पूर्व मुख्यमत्री भगत सिंह कोश्यारीजी के नाम एक पत्र ………….
(वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास की कलम से)
कोश्यारीजी सादर प्रणाम…
आप उत्तराखंड के एक बड़े नेता हैं.। बड़े भाई भी हैं। मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। निश्चित संविधान कहता है कि जनप्रतिनिधियों का आदर होना चाहिए। हम हमेशा आदर करते आए हैं। फिर चाहे गोविंदबल्लभ पंत हों नित्यायानंद स्वामीजी हों या आज के मुख्यमंत्री पुष्कर धामीजी । आपका भी आदर करते हैं।
उत्तराखंड के नागरिक के नाते मुझे बहुत अजीब लगा जब आपने उत्तराखंड हाईकोर्ट के स्थान के बदलने की बात पर गढवाल-कुमाऊं का कहीं भेदभाव मन में रखा । कई साल पहले कुमाऊं में गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। शायद ही एक भी गढवाली ने यह कहा हो कि कुमाऊं में क्यों ? गढवाल में कृषि विश्वविद्यालय होना चाहिए। जब एनडी तिवारी ने कुंमाऊ के तराई क्षेत्र को औद्योगिक रूप से सजाया तो पूरा हिमालयी क्षेत्र खुश हुआ।
आपको याद है जब गढवाल विश्वविद्यालय के लिए आंदोलन चला था और निरक्षर महिलाओं ने आंदोलन किया था तो एक भी आंदोलनकारी ने यह नहीं कहा था कि विश्वविद्यालय केवल श्रीनगर में हो। कहा था इन पहाड़ों के बच्चों को विश्वविद्यालय. दो। उस आंदोलन का प्रताप था कि एक नहीं दो विश्वविद्यालय बने । एक गढवाल में दूसरा कुमाऊं मे । उत्तराखंड आंदोलन की याद करते हुए हम खटीमा मसूरी मुजप्फरनगर श्रीनगर हर जगह के शहीदों को याद करते हैं। विश्व युद्ध से लेकर आज तक के युद्धों में शहीदों को माला अर्पित करते हैं। हम गौरादेवी टिंचरी माई का जितना सम्मान करते हैं उतना ही विश्नी देवी और कुंती देवी का भी।
आप शायद विश्वास न करें लेकिन लोकसंगीत में मैं पहला आदर गोपाल बाबू गोस्वामी को देता हूं। मुझे रेखा धस्माना उनियाल अनुराधा निराला बाद में याद आती हैं पहले पवन राजदीप की दादी कबोतरी देवी का स्मरण मन में आता है। वचनी देवी की तरह कबोतरीजी के संगीत संसार के लिए अपार श्रद्धा मन में है।
मुझे कितना अपार सुख मिला था जब अनु मलिक के पिता संगीतकार सरदार मलिक ने कहा था बेटा मैं अल्मोड़ा में उदयशंकर जी की अकादमी में नृत्य विधा को भी सीख कर आया हूं। बहुत बड़े संगीतकार थे सरदार मलिक।
बचपन में एक गीत को सुना करता था बेडू पाको बार मासा । इस गीत को सुनते सुनते मेरे मन में होता था कभी अल्मोड़ा की नंदा देवी के दर्शन जरूर करूंगा। पहले स्कूल कालेज की पढाई फिर पत्रकारिता के दो तीन दशक के विचरण ऐसा अवसर ही नहीं आया कि नंदा मंदिर में जा सकूं। मुंबई में ही कई साल गुजर गए। जिस दिन इस मंदिर के प्रांगण में पहुंचा मेरी आंख भर नम हो गई। मुझे पूरा बचपन याद आया। कोश्यारी जी इस फीलिंग को आप नहीं समझ सकते हैं। आपकी सारी चीजें राजनीति तक सिमट कर रह जाती हैं। केवल वोट से आगे और अपने लोग बेहतर जगह सेट हों इससे ज्यादा शायद आप नहीं सोच पाते।
जब कुमाऊँ पहली बार दर्शन का मुझे मौका मिला तो मेरे मन में दो बातों की ललक थी । एक तो अल्मोडा का लाल बाजार देखना, दूसरा सुमित्रानंदन पंतजी की कौशानी को देखना। लाल बाजार में घूमते हुए मैं जब सड़़कों पर बिछे उन पत्थरों को देख रहा था तो विवेकानंदजी को भी याद कर रहा था। सुमित्रानंदन पंत की उस मेज कुर्सी को देखा जिसमें वो लिखा करते थे। मुझे पता नहीं कि आप कबोतरी देवी , सुमित्रानंदन पंत, मोहन उप्रेती को कितना याद कर पाते हैं। लेकिन मेरी स्मृतियों में ये नाम हमेशा रहते हैं।
जब मैं प्रख्यात संंगीतकार सलिल चौधरीजी से मिला तो वो अनुभूति अलग थी। मधुमति का संगीत कुमाऊ की वादियों में ही रचा गया था। आजा रे परदेशी मैं तो कब से खड़ी तेरे द्वार अंखिया थक गई पंथ निहार जैसे पहाड़ी राग के गीत की प्रेरणा इसी उत्तराखंड की थी। चढ गयो पापी बिछुआ में असम के बिहू और उत्तराखंड के लोकसंगीत की लहक थी। तब उन्होंने कहा था पहाडों का यह संगीत मैंने पहाडों से ही सीखा था। उस दिन मुझे कुमाऊं य़ा गढवाल नहीं बल्कि उत्तराखड पर गर्व हुआ था।
बिल्कुल ऐसे ही जैसे एक दिन कल्याणजी आनंदजी ने मुझे कहा वेदजी राहीजी कैसे हैं, कहां है आजकल! मेरी तब समझ में नहीं आया कि ये चंद्र सिंह राही के बारे में कह रहे। मैंने कहा कौन राहीजी । उन्होंने कहा अरे वेदजी आप राहीजी को नहीं जानते वो जो डमरू जैसा कुछ है ( हुड़का ) बजा कर गाते हैं। मैंने कहा अरे आप उन्हें जानते हैं। सच कहूं तब भी मुझे अपार सुख मिला था। कितना वैभव और प्रतिभा है मेरे उत्तराखंड में।
आज भी कांग्रेस बीजेपी की राजनीति से अलग कई गढवाली आपको कहते मिल जाएंगे कि काश…एनडी तिवारी 1991 का लोकसभा चुनाव जीत जाते। देश के पीएम बन जाते।
छोटी बातों से ऊपर उठिए कोश्यारीजी। आपको बताऊं सातवीं कक्षा में पढता था । पौड़ी मेसमोर इंटर कालेज में..! मेरे से एक साल बडे सुरेश पंत साथी को तलाशने में मैने तीस साल गुजारे। उनके पिताजी का मेरठ ट्रांसफर हो गया था तबसे नहीं मिले थे। उनको तलाशते तलाशते न जाने कितने सुरेश पंतों से मेरी दोस्ती हो गई। बस मुझे एक ही चीज pता थी कि वो परिवार बहुत विलक्षण था कला संगीत अध्ययन में बहुत आगे था। मै साथिय़ों से कहता था कि सुरेश या तो आईएएस होगा या अमेरिका या मुंबई भाभा सेंटर में साइंटिस्ट होगा। आखिर वो मिल गए। उड़ीसा में आईएफएस हैं। उनसे मिलना आज तक नहीं हुआ लेकिन फोन में संपर्क हो गया है।
कोश्यारीजी ये सब बातों को इसलिए कह रहा हूं कि हर चीज
में कुमाऊं गढवाल मत लाइएं। इस देवभूमि को बड़े स्तर पर देखिए। यहां बद्री केदार यमुना गंगा नंदा बहुत बडा संदेश देती है।
नैनीताल हाईकोर्ट को स्थानांतरित करने के लिए बात उठ रही है तो केवल इसलिए कि यह सुंदर पर्यटन स्थल को सहज सुंदर रहने दिया जाए। हाईकोर्ट को किसी भी कुमाऊं के शहर में या फिर गढवाल के किसी शहर में स्थापित किया जा सकता है। या सबसे अच्छा हो गैरसैण मे स्थापित किया जाए। सोचिए गैरसैण को राजधानी बनाने के लिए कुमाऊं से ज्यादा गढवाल से आवाज आई हैं। गढवाल से आवाज आई कि देहरादून से ज्यादा अच्छा गैरसैण राजधानी हो । इसके पीछे तर्क दिया गया कि गैरसैण कुमाऊं और गढवाल के बीच है। और सच कहिए तो गढवाल के बीच देहरादून का राजधानी बनना तो मुसीबत हो गया है।
आपको विश्वास न हो लेकिन जब कुमाऊं की ही रिना शक्तू अंटाकर्टिका में पहुंच कर वापस लौटी थी तो मैं देहरादून से दिल्ली पहुंचने के बाद 11 बजे रात उनका साक्षात्कार करने उनके घर पहुंचा था। अपनी थकान भूल गया था। तब उनके नाम से कोई परिचित नहीं था। देहरादून का तबका सचिवालय मंत्रालय कोई नहीं जानता था कि रिना शक्तू और एवरेस्ट में पांच बार फतह करने वाले उनके पति लवराज शक्तू कौन हैं। क्या आपको एक पल नहीं लगता कि गढवाल की बछेंद्री पाल और कुमाऊं की रिना शक्तू गौरव के प्रतीक है। वंदना कटारिया ने हाकी में हमको कितने विलक्षण क्षण दिलाए। अब एक और बेटी मानसी चौहान भारतीय हाकी टीम में शामिल हुई है। ऐसे में क्या हम सब कुमाऊ गढवाल करते रहें।
बस ध्यान रखिए जब भी कोई कहता है कि पहाडों की कोई अच्छी चीज खिलाइये तो मै कहता हूं हल्द्वानी की सिंगोरी बाल मिठाई और मुनस्यारी की राजमा आपके लिए लाउंगा। और ले भी जाता हूं।
पूर्व मुख्य़मंत्री त्रिवेंद्रजी की इस की बात से सहमत हूं कि उत्तराखंड विविध संस्कृतियों का एक क्षेत्र है । अध्यात्म कला संस्कृति का केंद्र है। देश भर के लोग ललक से इस राज्य की ओर देखते हैं। इसे सर्कीणता में न देखें। चार वोट को प्रभावित करने के लिए चार धामों के उत्तराखंड को हल्का न करें। शायद कुमाऊं के लोग भी आपसे यहीं कहेंगे। क्योंकि हम सब उत्तराखंडी हैं। जिनके लोग विश्व युद्ध के बाद से आज तक शहीद होते आए हैं। इस भूूमि का सम्मान कीजिए । यह उत्तराखंड के शहीदों का प्रताप है कि उत्तराखंड के साथ साथ छत्तीसगढ और झारखंड के लोगों की अभिसाषा भी पूरी हुई।
गढ-कुमौ का एक गीत सुनिये जिसे गोपाल बाबू गोस्वामी ने गाया था- रंगीलो गढदेश मेरो छबीलों कुमाऊँ।
(यह पत्र इसलिए भी लिखा है आप लोगों के नेता होने के बावजूद बाहर के कुछ माफिया दलालों भ्रष्ट लोगो ने राज्य का संहार किया है । इसे जम कर लूटा है । राज्य सिसकता रहा। उपर से गढवाल कुमाऊं )