Saturday, July 27, 2024
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नंदाकिनी नदी का जल क्यों नहीं चढ़ता मंदिरों देवस्थलों में…! क्यों स्थानीय लोग नहीं पिया करते थे/हैं इसका जल..?

नंदाकिनी नदी का जल क्यों नहीं चढ़ता मंदिरों देवस्थलों में...! क्यों स्थानीय लोग नहीं पिया करते थे/हैं इसका जल..?

नंदाकिनी नदी का जल क्यों नहीं चढ़ता मंदिरों देवस्थलों में…! क्यों स्थानीय लोग नहीं पिया करते थे/हैं इसका जल..?

(मनोज इष्टवाल)

बात अचम्भित करने वाली है क्योंकि आज अचानक नंदा देवी राज जात 2013 के दौरान लिखी डायरी के पन्ने पलट रहा था कि देखा नंदाकिनी नदी के जल पर मैंने बहुत ही सूक्ष्म कोई नोटिंग लिखी हुई है। उस नोटिंग को पढ़ा तो लगा आप सभी से इस बात को शेयर करना चाहिए।

क्षेत्रीय विद्वानों व पंडितों ने जो जानकारी इस नदी के जल के बारे में मुझे दी है वह यह है कि नंदाकिनी नदी का उदगम रूपकुंड से होने के कारण इस नदी का पानी सूतक समझा जाता है, क्योंकि रूपकुंड में आज भी हजारों-हजार नरकंकाल पड़े हैं व राजा यशधवल की पत्नी व माँ नंदा की बहन बल्लभा का यात्रा के दौरान गंगतोली गुफ़ा में प्रसव होना माना गया है। जिसे वर्तमान में बल्लभा स्वीलडा के नाम से पुकारा जाता है।

मुख्यत: रूपकुण्ड में इकट्ठा होने वाला जल त्रिशूल पर्वत के नंदाघुँघटी से बर्फीले ग्लेशियर में होता है जो आगे चलकर नन्दाकिनी नदी के रूप में जानी-जाती है। नंदाकिनी नदी गंगा नदी की पांच आरंभिक सहायक नदियों में से एक है। यह नदी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर नंदप्रयाग स्थित है। यह सागर तल से लगभग 9202 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस नदी का मूल (उद्गम) त्रिशूल पर्वत की तलहटी पर स्थित नन्दाघुँघुँटी से है, जिसके पास शीलासमुद्र नामक विशाल शिलाओं की सागर बना हुआ है। नन्दाकिनी नदी की लम्बाई 160 लगभग है, और नन्दप्रयाग में अलकनन्दा में संगम हो जाता है। गोपाल जी का मंदिर दर्शनीय है। नंदप्रयाग का मूल नाम कंदासु था जो वास्तव में अब भी राजस्व रिकार्ड में यही है। ऐसा कहा जाता है कि नन्दप्रयाग में नन्दराज नामक राजा ने यज्ञ किया था, जिस कारण इस प्रयाग को नन्दप्रयाग नाम से जाना गया।

कहते हैं प्रसव के दौरान जिस घास के बिछौने को इस्तेमाल किया गया उसे तकालीन समय में यहीं रूपकुंड के समीप से नंदाकिनी नदी में बहा दिया गया था। यही कारण है कि तब से नंदाकिनी नदी के जल से न आचमन होता है, न यह जल किसी मंदिर में चढ़ाया जाता है। और न ही यह किसी देवकार्य में इस्तेमाल किया जाता है। स्थानीय लोगों का तो यह भी कहना है कि अधिकतर क्षेत्रवासी इस जल को पीने के पानी के रूप में भी इस्तेमाल में नहीं लाते।

देखिये कितनी बड़ी बिडम्बना की बात है कि नंदाकिनी नदी के अलकनंदा में मिलते ही इसका जल पवित्र हो जाता है लेकिन इसे जब और जहाँ तक नंदाकिनी अस्तित्व में है वहां तक परित्याग्य माना गया है, जबकि आज पूरी नंदाकिनी में जाने कितनी लाशें बहकर आती हैं जाने कितने शहरों के मलद्वार नदी में खुलते हैं। जाने कितने प्रसवों के कपडे बहाए जाते हैं कितनी चिताएं जलाई जाती हैं।  प्रदूषित होती गंगा आज भी जीवनदायिनी माँ गंगे है और एक समय था कि इसकी पवित्रता को लेकर समाज बेहद गम्भीर था अगर ऐसा नहीं होता तो नंदाकिनी नदी के इतिहास में ये अध्याय न जुड़ा होता।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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