ध्याणी बल कैमरा का बीचा, ध्याणी बल फोटू की मशीना।

बहुत अंतराल बाद पद्मश्री प्रीतम भरतवाण की गायिकी का जादू अंतर्मन को छूकर आत्मा तक पहुँच गया। मुझे लगता है यह लोकगीत कम से कम पांच या छ: दशक पुराना होगा, ज़ब यह प्रचलन में आया है। इसे गाने से पूर्व प्रीतम भरतवाण ने इसकी पूरी R & D की है, क्योंकि इसके फिल्मांकन की ख़ूबसूरती को गीत के बोलों के साथ जिन्दा करने के लिए निर्देशक अजय भारती व प्रीतम भरतवाण काफी मेहनत की है। इसको ठेठ उसी काल से जोड़ने की अनूठी कोशिश तब लगती है जब एक अंग्रेज एक कैमरा लेकर फोटो खिंचता है।

पुटबंदी के शानदार मिश्रण ने इस गीत की गायन शैली व फ़िल्मांकन पर चार चाँद लगा दिए। इस गीत में लोक का वह वृहद संसार दिखने को मिलता है जो देश के सभी पहाड़ी परिवेश के राज्यों की गायन शैली में शामिल होता है अब चाहे आप उत्तराखंड के लोकगायक जीत सिंह नेगी, नरेंद्र सिंह नेगी, चंद्र सिंह राही, हीरा सिंह राणा, गोपाल बाबू गोस्वामी इत्यादि के लोक में रचे बसे लोक के ताने-बाने जोड़ते गीत सुनो या फिरअसम के लोकगायक भूपेन हजारिका, गायत्री राजस्थान की मरु कोकिला के नाम से विख्यात रेशमा,  हिमाचल के लोकगायक डॉ. कृष्णलाल सहगल, अरुणाचल के कर्दो न्यिग्योर, कश्मीर के अल्ताफ मीर, मणिपुर के मंगलम चानू, सिक्किम के सोनम त्सेरिंग लेप्चा, नागालैंड की टेटसियो सिस्टर्स, मेघालय के लू माजाव, त्रिपुरा के सौरव देबबर्मा, मिजोरम के लोकगायक ज़ोरमचचारी इत्यादि को कोई भी एक लोकगीत…! सब लोक समाज को अपने शब्दों से जीवन्त बना देते हैं। ऐसा लगता है मानो कल की ही बात रही होगी।

इस गीत के बोल शब्द बिंहास के रूप में बेहद सरल हैं लेकिन इसकी गायक शैली की कोमलता व लसक में कमाल का सौंदर्य एवं लावणता छुपी हुई है। प्रीतम जब गाते हैं तो ठेठ उसी लोक में पहुँच जाते हैं, जिस लोक या काल में गीत संरचना हुई होती है।  प्रीतम जब पहली आंतरा उठाते हैं – “ध्याणी बल बिलैती कैमरा, ध्याणी बल देशी फोटू लेंदो, ध्याणी बल यो दिलांदो रांदों, ध्याणी बल…. हाँss आंs s..।”

पूरे गीत का रस-कस उनकी गायिकी की हाँss आंs s… ले जाती है। और सच मायने में लोक की यही खूबसूरती है कि वह रिद्धिम के साथ कितनी खिलकर आती है और गायिकी की ख़ूबसूरती फ़िल्लर को कैसे नया रूप दे। ये जो हाँss आंs s… का फिल्लर है ना.. इसने इस गीत पर चार चाँद लगा दिए।

लोक की वानगी और खूबसूरती देखिये, लगभग आधी सदी से भी पुराने समय का यह गीत आज के युवाओं की धड़कन बन गया है। सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा इस गीत पर अपने अपने अंदाज में अभिनय करते सैकड़ों युवा व युवतियों ने इस गीत को खूब ऊँचाईयां दे दी हैं। सच कहूं तो मेरी नजर में बहुत समय बाद लोकगायक पद्मश्री प्रीतम भरतवाण की आवाज की खनकार मिश्री का घोल बन कानों में गूँज रही है।

 

 

 

 

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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