Saturday, July 27, 2024
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क्या मालन नदी घाटी के ईड़ा-मथाणा गांव में था वैदिक कालीन ऋषिकुल विद्यालय “कण्वाश्रम…!

क्या मालन नदी घाटी के ईड़ा-मथाणा गांव में था वैदिक कालीन ऋषिकुल विद्यालय “कण्वाश्रम…!

◆ मथाणा गाँव व मालिनी के आर-पार के गांव व प्रसिद्ध स्थल।

◆ आठ कण्व में ऋगु वेद व अभिज्ञान शाकुंतलम में वर्णित प्रथम कण्व व उनके ऋषिकुल पर अभी भी शोध की आवश्यकता।

◆ इन 08 कण्व में महाकवि कालिदास के ग्रंथ “अभिज्ञान शाकुंतलम” देता है प्रमाणिकता।

(मनोज इष्टवाल)

पूरी मालन घाटी क्षेत्र का वह पर्वतीय हिस्सा जहां पहुंचने के बाद यदि आप दो मिनट ध्यान लगाकर बैठ जायें तो आप स्वयं को वैदिक काल के ऋषि-मुनियों की सनातन परंपराओं में शामिल पाएंगे। यह एक मात्र ऐसा क्षेत्र हैं जहां सम्भवतः महाकवि कालिदास के “अभिज्ञानशाकुन्तलम” नाट्य शास्त्र का वह दृश्यावलोकन होता है जिसमें महर्षि कण्व का वह कण्वाश्रम रहा होगा जहां लगभग 5000 छात्र ऋषिकुल परम्परा ज्ञानार्जन को आते रहे होंगे। अब वैदिक कालीन मालन नदी जिसका उद्गम चंड़ा पर्वत शिखर से माना जाता है व जिसे गंगा नदी से पुरातन व गंगा नदी जैसा ही पावन माना जाता है, कई हजार बर्षों से निरंतर हेमकूट पर्वत शिखर से निकलकर मैदानों को सींचती सागर में विलीन हो जाती है। उसी मालन नदी घाटी की वर्तमान स्थिति से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कण्वाश्रम यहीं “ईड़ा-मथाणा” गांव के विशाल समतल धरातल पर रहा होगा क्योंकि यहीं उसका फैलाव ज्यादा दिखता है।

हेमकूट त्रिकुट पर्वत शिखरों में पाई जाने वाली कई औषधीय पादपों का जिक्र भी किया है जिनमें कुश, मालिनी, अपराजिता, वनज्योत्सना, माधवी लता, इंगुदी सहित दर्जनों वन वृक्ष हैं। इनमें से सबसे अधिक वन्य सम्पदा क्षेत्र भी मरणखेत से लेकर चौकी घाटा (वर्तमान कण्वाश्रम) तक इस मालन घाटी में फैला हुआ है जहां सैकड़ों अनमोल जड़ी बूटियों का खजाना मौजूद है। ईडा-मथाणा गांव के शीश में शून्य शिखर है तो पार्श्व ऋषि चरक का चरकडांडा। हो न हो हेमकूट पर्वत शिखर क्षेत्र का यही वह औषधि पादप क्षेत्र रहा हो जहाँ से ऋषि चरक ने आयुर्वेद औषधि का खजाना ढूंढ “चरकसंहिता” लिखी हो।

यह अकल्पनीय है कि बहुत सारे लेखकों ने महाकवि कालिदास के “अभिज्ञानशाकुन्तलम” पर अपनी अलग-अलग राय रख “ऋषिकुल कण्वाश्रम” के बारे में कई भ्रांतिपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किये हों व तत्कालीन समय में भौगोलिक जानकारियों का कम संज्ञान उनके पास रहा हो इसके अलावा उन्होंने एक बड़ी चूक यह भी साथ -साथ कर दी कि आठ कण्व एक थाली में सजाकर रख दिये व उनमें से उज्जैनी दरबार के रत्न महाकवि कालिदास के “ऋगवेदी कण्व” जो कि अभिज्ञान शाकुंतलम में वर्णित हैं व प्रथम कण्व हैं, उन्हीं सब के साथ घालमेल कर दिया। इसका नुकसान यह हुआ कि “कण्वाश्रम” शकुंतला-दुष्यंत प्रणय गाथा को प्रस्तुत करने में कई भ्रांतियां फैलने लगी। जबकि आज भी उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर क्षेत्र की मालन नदी घाटी क्षेत्र इस बात के सारे सबूत पेश करती है जो महाकवि कालीदास के नाट्य ग्रन्थ “अभिज्ञान शाकुन्तलम” में वर्णित हैं। जैसे – गौतमी नदी, अप्सरा मेनका का निवास स्थल मयडा, शकुन्तला का जन्मस्थल “शकुन्तधार” चक्रवर्ती भरत का जन्मस्थल “भरतपुर“, हेमकूट पर्वत शिखर “महाबगढ़” व वृक्षों में कुश, मालिनी (मालू), अपराजिता, वनज्योत्सना, माधवी लता, इंगुदी इत्यादि।

इस क्षेत्र का वर्णन मात्र एक श्लोक :- “काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला〡तत्रापि चतुर्थोअङ्कस्तत्र श्लोक चतुष्ट्यम् ।।” (काव्यों में नाटक सुंदर माने जाते हैं, नाटकों में ‘अभिज्ञान शाकुन्तल’ सबसे श्रेष्ठ है। शाकुन्तल में भी चौथा अंक और उस अंक में भी चार श्लोक अनुपम हैं)।जब हम अभिज्ञान शाकुंतलम के इन चार श्लोकों को ढूंढते हैं तो वे चीख-चीख कर इस बात की गवाही देते हैं कि इन श्लोकों में जिस क्षेत्र व वक्त काल परिस्थिति का वर्णन है वह स्थान मैं ही हूँ। वैदिक काल के महाकवि कालिदास रचित काव्य ‘रघुवंश‘, ‘कुमार सम्भव‘, ‘मेघदूत‘ तथा नाटक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम‘ ‘मालविकाग्निमित्र‘ और विक्रमोर्वशीय का अध्ययन कर इस बात का स्पष्ट प्रमाण देते उनके दो ग्रंथ हैं जिनमें एक “अभिज्ञान शाकुंतलम” तो दूसरा मेघदूत है। मेघदूत तो उन्हें उनके गांव कविल्ठा तक ले जाता है। जहां से चतुर प्रकांड विद्वान उन्हें रानी विधोत्तमा से शास्रार्थ हेतु उज्जैन ले गए थे।

भले ही कुछ विद्वानों ने कालीदास को उज्जयिनी निवासी बताया हो क्योंकि उनकी ज्यादात्तर रचनाओं में उज्जयिनी, महाकाल, मालवदेश, क्षिप्रा आदि का वर्णन विस्तार पूर्वक है लेकिन ज्यादात्तर विद्वानों ने उन्हें हिमालयी क्षेत्र का मानते हुए अभिज्ञान शाकुंतलम व मेघदूत में वर्णित श्लोकों के हिसाब से तर्क दिए हैं जो तर्क संगत भी हैं। इन दोनों ग्रन्थों से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि महाकवि कालीदास ने इन स्थानों को भलीभांति देखा है।

महाकवि कालिदास तीसरी- चौथी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के महान कवि और नाट्यकार थे। व वे राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नवरत्नों में से एक रत्न थे। अब 2000 बर्ष बाद भी अगर हम यह अनुमान लगाने लगे कि कहीं भी कोई भी भौगोलिक परिवर्तन नहीं हुआ हो तो यह तथ्यहीन है। मेघदूत में कालिदास ने उज्जयिनी से चलकर मेघ मार्ग को गम्भीरा नदी, देवगिरी पर्वत, चर्मण्वती नदी, दशपुर, कुरुक्षेत्र से कनखल हरिद्वार होते हुए अल्कापुरी पहुंचाया है, जहां कविल्ठा नामक स्थान उनका जन्मस्थल घोषित है। इसी कनखल से 15 से 20 मील दूरी पर मालिनी नदी के तीर या ओर छोर पर अभिज्ञान शाकुंतलम की सम्पूर्ण घटनाएं घटित हैं। जनश्रुति ही नहीं बल्कि आज भी सत्य है कि हेमकूट पर्वत श्रृंखला में अवस्थित महाबगढ़ मंदिर की परछाईं आज भी हर की पौड़ी हरिद्वार पर पड़ती है व महाबगढ़ से हर की पौड़ी के दर्शन होते हैं।

तर्क यह कि ईडा-मथाणा क्षेत्र में ही क्यों कण्वाश्रम रहा होगा उसका प्रमाण यहां अवस्थित कुश, मालिनी, अपराजिता, वनज्योत्सना, माधवी लता, इंगुदी सहित दर्जनों वन वृक्ष हैं, जो वर्तमान में भी अपनी प्रमाणिकता देते हैं।

मथाणा गाँव व मालिनी के आर-पार के गांव व प्रसिद्ध स्थल।

लगभग 5 किमी. के दायरे में फैले मथाणा गाँव में 7 तोक (तल्ला मथाणा, बिचला मथाणा, मल्ला मथाणा, लणगाँव, क्यार्क, रबड़ा और ग्वाडी हैं। मथाणा गाँव के बांयें छोर पर एक ओर देवीधार (देवी डांडा) है तो दूसरी ओर शून्य शिखर। फिर आते हैं बल्ली-कांडई, ईडा- मल्ला, ईडा तल्ला, ग्वीराला, भरखिल, छोया धार इत्यादि गाँव। दाहिनी ओर सौंटियाल धार, गहड़, धरगाँव, रणेसा, असवालगढ़, चौंडली व मैती काटल! वहीँ मालिनी नदी पार दिखने वाले स्थलों व गाँवों में महाबगढ़, भरपूर (भरतपुर), कंडियालगांव, चुन्ना महेडा, स्योपाणी, मरणखेत,पोखरीधार, सिमलना तल्ला, सिमलना बिचला, सिमलना मल्ला और शीर्ष पर पोखरी (पोखरीखेत), खरगढ़ी रोला, कोढ़ीधार, ग्वीलरी पड़ाव, खरगढ़ी, पत्थरैकी बसी (विश्वमित्र गुफा), बिस्तर-काटल, उल्याल, तिमल्याल, धूर- केष्ट, भगद्यो गढ़, जुनियागढ़, झंडी गढ़, चौंडली रौल, राधापोखरी, राजदरबार इत्यादि। मालिनी के दोनों तटों पर बसे गाँव व बिशेष स्थान मथाणा गाँव से यही दिखाई देते हैं!

07 फरवरी 2021 की ट्रेकिंग के अंश।

वर्तमान में अगर कोटद्वार भावर क्षेत्र से मालिनी नदी के पर्वतीय प्रदेश में वर्तमान कण्वाश्रम से परिवेश करना हो तो यह बेहद जटिल है। हमारे द्वारा विगत 07 फरवरी 2021 को मथाणागांव से कण्वाश्रम तक ट्रेक किया गया जो बेहद कष्टप्रद रहा। जिला परिषद द्वारा 1960 से लगातार बनाया जाने वाला चौकीघाटा (कण्वाश्रम) – मथाणा पैदल मार्ग विगत कई बर्षों से अब नहीं बनाया जा रहा था क्योंकि उसमें आवाजाही नामात्र रह गयी थी, उसका वर्तमान में बजट आता भी है या फिर कागजों के बंडलों में दफन हो जाता है यह कह पाना अँधेरे में तीर मारने जैसा है। लेकिन यह जिला परिषद् का रास्ता अब मात्र अपनी गवाही देने अपने वजूद की परछाई छोड़ने के लिए कहीं-कहीं पर जरुर अपनी मौजूदगी दिखा रहा है। पूरा रास्ता भयंकर जंगल में तब्दील था इसलिए हमने मालन नदी के साथ साथ नीचे उतरने की सोची। ग्रामीणों के हिसाब से माने तो उनके लिए यह रास्ता मात्र 8 किमी.था जिसे वे डेढ़ से दो घंटे में पूरा कर दिया करते थे लेकिन हमारे लिए यह रास्ता नापना एक नया अनुभव था।  बिशेषकर तब जब उसमें अनट्रेंड ट्रैकर्स शामिल हों। मुझे यह कहते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही है कि सभी इस ट्रैकिंग के रहस्य व रोमांच का भरपूर आनंद ले रहे थे। इस बात से बेखबर की यह क्षेत्र हाथियों का कोरिडोर है।

यह सचमुच बेहतरीन था। सच कहूँ तो मेरे लिए बहुत संतोषप्रद भी क्योंकि ऐसी बुलंद आवाज की यहाँ जरुरत थी! वह जरुरत इसलिए भी थी कि पूरे नदी के छोरों पर हाथियों के मल व पैरों के निशाँ मौजूद थे। यह आवाज हाक़ा लगाने जैसी ही बुलंद थी। मैं अपने बीच के उस ट्रैकर्स का नाम तो नहीं जान सका लेकिन उस पूरण भाई को जरुर देखना चाहता था जिसके लिए यह आवाज बार-बार बुलंद हो रही थी। मैंने पूछा भी कि ये पूरण भाई हैं कौन…! तो एक व्यक्ति मुस्कराते बोले- वह पीछे आ रहे हैं। मुझे आश्चर्य हुआ कि अभी भी कोई पीछे हैं क्या..? लेकिन बाद में पता चला कि वही व्यक्ति पूरण भाई हैं जिन्हें मैंने पूछा था। सचमुच यात्रा के ऐसे दौर होने अति आवश्यक हैं।

मरणखेत से जीएमवीएन बंगला कण्वाश्रम!

हमने मालन नदी को लगभग 62 बार आर-पार किया। कभी 10 मीटर दूरी के बाद तो कभी 50 से 100 मीटर दूरी के बाद कई नदी के बीच काई से सन्ने पत्थरों पर फिसले तो कई जूते गीले न हों उन्हें बचाने के चक्कर में कमर-कमर तक गीले हो गए। हमने मरणखेत से दोबाटा (लालपुल), खरगढ़ी रौला, ग्वीराला रौला, इडा छंछाडी, मक्वा-ठाट, आमडाली, ठंडू पाणी नामक विभिन्न स्थलों से आगे बढकर लालपुल पहुंचना था जहाँ से 3 किमी. दूरी पर जीएमवीएन का बंगला है। लेकिन ये सभी नाम सिर्फ याद के लिए रह गए क्योंकि ये वो स्थान हैं जो जिला परिषद द्वारा बनाये गए पैदल रास्ते के पड़ाव कहे जाते हैं। हम तो बस नदी के बहाव के साथ आगे बढ़ते रहे और आगे की सीटी बीच व बीच की सीटी पीछे वालों का मार्गदर्शन करती हुई एक अनजानी सी राह बनकर हमारे दल का नेतृत्व कर रही थी। हमारी अडवांस टीम इतनी अडवांस चल दी थी कि उनके हमें दर्शन होने भी दुर्लभ हो गए थे। उनके साथ उनका दिशा निर्देश करने वाले मथाणा गाँव के व्यक्ति जो थे जिन्हें हम गाइड कह सकते हैं।

ज्ञात हो कि मालिनी नदी का उद्गम चंड़ा (चंडाक) की पहाड़ियों से माना जाता है जिसके दाहिनी ओर मालनियाँ गाँव व बांयी ओर बडोलगाँव पड़ते हैं! बहाव की दिशा में मांडई, बिजनूर, सौंठ, अमोला, जुड्डा रौडियाल, फलनखेत, कीमसेरा, सिमलना बिचला, चुना मयेड़ा, पोखरिधार, सौंटियालधार, चौर-लदोखी, मंज्याडी, सिमाल्खेत, चौर, मैतकाटल, चौंडली, मथाणा, सिमलना मल्ला, सिमलना तल्ला, सिमलाना बिचला, जोगी झलड, खुंडरा, भरपूर, धूरा, कंडवाल गाँव, मवासा स्यलड़, बिस्तर काटल रेंज, उलियाल, तिमलियाल, धूरा,पौड़ी, केष्टा, खलेक, स्यालनी, बडरौ, जौरासी, स्यालकंडी,घमतपा, महाबधार, मौला टटोली, मानपुर, मुणगाँव, हर्षु, सकन्यूल, नाथूखाल,धनाई धुरा, खोलकंडी, पठूड अकरा, पौखाल, कठुडधार, बागी इत्यादि गाँव हैं!

मेरा मानना है कि भारत सरकार को चक्रवर्ती सम्राट भरत जिसके नाम से देश का नाम “भारत बर्ष” पड़ा, उसके जन्मस्थल की ढूँढ़ में असमंजस पालने की जगह इस सत्यता को स्वीकार कर लेना चाहिए व उन सो कॉल्ड विद्वानों के तर्कों को नजरअंदाज़ कर देना चाहिए जिन्होंने सनातन हिन्दू परम्पराओं को तार तार करने के लिए वेद व ग्रन्थों की ऋचाएं तक बदल डाली। जिन्हें ये तर्क स्वीकार्य नहीं उन्हें मैं न्योता देता हूँ कि आइए और आप भी अभिज्ञान शाकुंतलम में वर्णित श्लोकों के एक एक शब्द की इस धरा पर आकर जांच परख कर लें।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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