Tuesday, December 3, 2024
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गोरखाली (नेपाल) ढाका टोपी! सम्मान और वीर-गाथा का प्रतीक…..! सीडीएस विपिन रावत व उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल एल एस रावत के सिर भी सजी यही टोपी।

◆गोरखाली (नेपाल) ढाका टोपी और भारतीय सैन्य जनरल! सम्मान और वीर-गाथा का प्रतीक…..!

◆ बोगरा बटालियन ने अपने वार मेमोरियल में अपने गोल्डन जुबली डे पर दी सीडीएस विपिन रावत को श्रद्धांजलि।

◆ सीडीएस जनरल विपिन रावत व उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत रहे 5/11 गोरखा राइफल्स के कर्नल ऑफ द रेजिमेंट।

(मनोज इष्टवाल)

गोरखा बटालियन में ढाका टोपी की शान ही निराली है। ब्रिटिश काल में भारत विभाजन से पहले ढाका (बंगलादेश) में इस टोपी का निर्माण विशेष किस्म की सूत के इस्तेमाल से प्रचलन में लाया गया। आज भले ही यह टोपी सिर्फ नेपाली/गोरखाली समाज में विशेषत: अपनाई जाती है लेकिन यह सच है कि इस टोपी को विशेषत: बहादुरी का प्रतीत मानकर ब्रिटिश सरकार ने एक अलंकरण के रूप में गोरखा सैनिकों की बहादुरी के लिए तैयार करवाया था। इस टोपी के रंगों के आधार पर भी इस समाज के लोग टोपी पहनने वालों की पहचान करते थे। हर टोपी के रंग के अनुसार उसकी जाति का अनुमान लगाया जाता था लेकिन वर्तमान में यह मामूली सी बात हो गई।

ढाका टोपी या नेपाली टोपी का एक प्रकार है जो, नेपाल में बहुत प्रचलित है। यह टोपी जिस कपड़े से बनाई जाती है उसे ढाका कहते हैं इसी लिए इसका नाम ढाका टोपी पड़ा है। इस कपड़े का प्रयोग एक प्रकार कि चोली बनाने में भी किया जाता है जिसे नेपाली में ढाका-को-चोलो  कहते हैं। नेपाली टोपी का निर्माण सर्वप्रथम गणेश मान महर्जन ने नेपाल के पाल्पा जिले में किया था।

अब जबकि 5/11 गोरखा राइफल्स से 5वें जनरल व देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ विपिन रावत हैलीकॉप्टर क्रैश में शहीद हो गए तब इस टोपी का महत्व ज्यादा बनता है। यह टोपी उनके सिर पर सजने का साफ सा मतलब है कि यह टोपी सम्मान व वीर गाथा का ऐसा प्रतीक है जिसने भारत बर्ष की सरजमीं के लिए अपने खून के कतरे-कतरे पर विजयगाथा लिखी है। 

जनरल सैम होरमूजजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ ने ढाका टोपी धारण करने वाले गोरखा सैनिक के बारे में लिखा था- “अगर कोई ये कहता है कि वो मौत से नहीं डरता है, तो वो या तो झूठ बोल रहा है या फिर गोरखा है।” मानेकशॉ स्वयं भी ढाका टोपी पहनते थे। 

इसी ढाका टोपी को पहनने वाले सीडीएस विपिन रावत जिस 11 वीं गोरखा राइफल्स बटालियन की कमान सम्भालते थे उसकी स्थापना बर्ष यूँ तो 1918 वे रेजिमेंट सेंटर लखनऊ है, लेकिन 1 जनवरी 1948 को इस बटालियन की स्थापना पालमपुर, सांताक्रुज मुंबई में रेजिमेंटल सेंटरों के रूप में हुई थी।

इस रेजिमेंट का नारा है- “जय माँ काली, आयो गोर्खाली”। इसकी शौर्यगाथा में 1 परमवीर, 1 सैन्य क्रास, 3 अशोक चक्र, 1 पद्मभूषण, 7 परम विशिष्ट सेवा मेडल, 9 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 11 वीर चक्र, 5 शौर्य चक्र, 35 सेना पदक, 14 विशिष्ट सेवा पदक व 18 उल्लेखित प्रेषक हैं। जिन्हें युद्ध सम्मान के रूप में शिंगो नदी, बोगरा नदी, बटालिक थियेटर सम्मान, पूर्वी पाकिस्तान 1971, जम्मू कश्मीर 1971 इत्यादि प्रमुख हैं।

मैंने पूर्व मंत्री व पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल टीपीएस रावत, लेफ्टिनेंट जनरल शक्ति गुरुंग, ब्रिगेडियर सीबी थापा, ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग, कैप्टन कार्की सहित कई उच्च पदस्थ फौजी अफसरों के सिर में यह टोपी बड़े सम्मान के साथ सजी देखी लेकिन जब इसका इतिहास जाना तो गर्व की अनुभूति हुई। नेहरु इंस्टीटयूट ऑफ़ माउंटेनियर्स के कर्नल अजय कोटियाल के सिर में भी यही टोपी सजी देखी तब लगा कि जरूर इस टोपी का कोई आधार रहा होगा।

यह टोपी नेपाल की राष्ट्रीय टोपी है। इस प्रकार कि टोपियां अफगानिस्तान के लोगों द्वारा भी पहनी जाती हैं, विशेष रूप से अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई इसे पहनते हैं। इसको इंडोनेशिया के लोगों द्वारा भी पहना जाता है।

अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए मैंने गोरखाली समाज में इसका महत्व तलाशने के लिए उमा उपाध्याय जी से सहायता मांगी। उन्होंने बताया कि-बचपन मैं मेरे दादाजी ने मुझे बताई थी, टोपी हिमालय का चिन्ह है एक तरफ हिमालय सा उठा हुआ और दूसरी तरफ थोड़ा समतल मैदान सा इसलिए जिस प्रकार हिमालय को देखने के लिए सर उठाते हैं उसी प्रकार गोरखा, नेपाली के सर की टोपी को भी उसके बहादुरी और ईमानदारी का प्रतीक मानते हुए हिमालय की तरह सम्मान से देखा जाता है गोर्खाओं के सर मैं लगाने वाली टोपी को ढाका टोपी क्यों कहते हैं,क्योंकि जब भारत का बिभाजन नहीं हुआ था। उस समय ढाका जो की आज बांग्लादेश की राजधानी है वो भारत मैं एक स्थान था जहाँ ये विशेष प्रकार का सूती कपडा बनता था नेपाल जाते हुए फौजी लोग इस कपडे को ढाका से लेकर जाते थे और इस कपडे का टोपी, शाल, चौबन्दी इत्यादि बनाकर पहनते थे इसलिए इस टोपी को ढाका टोपी कहते हैं या इस कपडे से बनाये पहरावे को ढाका पहिरन कहते हैं। जिस प्रकार आज भी भारत से नेपाल जाने वाले फौजी को लाहुरे कहते हैं जो लाहोर है जो कभी फौजियों की भर्ती सेंटर हुआ करता था बिभाजन हो गया लाहौर पाकिस्तान मैं है परन्तु आज भी नेपाल में फौजियों को लाहुरे ही कहते हैं।

नेपाल में ढाका टोपी पर कई गीत व फिल्म भी निर्मित है। मेरी इस जानकारी के अलावा भी किसी मित्र के पास इस टोपी से सम्बंधित कोई और इतिहास भी हो तो कृपया शेयर करने का कष्ट करें ताकि लोक संस्कृति में सम्मिलित इस टोपी की विरासत को और महत्व मिल सके।

5/11 गोरखा की बोगरा बटालियन ने दी सीडीएस जनरल विपिन रावत को श्रद्धांजलि।

न. 9414129A नायक सुरेश कुमार राई अल्फा कम्पनी 5/11 गोरखा राइफल्स ने जानकारी देते हुए बताया कि विगत 13 वीं  बोगरा बटालियन का गोल्डन जुबली डे मनाया है, इसी दिन 5/11 गोरखा ने बंगलादेश के बोगरा सीटी को 1971में कब्जे में लिया जिसका सम्मान हमें अलग से 5/11 गोरखा की बोगरा बटालियन के रूप में मिला। और इसी बर्ष देहरादून में बोगरा बटालियन का वार मेमोरियल स्थापित किया गया। जिसका  13 दिसम्बर अर्थात विगत दिवस गोल्डन जुबली डे मनाया गया।

11 जेआरआर के ट्रेनिंग सेंटर सन दिसम्बर 1975 दार्जलिंग में शिफ्ट हो गया था । तब सूबेदार मेजर सुरेश राई रंगरूट थे। इसी दौरान 5/11 आईएमए से प्रशिक्षण प्राप्त कर जनरल रावत ने बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुए। वे 5/11 गोरखा राइफल्स की अल्फा कम्पनी में शामिल हुए। ये मेरा सौभाग्य है कि मैं सबसे पहले उनके सहायक के रूप में उनके साथ रहा। जनरल विपिन रावत ने जब सन 1978-78 में हमारी बटालियन जॉइन की थी तब मेजर बी के बोपन्ना ने मुझे कहा था कि तुम्हारे गांव से लेफ्टिनेंट विपिन रावत आया है तुम्हे उनके सहायक के रूप में रहना होगा। सुरेश कुमार राई कहते हैं कि उनका हर्ट ट्रांस्पिरेन्ट नहीं होता तो वह भी अब सेवानिवृत्त होते और हो सकता है वे विपिन साहब के साथ काम कर रहे होते। 

वे गर्व से कहते हैं कि आज जब हमें अपने वार मेमोरियल में जाकर अपने देश के गौरव प्रथम सीडीएस विपिन रावत साहब को सलूट कर श्रद्धांजलि देनी पड़ी तब एकाएक वह छरहरे बदन का नौजवान अफसर मेरी आँखों के आगे मंडराने लगा जो तब लेफ्टिनेंट के रूप में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा यह 5/11 गोरखा राइफल्स की गौरव गाथा का एक जीता जागता उदाहरण है कि जनरल विपिन रावत के पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत भी 5/11 गोरखा राइफल्स से ही थे वे पहले वे 5/11 गोरखा राइफल्स के कर्नल ऑफ द रेजिमेंट रहे और बाद में उनके पुत्र जनरल रावत ने यह जिम्मेदारी संभाली।

अपने गोल्डन जुबली सेलेब्रेशन के मौके पर जहां बोगरा बटालियन द्वारा अन्य युद्ध शहीदों को श्रद्धांजलि दी गयी वहीं ब्रिगेडियर सीबी थापा सहित बोगरा बटालियन के सभी सेवानिवृत्त अधिकारियों व सैन्य बल ने देश के प्रथम सीडीएस जनरल विपिन रावत को श्रद्धांजलि दी व उन्हे सलूट कर पुष्पांजलि अर्पित की। सुनिये क्या कहा ब्रिगेडियर सीबी थापा ने:-

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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