Saturday, January 25, 2025
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केदारनाथ उप चुनाव ..कूटनीति, राजनीति और रणनीति में मुख्यमंत्री धामी का मास्टर स्ट्रोक

(मनोज इष्टवाल)

गढ़वाली या केदार भूमि से बोलें तो “बल ब्वाs धामी जी” और पूरे देश की भाषा में कहें तो वाह धामी जी …आपने सबके मुंह में जो ताले जड़े वह एक ऐसी राजनीति को जन्म दे गई जिसके न पैर मिले न सींग ! केदारनाथ उप चुनाव जीतना यकीनन जहाँ भाजपा के लिए प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में नाक का सवाल था वहीँ व्यक्तिगत रूप से कहें तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए पहाड़ जैसा ! मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी यकीन मानिए एक ऐसी ढळकन्या ढुंगी (ढलकते हुए बिशाल पत्थर शिला के ऊपर खड़े होकर वह सारा मंजर देख रहे होंगे जो उनकी आँखों के आगे तैरते सैलाब जैसा रहा होगा. उत्तराखंड से दिल्ली तक एक ही बात थी अगर यह चुनाव भाजपा ने हारा तो समझो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कुर्सी गई.

इस उपचुनाव को लोग मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से कम जोड़कर देख रहे थे अपितु इस चुनाव को आम लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भगवान केदारनाथ की आस्था से जोड़कर देख रहे थे. यही कारण था कि भाजपा के सभी धुरंधर माने या न माने लेकिन अंदर से डरे सहमें हुए थे क्योंकि कांग्रेस ने तो टिकट आबंटन के एक डेढ़ माह पूर्व से ही अपने आप को चुनावी युद्ध में झोंक दिया था. तेजी से बड़े क्षत्रप की तरह कांग्रेस में उभरे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गणेश गोदियाल व इसी विधान सभा के पूर्व विधायक रहे मनोज रावत ने पूरी विधान सभा का घाट-धार, चाल-खाल, गाँव-ग्वर्बट्टा सब नाप लिया था . उनकी क्षेत्र में लगातार उपस्थिति ने भाजपा के माथे पर पसीना ला दिया था. यह तो तभी तय लगने लगा था कि कांग्रेस मनोज रावत को टिकट देने का मन बना चुकी है लेकिन भाजपा के लिए टिकट किसे मिले यह असमंजस न सिर्फ पार्टी के शीर्ष लोगों में बल्कि पार्टी कार्यकर्त्ता व आम जनता के बीच बना हुआ था. और तो और उपचुनाव से पूर्व विधायक रही श्रीमति शैलारानी रावत के स्वर्ग सिधारने के बाद जैसे ही केदार घाटी में चुनावी दुदुन्धी बजी उनकी बेटी ने सबसे पहले टिकट खरीद लिया. यह बाद हवा में तैरने लगी थी. फिर आम जन के मुंह से कभी कुलदीप रावत तो कभी शैलारानी के पीआरओ के बगावत करने पार्टी छोड़ने व चुनाव लड़ने या फिर भाजपा को चुनाव हारने की बात गूंजने लगी. यकीनन यह पार्टी संगठन कहें या मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कूटनीति और रणनीति का हिस्सा कि उन्होंने पूर्व विधायक रही श्रीमति आशा नौटियाल को टिकट मिलने के बाद इन सबको मैनेज कर लिया और कांग्रेस व विपक्षियों द्वारा फैलाया गया हौव्वा चुटकी बजाते ही शांत कर दिया .
काश… कि इसी से सब शांत हो जाता. ऐसा भी नहीं है कि श्रीमति आशा नौटियाल की क्षेत्र में कमजोर पकड़ है बल्कि इसके उलट कई मुद्दों पर आम पार्टी कार्यकर्त्ता आशंकित था कि जनता के बीच वह ऐसी प्रस्थिति में कैसे जाएँ जब केदारनाथ में चढ़ाए गए सोने पर हल्ला मचा हो, दिल्ली में बन रहे केदारनाथ धाम को लेकर पूरे पंडा समाज में असंतोष हो और तो और यात्रा रूट को लेकर सब क्रोधित हों! खुले आम लोग मुख्यमंत्री धामी पर यह आरोप मढ रहें हों कि उन्होंने गढ़वाल-कुमाऊंवाद फैला रखा है. यह सचमुच किसी अग्नि परीक्षा से कमतर बात तो किसी भी सरकार के लिए नहीं है.

बोबी पंवार वाला ट्विस्ट

हम हैरत में हैं कि एकाएक बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बोबी पंवार वाला ट्विस्ट कैसे सामने आ गया . मुख्यमंत्री के करीबी सचिवों में गिने जाने वाले मीनाक्षी सुन्दरम के माध्यम से यूपीसीएल का मुद्दा इतना गरमाया कि बोबी पंवार पर विभिन्न धाराओं में केस दर्ज हो गया और तो और युवा सड़कों पर उतर आये. फिर पता चलता है कि बोबी पंवार केदारनाथ उप चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार त्रिभुवन चौहान का प्रचार प्रसार करने लगे. अब आप ही बताओ ऐसे में किसी समझदार पत्रकार के होंठ गोल होकर सीटी नहीं बजायेंगे तो और क्या करेंगे.

अब आप माने न माने …लेकिन मेरी नजर में बोबी पंवार ही वह तुरुप का इक्का भाजपा के हाथ लगा जिसने कांग्रेस की महीनों की मेहनत पर पानी फेर दिया व भाजपा को आश्वस्त कर दिया कि आपकी जीत पक्की …! यह सचमुच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की साम दाम दंड भेद वाली उस राजनीति का हिस्सा है, जिसके न पैर दिखे न सींग ! और अगर ..सचमुच बोबी पंवार इस सब में लिप्त नहीं थे तो वह भी सर पकड़कर बैठ गए होंगे व मन ही मन सोच व बोल रहे होंगे कि इस युवा मुख्यमत्री के मास्टर स्ट्रोक का किसी के पास जबाब नहीं है क्योंकि इस चुनाव में जहाँ से लोगों की सोच खत्म होती है वहां से धामी सरकार ने कूटनीति, छद्मनीति, रणनीति और राजनीति का बेजोड़ इस्तेमाल कर यह जीत कांग्रेस के जबड़े से छीनी है. भले ही इस जीत से पहले त्रिभुवन चौहान ने लोगों का दिल जीतने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी .

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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