Wednesday, February 5, 2025
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हिमालयन डिस्कवर फाउंडेशन की क़ृषि/उद्यानिकारण, वन पर्यटन एवं चकबंदी पर कार्यशाला

(हि. डिस्कवर फाउंडेशन टीम)

उत्तराखंड में आगामी 2025-26 में परिसीमन को लेकर लगातार चल रही चर्चाओं का संज्ञान लेते हुए हिमालयन डिस्कवर फाउंडेशन (ट्रस्ट) द्वारा पौड़ी जिले के विकास खंड कल्जीखाल पट्टी कफोलस्यूँ की ग्राम सभा धारकोट में बंजर होते खेतों को ध्यान में रखते हुए क़ृषि/उद्यानिकारण, वन पर्यटन एवं चकबंदी जागरूकता कार्यक्रम के तहत दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी मनोज इष्टवाल द्वारा उत्तराखंड सरकार द्वारा आगामी बर्ष में होने वाले विधानसभा क्षेत्र परिसीमन व भूमि परिसीमन को लेकर ग्रामीणो को चेताते हुए कहा कि अगर परिसीमन हुआ तो हम अपने उन खेतों से हाथ धो सकते हैं जो विगत 10 बर्षों से बंजर पड़े हैं, क्योंकि इन्हें सरकार अधिग्रहण कर अपनी नई पैमाईश में कैसरीन में शामिल कर सकती है।

उन्होंने भूमि बंदोबस्त का हवाला देते हुए कहा कि उत्तराखंड में 64 साल बाद फिर से भूमि बंदोबस्त हो सकता है। इसके लिए केंद्र सरकार ने दो पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। चार शहरों और पांच गांवों में सफलता के बाद ही पूरे प्रदेश में भूमि बंदोबस्त होगा। इस प्रोजेक्ट से भूमि बंदोबस्त में आने वाली बाधाओं का भी पता चलेगा। भूमि बंदोबस्त होने से सभी रिकॉर्ड डिजिटाइज हो जाएगा। इससे जमीन मालि‍कों के नाम में छेड़छाड़ नहीं पाएगा। उन्होंने कहा कि पुराने अभिलेखों के कारण भूमि की खरीद और बिक्री में गड़बड़ी और फर्जीवाड़े की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकतर गोल खातों में ही भूमि बंदाेबस्त चल रहा है। इसलिए इसकी लगातार खरीद फरोख्त का कारोबार खूब फल फूल रहा है जिसका ज्वलंत उदाहरण पौड़ी गढ़वाल की यमकेश्वर विधान सभा का अधिकांश क्षेत्र है, जहाँ देश के धन्नासेठों ने ज़मीन की खरीद फरोख्त कर वहाँ के आम जन मानस को दोराहे पर ला खड़ा कर दिया है।

क़ृषि/उद्यानिकारण, वन पर्यटन एवं चकबंदी पर कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए मनोज इष्टवाल ने कहा कि दिक्कत यह है कि खेत व मकान वह लोग नहीं बेच रहे जिनकी पहली पीढ़ी प्रवासी बन गई है बल्कि वह बेचते जा रहे हैं जिसकी दो तीन पीढ़ियों ने गाँव का रुख नहीं किया इससे हमारे लोक समाज व लोक संस्कृति का स्वरुप बदल रहा है क्योंकि मैदानी भू -भाग से आकर यहाँ बस रहे धन्नासेठ व भू माफिया यहाँ के लोक समाज से परिचित नहीं हैं इसलिए वह लाठी डंडे के बल को अपना माध्यम मानकर ज़मीन लेने व कब्ज़ाने का कार्य कर रहे हैं। ऐसे में हमें सावधान रहना होगा।

हमारी ज़मीन सरकार कैसे अधिकृत कर सकती है? प्रश्न का जबाब देते हुए उन्होंने कहा कि ज़मीन की ख़ाता-खतौनी भले ही पुरखों से वर्तमान तक हमारे नाम है लेकिन यह ज़मीन हमारे नहीं बल्कि सरकार के अधिकार में होती है। यही कारण है कि सरकार यदि सड़क बना रही है तो वह बिना आपकी इजाजत के ही सड़क निर्माण करती है, भले ही वह आपके कटे खेत का मुआवजा आपको दे दे। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में हमें भूमि अधिग्रहण (संशोधन) अधिनियम, 1976″ पढ़ लेना चाहिए जिसमें साफ- साफ इंगित है कि इस संशोधन के बाद, भारत की सभी भूमि भारत सरकार के नाम पर रजिस्टर्ड है

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 1960 के बाद भूमि बंदोबस्त दोबारा किया जा सके। केंद्र सरकार ने शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि अभिलेखों को दुरुस्त करने के लिए दो पायलट प्रोजेक्ट प्रारंभ किए हैं।

मनोज इष्टवाल ने उदाहरण देते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने अर्बन लैंड रिकार्ड डिजिटाइजेशन प्रोजेक्ट के अंतर्गत देशभर में चयनित 400 शहरों में उत्तराखंड के चार शहर चिह्नित किए गए हैं। इस योजना में अधिकतर छोटे शहरों को चुना गया है, ताकि बड़े स्तर पर यानी प्रदेश स्तर पर इसे प्रारंभ करने की स्थिति में भूमि बंदोबस्त में आने वाली समस्त बाधाओं की जानकारी मिल सके। चार नगर पालिका परिषदों नरेंद्रनगर, भगवानपुर, अल्मोड़ा और किच्छा में यह पायलट प्रोजेक्ट प्रारंभ किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि राजस्व सचिव एसएन पांडेय के अनुसार राजस्व विभाग और शहरी विकास विभाग सर्वे आफ इंडिया की सहायता से इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत शहरों का सर्वेक्षण करेंगे। सर्वे में शहरी क्षेत्रों में भूमि और परिसंपत्तियों का नया और और अद्यतन रिकार्ड तैयार किया जाएगा। अब अगर इसकी शुरुआत हो चुकी है तो अगला टारगेट हमारा जिला हो सकता है जहाँ सबसे ज्यादा लैंड इंक्रोचमेंट की बातें सामने आ रही हैं। उन्होंने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि भूमि फर्जीवाड़े की आड़ में सरकारी सिस्टम आपकी पुरखों की जमीन का अधिग्रहण कर उन नगद खेतों को केशरीन घोषित कर दे जिन पर विगत 10 बर्षों से खेती न हुई हो।

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि ब्रिटिश काल में प्रथम भूमि बंदोबस्त 1815 में हुआ था उसके पश्चात अब तक 12 बार भूमि बंदोबस्त क़ानून लागू हो चुके हैं जिसमें हर बार यह गाज बड़े भूमि स्वामियों पर ही पड़ी। भले ही इससे पूर्व गोरखा शासन काल में 1812 में भूमि बंदोबस्त शुरू किया गया था लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उसे रद्द कर दुबारा से 1815 में इसे लागू किया है।

इस दौरान डबल सिंह नेगी ने अपने सम्बोधन में कहा कि हमें अभी से इन बातों को गंभीरता से लेकर चलना होगा वरना ऐसी संभावना से इनका नहीं किया जा सकता कि अगले परिसीमन की आंच हम तक भी पहुँचे व हम अपनी ज़मीन खो दें। हमें चकबंदी या उद्यानिकी का माध्यम अपना कर अपनी खेतिहर उपजाऊ, दोयम, सोयम या सिंचित ज़मीन को पुन: श्रम साध्य कर अपने रोजगार का साधन बनाना होगा ताकि हमारी आने वाली पीढियाँ इससे लाभान्वित हो सकें। इस दौरान गाँव के पूर्व प्रधान मनमोहन सिंह नेगी, जगदीश प्रसाद इष्टवाल, शिब सिंह बिष्ट, अर्जुन सिंह, जितेंद्र सिंह, सुरेन्द्र चंदोला, कुलदीप सिंह नेगी, चंडी प्रसाद शैली, अरविन्द सिंह बिष्ट, प्रेम सिंह रावत, सुनील ढोँडियाल, श्रीमति रजनी इष्टवाल, सुमति देवी बिष्ट, पार्वती देवी, मंजू देवी, सरस्वती देवी व अन्य ने चकबंदी में संशय व्यक्त करते हुए अपनी बात रखी।

पूर्व प्रधान भूपेंद्र सिंह रावत व गोकुल सिंह बिष्ट ने जिज्ञासा व्यक्त करते हुए कहा कि चकबंदी करके लोग कैसे लाभ ले सकते हैं क्योंकि वर्तमान में गाँव के आस पास हर एक की उपजाऊ क़ृषि भूमि है, ऐसे में भला वह अपनी उपजाऊ भूमि त्यागकर दूर दोयम दर्जे या पथरीली, गारे -कंकण वाली ज़मीन पर क्यों जाना पसंद करेगा? जिसका जबाब देते हुए हिमालयन डिस्कवर फाउंडेशन ट्रस्ट के चेयरमैन मनोज इष्टवाल ने कहा कि ज़मीन के आधार पर चकबंदी की जाती है, उसमें यह भी देखा जाता है कि किसकी कितनी उपजाऊ, दोयम, सिंचित या सोयम भूमि है। बिना उसकी रज्जामंदी के चकबंदी संभव नहीं है। हर एक को उपजाऊ, दोयम, सिचिंत व सोयम के अलग अलग चेक दिए जाएंगे। बस इसमें फायदा यह होगा कि आपके बिखरे खेत एक जगह होंगे जैसे आपके उपजाऊ दो खेतों के नीचे चार खेत अन्य के हैं और दूसरी जगह उसकी उपजाऊ ज़मीन के नीचे आपके चार खेत.. ऐसे में आप आपसी संटवारा कर सकते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जगदीश प्रसाद थपलियाल ने कहा कि हम सभी ग्रामवासियों को इस बात की प्रसन्नता है कि हमारे ही गाँव के नाम पर रजिस्टर्ड ट्रस्ट हिमालयन डिस्कवर फाउंडेशन ने हम सबका ध्यान आने वाली बड़ी विपदा की ओर दिलाया है, अब हमें स्वयं आत्मचिंतन कर एक प्रस्ताव के माध्यम से प्रथम चरण में सम्पूर्ण बंजर हो रहे खेतों में फलदार वृक्ष लगाकर उन्हें परिसीमन के दायरे से बाहर रखने के लिए सजग होना पड़ेगा व द्वितीय चरण में यदि संभव बनता है तब हम चकबंदी क़ानून का अध्ययन कर उस पर विचार करें।

इस दौरान एक प्रस्ताव पारित किया गया जिस पर सर्वसम्मति से कार्यशाला/बैठक में आये सभी ग्रामीणो ने हस्ताक्षर किये। इस दौरान पूर्व प्रधान मनमोहन सिंह नेगी, जगदीश प्रसाद इष्टवाल, शिब सिंह बिष्ट, अर्जुन सिंह, जितेंद्र सिंह, सुरेन्द्र चंदोला, कुलदीप सिंह नेगी, चंडी प्रसाद शैली, अरविन्द सिंह बिष्ट, अमित इष्टवाल, प्रेम सिंह रावत, सुनील ढोँडियाल, राजेश नेगी, श्रीमति रजनी इष्टवाल, सुमति देवी बिष्ट, पार्वती देवी, मंजू देवी, बिजेश्वरी देवी, सरस्वती देवी तथा देहरादून प्रवासी श्री मनोरथ ढोँडियाल, बालम सिंह नेगी, जानकी प्रसाद, सुमित इष्टवाल, पंकज, चंद्रमोहन इष्टवाल, मनमोहन, गौरव, इंद्रमोहन, राजबीर सिंह नेगी सहित विभिन्न लोग उपस्थित थे।

आइये जानते हैं कब कब उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त लागू हुआ :-

ब्रिटिश काल के दौरान उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त

  • 1815 में उत्तराखंड से गोरखाओं के निष्कासन के बाद ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में 12 भूमि बंदोबस्त हुए।
  • यह भूमि बंदोबस्त 1815 में कुमाऊं में गार्डनर के नेतृत्व में तथा 1816 में गढ़वाल में ट्रेल के नेतृत्व में हुआ।
  • 1815 और 1816 का भूमि बंदोबस्त केवल एक वर्ष के लिए था, यही कारण है कि इसे एकल बंदोबस्त या वार्षिक बंदोबस्त कहा जाता है।
  • इस समझौते के बाद 1819 में ट्रेल द्वारा पहला पटवारी नियुक्त किया गया ।
  • 1823 में ट्रेल ने पुनः पंचशाला बंदोबस्त किया , जिसमें गांव का दौरा करके भूमि का नाम निर्धारित किया जाता था, इसे अस्सी वर्षीय बंदोबस्त भी कहा जाता है।
  • विलियम ट्रेल ने अपने कार्यकाल (1816 से 1833 तक) के दौरान कुल 7 भूमि बंदोबस्त किये।
  • जिसमें 1817 में ब्रिटिश कुमाऊं में पुनः किया गया भूमि बंदोबस्त भी शामिल है।
  • इस मार्ग का अनुसरण करते हुए, बैटन ने 1840 में बीस साल का भूमि समझौता किया।
  • यह समझौता ब्रिटिश काल का 8वां भूमि समझौता था।
  • बेटन के भूमि बंदोबस्त की विशेष विशेषता यह थी कि इसमें प्रत्येक गांव को अपना रिकार्ड रखने का अधिकार दिया गया तथा लगान की दर एक रुपया प्रति वर्ष निर्धारित की गई।
  • विकेट सेटलमेंट (1863 से 1873)

    • ब्रिटिश काल में 9वीं भूमि बंदोबस्त विकेट के समय किया गया था।
    • इस बस्ती में पहली बार वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया गया था।
    • विकेट ने ही पहाड़ी भूमि को पांच भागों में विभाजित किया – जिसमें
    • तालाब भूमि – नदी घाटों की भूमि जहाँ सिंचाई की व्यवस्था थी।
    • ऊपरी शिखर – पर्वतीय क्षेत्रों के ऊंचे आयामों पर।
    • उपराँव दोयम – दूसरे स्तर का शीर्ष
    • इजरान – निम्न श्रेणी ऊबड़ खाबड़
    • कांटेदार-खील भूमि /के आधार पर विभाजित।
    • 10 वां भूमि बंदोबस्त 1887 में विकेट के बाद पौ के कार्यकाल में हुआ , जो कुमाऊं में गूंज के नेतृत्व में हुआ।
    • जबकि 11वां भूमि बंदोबस्त गढ़वाल में 1928 में इबोट्सन के नेतृत्व में हुआ ।
    • उत्तराखंड में 12वां और अंतिम भूमि बंदोबस्त 1960-64 के बीच उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया गया था ।
    • टिहरी राज्य में भूमि बंदोबस्त
    • टिहरी रियासत में कुल 5 भूमि समझौते हुए।
    • टिहरी रियासत का पहला भूमि बंदोबस्त 1823 में सुदर्शन शाह द्वारा किया गया था।
    • टिहरी रियासत में दूसरा भूमि बंदोबस्त 1823 में भवानी शाह द्वारा 1861 में किया गया जिसमें अत्तूर पट्टी को कर से मुक्त कर दिया गया।
    • टिहरी रियासत में तीसरा भूमि बंदोबस्त 1873 में प्रतापशाह द्वारा जूला की पैमाइश के साथ किया गया था।
    • टिहरी का चौथा भूमि बंदोबस्त 1903 में कीर्ति शाह द्वारा किया गया था।
    • और पांचवां और अंतिम भूमि बंदोबस्त 1924 में नरेंद्र शाह द्वारा किया गया था।
    • इसके बाद टिहरी रियासत में लगातार जन विरोध के चलते 1 अगस्त 1949 को टिहरी भारत गणराज्य का हिस्सा बन गया।
Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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