(मनोज इष्टवाल)
वर्तमान में ज्यादात्तर मातृशक्ति सुख में तो अपने पति के साथ ख़डी दिखती हैं लेकिन परिश्रम व कठिनाई के दौर में पति को गुड़बाय नमस्ते सलाम कहे देती हैं। ऐसा ही पौड़ी गढ़वाल के नैनीडांडा विकास खंड के एक रिटायर कर्नल पर ध्यान गया तो पाया, यह व्यक्तित्व अपने सोशल अकाउंट को बीना यशपाल के नाम से संचालित करते हैं। अर्थात अपने से पहले अपनी अर्धांगिनी का नाम…। कर्नल यशपाल सरफिरे नहीं हैं तो क्या हैं। जिस व्यक्ति ने सेवानिवृत्ति के बाद आराम से महानगर में आलीशान कोठी बनाकर अपनी पत्नी के साथ सेवनिवृत्ति के पश्चात सुख भोगना था, वह व्यक्ति सुदूर के अपने गाँव में अपने पुरखों की ज़मीन खोदकर अपनी अर्धांगिनी व अपने हाथ में दरांती – कुदाल पकड़वा व पकड़ कर हाथों में छाले पैदा कर रहा है व सूखे होंठों से पसीने व थकान से चूर चेहरे में प्रसन्नता की चमक लिए मानो गाता फिर रहा हो – “मैंने छुट्टपन में छुपकर पैसे बोये थे, सोचा था पैंसों की प्यारी पौध उगेगी..। रुपयों के कलदार मधुर फसलें उगेंगी, और फूल फलकर मैं मोटा सेठा बनूँगा।”
सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रा नंदन पंत की इस कविता का मुखौटा भले ही सुखद है लेकिन इसके बाद की पंक्तियां निराशा उत्पन्न करती हैं। ठीक वैसे ही जैसे कर्नल यशपाल जब अपना सामान बाँधकर अपनी वकील बेटी के कहने पर दिल्ली से अपनी अर्धांगिनी के साथ गाँव लौटे और उन्होंने गाँव के बंजर खेतोँ को आबाद करने की बात कही। ग्रामीण मुस्कराये बोले – रिटायरमेंट का नया जोश है, दो चार दिन बाद हताश -निराश होकर लौट जाएगा। लेकिन जैसे जैसे श्रीमती बीना व कर्नल यशपाल ने अपने सूने खेतोँ की मांग सजानी शुरु की, लोगों के बहाने कि भालू, बन्दर, जंगली सूअर, चिड़ियाएँ इनकी फसल बर्बाद कर देंगे। अरे…. लेकिन यह क्या? इसने तो करामात कर दी। फसल भी लहलहाने लगी और पेड़ भी बौराने लगे। अंतिम बहाना यह था कि “सरफिरा है, बेचारी पत्नी को उम्र के इस पड़ाव में मेहनत करवा रहा है।”
लेकिन आज ये दोनों पत्नी पत्नी न सिर्फ नैनीडांड़ा के लिए बल्कि सम्पूर्ण गढ़वाल के लिए नजीर बन गए हैं। जो कल तक बैठे – बैठे तरह तरह की बातें बनाते थे आज वही कर्नल यशपाल की दिल खोलकर प्रशंसा करते हैं। उनके क़ृषि कार्यों के ढंग देखकर सब दंग हैं व कहते हैं कि जिस बंजर भूमि पर जख्या भांग उगने की उम्मीद नहीं थी, ये दोनों आज वहां सोना उगा रहे हैं जिसका रस्वादन इनकी आने वाली कई पीढ़ी करेंगी।
कर्नल यशपाल सिंह नेगी बताते हैं कि 2020 में सेवानिवृत्ति के बाद वे इसी ऊहापोह में थे कि क्या करूँ.. क्या करूँ! दिल्ली रहूं या देहरादून रहूं! सोचा था कभी अपने गाँव जाऊँगा। मेरी छोटी बेटी जो वकील है वह बोली – आप बोलते थे गाँव जाऊँगा तो फिर गाँव ही क्यों नहीं चले जाते? कोरोना काल में आखिर मन बना लिया। लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के इस गीत ने प्रेरित किया कि “यूँ दानी आंख्यूँ मा झम-झम पाणी..! आज किलै होलु आणू कुज्याणी…। जिसकी अंतिम पंक्ति है – वखी वी डंडळी म छुट्दा पराण, मन मा रै गे आखिरी स्याणी।
कर्नल यशपाल नेगी बोले – फिर क्या था बोरिया बिस्तर बाँधा और गाँव लौट आया। एक दिन लोकगायक नेगी जी से उनके इस गीत की चर्चा की और कहा कि भैजी, इस गीत की प्रेरणा से मैं गाँव लौट आया। नेगी जी ने जबाब दिया – भुला तू गाँव ऐगे अर मि देहरादून वलो ह्वे ग्यों।
फरवरी 2021 में जब मैं गाँव गया तो देखा हमारे 130 खेत हैं जो सब बंजर हैं। मेरे हिसाब से लगभग ये 130 नाली के आसपास होंगे। समझ नहीं आ रहा था कि गाँव में शुरुआत कहाँ से करूँ। फिर अपनी पत्नी से चर्चा की, उन्होंने और मैंने दृढ निश्चय कर बीड़ा उठाया कि हम अपनी खेती को आबाद करेंगे। आज हम दोनों ने अपनी 50 नाली बंजर हो चुकी ज़मीन को आबाद कर लिया है। कल अगर हमारे बच्चे गाँव लौटते हैं तो उनके लिए यह प्रमाण रहेगा कि ये हमारे पापा ने आबाद किये तो हम भी कर सकते हैं।
कर्नल नेगी कहते हैं पहाड़ों में आजकल कीवी व एप्पल प्लान योजनायें चल रही हैं लेकिन मैं इसके पक्ष में नहीं हूँ। मैं पहाड़ में अपने वही नेटिव प्लांट के फलदार वृक्ष लगा रहा हूँ जिनका सुख हम बचपन से अब तक भोगते आ रहे हैं। हमारा एक अखरोट का पेड़ है जो मेरे दादा जी ने लगाया था, वह 125 साल का हो गया है लेकिन आज भी हमारी तीसरी पीढ़ी उस पेड़ के अखरोट खा रही है। मुझे लगा कि हमें भी कुछ ऐसा ही करना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी हमें मेरे दादा जी की तरह याद रख सकें। मैंने अन्य नेटिव फलदार वृक्षों के साथ अपनी ज़मीन में 70 पेड़ अखरोट लगाए हैं जिन पर अब फल आने को तैयार हैं।
उन्होंने कहा हम उसी नेटिव खेती को बढ़ावा दे रहे हैं जो हमारी ज़मीन के अनुकूल है। हम खोदा, झंगोरा, राई, पालक, आलु चोलाई, अदरक, प्याज, लहसुन इत्यादि को उगा रहे हैं। आज सम्पूर्ण जैविक अन्न का रस्वादन हमें निरोग रखे हुए है और हम दोनों ही अपने थाती माटी के ग्रामीण जीवन में प्रसन्न हैं।
कर्नल नेगी कहते हैं कि उन्हें दुःख इस बात आज पहाड़ में शराब हमें इतना पी गई है कि हमारी पीढ़ियां किसी काम की नहीं रही। मर्द शराब पीकर किसी काम का नहीं रह गया, औरतें आखिर क्या क्या करेंगी। बहाने तो बहुत हैं कि खेतोँ में कुछ नहीं हो रहा क्योंकि मनरेगा जैसी योजनायें कुछ करने नहीं दे रही। इसी धरती ने हमारी कई पीढ़ियां पाली हैं, आज हमें उसी से बिमुख हो रहे हैं। यह बात दिल को बहुत कचोटती है और सच कहें तो कई बार यह देख आँखें नम हो जाया करती हैं।
एक कर्नल रैंक से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने गाँव ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड में अपने सोशल प्लेटफार्म के माध्यम से चर्चाओं में आये बीना यशपाल (पत्नी -पति) की यह जोड़ी आजकल कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हैं। महानगरों में जीविकोपार्जन करने के लिए संघर्षरत कई युवाओं ने इन्हें प्रेरणास्रोत मानकर घर वापसी कर दी है। यही तो रिवर्स माइग्रेशन की परिभाषा है और बाकी है क्या?