ढ़ोल की पूड़ों के बारह छिद्रक की डोरियों में कौन से देवताओं की स्थापना की गई है?
(मनोज इष्टवाल)
कितनी अजीब सी बात है ना! जिस ढ़ोल में सारी सृष्टि समाई है उसकी इस कलयुग में हम क्या कुगत करके रखते हैं। ज्यादात्तर औजी बाजगी गुणीजनों के घर ढ़ोल जिस तरह किसी कोने में बेकद्री के साथ पड़ा रहता है उस से स्पष्ट हो जाता है कि न यह ढोली ढ़ोल के बारे में जानता है न इनके पूर्वज ही ढ़ोल सागर के संबंध में कुछ जानते रहे होंगे जैसे हम जोर जबरदस्ती आवजी गुणीजन के कंधे से ढ़ोल उतारकर अपने कंधे में टांगकर मनोरंजन हेतु उस पर गजाबल चला कर पंडो नृत्य करने लगते हैं लेकिन जो ढ़ोल सागर का प्रकाण्ड विद्वान होगा वह ढ़ोल व ढोली को पूजता जरूर होगा। मैने हिमाचल की तमसा नदी घाटी व उत्तराखंड की रुपिन-सुपिन नदी घाटी व जमुना नदी घाटी में किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ करते समय ढ़ोल और ढोली की दीप धूप से पूजा होती है। लेकिन अफ़सोस की हमारे गढ़वाल क्षेत्र बिशेषकर पौड़ी गढ़वाल या टिहरी व अन्य जनपदों में न ढ़ोल को इतनी तवज्जो दी जाती है न ढोली को।
अब अगर ढ़ोल सागर में ढ़ोल संरचना की बात की जाय तो ढ़ोल के हर अंग प्रत्यंग में 33 कोटि देवताओं के वास का बर्णन आपको मिल जायेगा बशर्ते की आप ढ़ोल व ढ़ोल सागर के संदर्भ व उसकी गूढ़ता का अध्ययन करना चाहते हों या कर चुके हों। यह दुर्भाग्य है कि ढ़ोल सागर जैसा महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी हमारे औजी बाजगियों की तरह उपेक्षित रहा। यह व ढ़ोल सागर है जिसने ढ़ोल में सम्माहित होकर जाने कितनी सदियों तक ढोली को बोल व गज़बल एवं पांच अंगुलियों की थाप में कितने देवी देवता, मनुष्य, रणभूत व ऐड़ी आँछरी, बणद्यो, रक्तपिचासिनी नचाई हैं। रण बाजा में युद्ध की भूमि को रक्त से पाटा है, ख़ुशी व विजयोत्सव में मांगल धुन बजाई होंगी और कितने अवसरों पर मरघट यात्रा की होगी। यह आश्चर्यजनक है कि हम ढ़ोल की तालों में जंक, बिसौण, वेद कुरपाण, तीन ताल की धौड़, काँसू, छागल, जोड़, स्थाई, कृति, रहमानी, नौबत्त, चारतालिम, खड़ी चाल, चलती चाल, माटीछोळ, औजया, कुंतल, ताम्बावतार, धुंयेल, शबद इत्यादि में ज्यादा से ज्यादा इतना समझ पाते हैं कि इस समय शबद बज रहा है अब नौबत बज रही है या फिर धुंयेल…। बाकी के बारे में हमें कोई ज्ञान नहीं है। हमें ही नहीं वर्तमान के ढोली समाज के 20 प्रतिशत लोग भी उपरोक्त में से बहुत कम के बारे में जानते हैं। दादरा, कहरुआ से आगे भी ढ़ोल का वृहद स्वरूप व समाज है। इस लेख में हम बताएँगे कि माँ पार्वती के सवाल जबाब को किस तरह रूपांतरित कर ढोली ढ़ोल में डोरिका को पिरोकर जब दे रहा है व किस तरह वह हर छिद्र में एक देवता का वास करवा रहा है जिसे स्वयं ब्रह्मा बिष्णु महेश ने स्वरुप दिया है। ढ़ोल के हर छिद्र में डोरी पिरोने से कौन से सुर निकलते हैं :-
श्रीपार्वत्युवाच- अरे आवजी ढ़ोल का बारा सुर कौन-कौन बेदन्ती ? प्रथमे वेदणी कौन वेदन्ती ? द्वितिय वेदणी कौन वेदन्ती ? तृतीय वेदणी कौन बेदन्ती चतुर्थी वेदणी कौन वेदन्ती ? पंचमी बेदणी कौन वेदन्ती ? खष्टी वेदणी कौन वेदन्ती ? सप्तमी बेदणी कौन बेदन्ती? अष्टमे वेदणी कौन वेदन्ती ? नवमे वेदणी कौन वेदन्ती ? दशमे बेदणी कौन बेदन्ती ? अग्यारवें बदेणी कौन वेदन्ती ? बारवें वेदणी कौन वेदन्ती ?
श्री ईश्वरोवाच- अरे गुनिजन! प्रथमे वेदणी ब्रह्मा वेदन्ती, दुतिये वेदणी विष्णु वेदन्ती तृतीये बेदणी देवी वेदन्ती चतुर्थे वेदणी महेश्वर वेदन्ती पंचमे वेदणी पंच पांडव वेदन्ती खष्टमे वेदणी चक्रपति वेदन्ती सप्तमे वेदणी शब्द मुनि बोलिज् वेदन्ती अष्टमे वेदणी अष्टयकुली नाग वेदन्ती नवें वेदणी नव दुर्गा वेदन्ती। दशमे बेदणी देवशक्ति वेदन्ती। एकादशे वेदणी देवी कालिंका वेदन्ती। बारौं बेदणी देवी पारवती वेदन्ती । इति बारा सुर ढ़ोल की बेदणी बोलीजे।
श्री पार्वत्युवाच- अरे आवजी! ढोल की कसणी का विचार बोलीजे। प्रथमे कसणी चड़ाइते क्या बोलन्ती ? दुतिये कसणी चड़ाईते क्या बोलन्ती ? तृतीये कसणी चड़ाईते क्या बोलन्ती ? चतुर्थ कसणी चड़ाईते क्या बोलन्ती ? पंचमे कसणी चड़ाईते क्या बोलती ? खष्टमे कसणी घड़ाईते क्या बोलती ? सप्तमे कसणी चढ़ाई क्या बोलन्ती ? अष्टमे कसणी चड़ाईते क्या बोलन्ती ? नवमे कसणी चड़ाईते क्या वोलन्ती ? दशमे कसणी चड़ाईते क्या बोलन्ती ? एकादसे कसणी चड़ाईते क्या बोलती ? बारवैं कसणी चड़ाईते क्या बोलन्ती।
श्री ईश्वरोवाच- अरे गुनिजन! प्रथमे कसणी चड़ाईते त्रिणि त्रिणि ता ता ता करत करत ढ़ोल उचते। दुतीये कसणी चढ़ाईते दी दशे कहंति दावन्ति ढ़ोल उचते। तृतीये करणी चड़ाईते त्रि ति तो क ना थ च त्रिणि ता ता धी धिग ता धी जल धिग ला ता ता अनंता बजाइते ठंकरति दावंति ढ़ोल उचते ।
चौथी कसणी चड़ाईते भाटिका चैव कहंति दावंति ढ़ोल उचते।पंचमे कसणी चड़ाईते पांच पांडव बोलती कहति दावंति ढोल उद्यते । खष्टमे कसणी चड़ाईते चक्रपति बोलंती कहंति दावंति ढोल उचते। सप्तमे कसणी चड़ाईते सप्त धुनि बोलन्ती कहंति दावंति ढ़ोल उचते। अष्टमे कसणी चड़ाईते अष्टकुली नाग बोलती कहंति दावंति ढ़ोल उचते।नवमे कसणी चड़ाईते नौ ग्रह बोलन्ती कहंति दावंति ढ़ोल उचते । दसमे कसैणी चड़ाईते दस दुर्गा बोलती कहंति दावंति ढ़ोल उचते। अग्यारे कसणी चड़ाईते देवी कालिंका बोलती कहंति दावंति ढ़ोल उचते । बारी कसणी चड़ाईते देवी पारवती बोलती कहंति दावंति ढ़ोल उचते । इति बारौं कसणी का विचार बोली रे गुनिजन।