सवाल है कि गरमी से मौतें क्यों हुईं। हकीकत यह है कि अपने देश में असामान्य मौसम को लेकर आम जन को पहले से सचेत करने का कोई प्रभावी सिस्टम नहीं है। ना ही चिकित्सा व्यवस्था का दुरुस्त तंत्र है। यह पुरानी समझ है कि अक्सर लोगों की मौत अत्यधिक गरमी या ठंड से नहीं, बल्कि उनकी गरीबी के कारण होती है। जिन लोगों को पूरा पोषण मिलता है और जिनके रहने की उचित व्यवस्था रहती है, वे प्रकृति के ऐसे कहर का कम ही शिकार होते हैं। इसलिए इस समय खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में गरमी के कारण मौतों को जो खबरें चर्चित हैं, उन्हें इस बड़े संदर्भ में देखा जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश और बिहार में भीषण गर्मी से बीते कुछ दिनों में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है।
यूपी के बलिया जिले में बढ़ते तापमान के बीच पिछले पांच दिन में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है और लगभग 400 लोग अस्पताल में भर्ती हैं। ये खबरें ज्यादा चर्चा में नहीं आतीं, अगर यूपी सरकार गर्म हवाओं को इन मौतों का कारण मानने से इनकार नहीं करती। चूंकि बलिया जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक दिवाकर सिंह ने मौतों का कारण गर्म हवाओं को बताया था, इसलिए उनका तबादला कर दिया गया। ऐसे में यूपी सरकार के रुख से यह सवाल उठा है कि अगर गर्मी नहीं, तो फिर इतनी बड़ी संख्या में असामान्य मौतों का कारण क्या है? यूपी सरकार ने जिले में हुई मौतों की जांच के लिए निदेशक स्तर के दो अफसरों की टीम गठित की है।
अब जांच टीम किस निष्कर्ष पर पहुंचती है, यह जानने के लिए हमें इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन यह खुद सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि ज्यादातर मरे लोग 60 साल से अधिक उम्र के थे। बहरहाल, यह सच है कि बलिया सहित पूरे यूपी में इस बार असामान्य गरमी पड़ी है। उधर बिहार में भी भीषण गर्मी के कारण कई लोगों की मौत की खबरें हैं। तो बात घूम-फिर कर यहीं आ जाती है कि गरमी से मौतें क्यों हुईं। हकीकत यह है कि अपने देश में असामान्य मौसम को लेकर आम जन को पहले से सचेत करने का कोई प्रभावी सिस्टम नहीं है। ना ही चिकित्सा व्यवस्था का दुरुस्त तंत्र है। ऐसे में थोड़ा भी असामान्य मौसम अगर जानलेवा बन जाता है, तो उसमें हैरत की कोई बात नहीं है।