इनके दिल ने भी धोका दिया मेरे दिल ने भी! – नेगी…! लेकिन पब्लिक नहीं दे सकती- घना..!
(मनोज इष्टवाल)
कला कोई भी हो अगर उसे परखने वाले पारखियों के पास सुनार की रत्तादाणी जैसी वस्तु उनकी नजर व ह्रदय हो तो सोने पर सुहागा! ऐसा ही विगत दिनों पर वह नजारा दिखने को मिला जब उत्तराखंड की लोक संस्कृति के अलग-अलग विधा के दो लोक सम्राट एक साथ मंच पर इकठ्ठा हुए और उन्होंने ह्रदय से उन अनछुवे पहलुओं को उजागर किया जो एक कलाकार की निजी जिन्दगी से जुड़े निजी अनुभव होते हैं! जहाँ अपने गीतों पर रोतों को हंसाकर प्रदेश के भौगोलिकता व प्राकृतिक सौन्दर्य से लकदक छटाओं पर वे खुद पैदा करते गीत हों चाहे खुदेड़ हृदयों में टीस पैदा करने वाले गीत! या फिर आम जिन्दगी को गुदगुदाते प्रेमरस में डूबे अनंत सुर..! ये जब भी कानों के रास्ते दिल में उतरे तो इनकी आवाज में तरबतर ये शब्द अपने पहाड़ की हर कहानी बयाँ करते रहे! ऐसे गीतकार, कवि, संगीतज्ञ व गायक नरेंद्र सिंह नेगी मंच पर हों तो वहां की आवोहवा अपने आप बदल जाती है! सेब से लाल झझकार लेकिन चेहरे पर सटाइल …! जिस पर नजर पड़े और फिर बातों के बीच वो जुल्फों की झटक, मुंह की लपक और उससे निकलने वाले शब्दों की झलक भला कौन है जो हंस न पड़े! जिनके मुंह से शब्दगंगा का जब प्रवाह छूटता है तो वह सतरंगी हो जाती है और जिसके चमकीले दांत हों उसकी वाह –वाह और जिसके न हों तो उसकी बात ही क्या! सबको खिलखिलाने का यह हुनर सिर्फ और सिर्फ घना नन्द जैसे हास्य कलाकार में ही मौजूद है!
उनका 66 वां जन्मदिन का जश्न भले ही दिन में था लेकिन कलापसंद लोगों से पूरा प्रेस क्लब भरा हुआ था! मंचासीन इतने चेहरे कि गिनने मुश्किल हो जाएँ ! सच कहूँ तो घना भाई का वश चलता तो वे सभी को मंच पर बुला लेते ताकि कोई बुरा न माने! इस कार्यक्रम की खासियत यह रही कि जितने मंच पर बोलने वाले अपने अनुभव बाँट रहे थे उतने ही मंच के नीचे दर्शक दीर्घा में बैठे व्यक्तियों के पास भी हास्य कलाकार घना नन्द गगोडिया से जुड़े अनुभव थे! खैर बोलने वालों की पंगत इतनी लम्बी थी कि किसके विचार साझा करूँ और किसके नहीं यह अदगद (असमंजस) रही! मन कर रहा था कि मिनट टू मिनट हर एक को लिखूं व यादें साझा करूँ लेकिन यह सम्भव न था! लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी देरी से पहुंचे! मेरा कौतुहल था कि इस दौरान जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण को सुनूँ लेकिन थोड़ी देर बाद पाया कि जाने वह कहाँ गायब हो गए! बाद में पता चला कि उन्हें उसी दौरान किसी एनी कार्यक्रम में जाना था!
लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने जैसे ही मंच से यादें साझा करनी शुरू की मैं लाइव हो गया ताकि उनकी बिलक्षण बातें लाइव सब तक पहुंचे! खैर मैं ही नहीं कई और लोगों के भी मोबाइल कैमरे उन्हें रिकॉर्ड कर रहे थे! लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने जब अपनी बातें साझा करते हुए कहा कि उन्होंने घना नन्द के साथ पहला कार्यक्रम आल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट दिल्ली में दिया और मेरे गीत के बाद मैंने घना भाई को मंच पर जाने के लिए कहा तो वे बोले- मैं क्या करूँ मंच पर जाकर! यहाँ तो लोग गीत सुनेंगे और …! तब मैंने कहा- तुम अपनी हास्य कलाकार की छवि में आओ! घनानन्द स्टेज पर गए और हंसाने वाली बाद बोली लेकिन कोई नहीं हंसा वह मुंह लटकाए आये और बोले- यहाँ तो कोई हंसा नहीं! खैर फिर मैंने गीत गाया और फिर उन्हें मंच पर भेजा! अब तक घनानंद दर्शकों की नब्ज टटोल चुके थे और जब दुबारा गए तो हंसाकर ही लौटे! बस यहीं से एक ऐसे कलाकार का जन्म हुआ जिसने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा! कोई कर्मों से कलाकार होता है कोई जातिगत से लेकिन घना भाई ऐसा कलाकार है जो जन्मजात कहा जा सकता है! उसके अंदर कला का कीड़ा जन्मजात है!
नेगी बोले – घनानन्द को उन्होंने उनकी बेटी की विदाई पर भी गंभीर होते नहीं देखा! उनका सारा जीवन हास्यमय है और वह कभी सीरियस नहीं होता! चाहे अंदर से वह कितना भी कभी रोया हो लेकिन बाहर वे आंसू आज तक नहीं दिखे! यही कारण भी है कि हम सबके लिए तब से लेकर अब तक घना भाई की छवि में एक ही व्यक्तित्व दिखाई देता है और वह है उनका हास्य श्रृंगार!
दिल्ली की स्वतंत्र भारत मिल के एक कार्यक्रम का जिक्र करते हुए लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि उस कार्यक्रम में इतनी भीड़ थी जिसकी गिनती करना मुश्किल है फिर भी कहा जा सकता है लगभग दो लाख लोगों की भीड़! मंच पर घना भाई थे तभी पता चला कि फिल्म स्टार राजेश खन्ना आये हैं. उनके पीएस ने घना भाई के हाथ से माइक छीना और अभिनेता राजेश खन्ना के आने की सूचना दी! मुझे आयोजकों ने राजेश खन्ना को माला पहनाने के लिए कहा तो मैंने साफ़ मना करते हुए कहा- माना कि वो विश्व प्रसिद्ध अभिनेता हैं और हम भी दिल से उनकी इज्जत करते हैं लेकिन उनकी तरह हम भी आपके मेहमान कलाकार ही हैं अत: एक मेहमान दूसरे मेहमान को माला क्यों पहनाये यह आप लोगों का दायित्व है! राजेश खन्ना अपना भाषण समाप्त कर चल दिए और फिर मुझे मंच मिला तो मैंने मंच से कहा- जो खन्ना की वजह से आये वो जा सकते हैं और जो घन्ना की वजह से आये हैं वे बैठे रहें! यकीन मानिए कोई भी खन्ना की वजह से वहां से नहीं गया बल्कि घन्ना की वजह से बैठा रहा! इसके बाद चुनाव का दौर था और राजेश खन्ना साउथ दिल्ली से सांसद का चुनाव लड़ रहे थे उनका मेरे लिए कम्पेनिंग के लिए फोन आया लेकिन मैंने साफ़ मना कर दिया!
अक्सर मैंने अपने ही बीच के कई कलाकारों से यह सुना है कि नरेंद्र सिंह नेगी पूरी तरह प्रोफेशनल हैं लेकिन मेरा मानना है कि अगर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी प्रोफेशनल होते तो वह घन्ना जैसे कलाकार की चिंता छोड़कर राजेश खन्ना जैसे नाम से जुड़कर लाखों रूपये उसी चुनाव में कमा सकते थे लेकिन उन्होंने एक अदद अपने साथी कलाकार के उस माइक छीनने वाले प्रकरण को अपमान समझते हुए राजेश खन्ना की वह लाखों की ऑफ़र ठुकरा दी! इसे आप क्या कहेंगे! मुझे नहीं लगता कि इसके बाद फिर कभी स्वतंत्र भारत मिल वालों ने नरेंद्र सिंह नेगी को बुलाया होगा! ऐसे एक आध नहीं और भी कई उदाहरण हैं जब उन्होंने अपनी कला का मूल्य नहीं लगाया जबकि उन्हें लोग मुंह माँगा दाम देने को तैयार रहे! यह बात इस में लिखना इसलिए जरुरी था क्योंकि जब आपस में कलाकारों का अहम टकराता है तो वह अतीत के पन्ने नहीं खंगालता! यह उन सब उभरते हुए कलाकारों के लिए एक सबक है क्योंकि यही चीजें किसी ब्यक्तित्व को बड़ा बनाती हैं!
मैं एक ऐसे शख्स की यहाँ अवश्य प्रशंसा करूँगा जो मैनेजमेंट का बहुत बड़ा खिलाड़ी कहा जा सकता है! संगीतकार राजेन्द्र चौहान की अगर यहाँ बात न हो तो सब बेकार है! मैंने इस व्यक्ति को आज से लगभग 25 साल पहले से बेहद करीब से रीड किया है और जो अध्ययन किया उसमें इसे खरा सोना ही पाया है! इस कलाकार ने हरदम हरपल जहाँ अपनी अर्धांगनी लोकगायिका कल्पना चौहान के साथ लोक संस्कृति का जन जागरण किया वहीँ दर्जनों ऐसे चेहरों को प्लेटफार्म दिया जिनमें कला का हुनर है! चाहे एनसीआर इंदिरापुरम गाजियाबाद/दिल्ली का महाकौथीग हो या फिर विकलांग लोक कलाकारों के लिए प्लेटफार्म! या फिर अब उन कलाकारों को जन्मदिन पर अविश्मरणीय पल देना जिन्होंने प्रदेश की संस्कृति व लोक समाज का ध्वजवाहक बन हमें हम होने का गौरव दिया! यह व्यक्ति हर दम प्रथम पंगत पर मौजूद मिला!
हास्य कलाकार घनानन्द गगोडिया के इस जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम में जो हंसी के बीच शब्द घुलकर चन्दन बने वह थे लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी व हास्य कलाकार घना नन्द के बीच यह संवाद:- नरेंद्र सिंह नेगी (बिमारी के दौरान दोनों ही मरणासन्न तक पहुँच गए थे) – इनके दिल ने भी इन्हें धोखा दिया और मेरे दिल ने भी! घनानंद- लेकिन पब्लिक नि दे सकदी! (लेकिन पब्लिक नहीं दे सकती)! नेगी जी हंसते हुए- हमन यमराज थैं धोखा दे दे!
ये वे शब्द थे जो भले ही वहां हंसी की फुहार में लोगों के अन्तस् की गहराई में जाकर हवा के बेग में फुर्र हो गए लेकिन इन शब्दों की पीड़ा को हमें जरुर समझना होगा जैसे कि प्रसंगवश लोकगायिका कबूतरी देवी हैं जिन्हें उनके मरने से पहले पूछा नहीं गया लेकिन मरने के बाद कई दिनों तक सोशल साईट में वही छाई रही! बहरहाल उनके जन्मदिन पर यूँ तो जाने कितने लोगों ने उन्हें बूके देकर शुभकामनाएं दी लेकिन उत्तराखंड प्रेस क्लब के अध्यक्ष भूपेन्द्र कंडारी, व संगीतकार संजय कुमोला व गायिका मीना राणा ने भी उन्हें इस अवसर पर शाल ओड़ाकर सम्मानित किया! लोसा यानि लैंसडाउन ओल्ड स्टूडेंट असोशियशन द्वारा भी हास्य कलाकार घनानंद को इस अवसर पर सम्मानित कर यादें ताजा की! आपको बता दें कि लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी व हास्यकलाकार घनानंद पूर्व में लैंसडाउन के छात्र रहे हैं! इस दौरान मंच पर वरिष्ठ गणेश खुगशाल गणी, समाजसेवी चंदर कैंतुरा, जागर गायक प्रीतम भरतवाण, समाजसेवी प्रकाश थपलियाल, समाजसेवी रघुबीर बिष्ट, हास्य कलाकार किशना बगोट, डॉ. सतीश कालेश्वरी इत्यादि शामिल थे!