Tuesday, October 15, 2024
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उत्तराखंडी अभिनेता पन्नु गुसाँई ने वो कहा जिसे कहने का साहस हर कोई कर नहीं सकता। पन्नु की इस कला की नहीं थी मुझे जानकारी।

उत्तराखंडी अभिनेता पन्नु गुसाँई ने वो कहा जिसे कहने का साहस हर कोई कर नहीं सकता। पन्नु की इस कला की नहीं थी मुझे जानकारी।

(मनोज इष्टवाल)

वह तब बेहद चंचल, फुर्तीला व हंसमुख हुआ करता था। स्कूली छात्र जो ठहरा शायद उम्र यही रही होगी 12 या 13 साल…। नाम पन्नु गुसाँई… निवास दक्षिणपुरी नयी दिल्ली।

1992-93 की बात रही होगी या फिर उससे पहले की। तब मैं दिल्ली दूरदर्शन के लिए “शकुंतला नृत्य नाटिका” के लिए दिल्ली में पहाड़ के कलाकार ढूँढ रहा था। उस दौर में अनिल रावत व उनकी बहन लक्ष्मी रावत सेक्टर 6 आरबीआई क्वाटर्स में रहा करते थे व मैं सेक्टर 12…! तब अनिल रावत व लक्ष्मी रावत का एक सांस्कृतिक ग्रुप हुआ करता था। और वे लोग कलाकार भी प्रोवाइड करवाया करते थे। जाने क्या हुआ कि उनसे मीटिंग के बाद बात नहीं बनी और अनिल रावत जी ने मुझे कुछ बाल कलाकार उपलब्ध करवाए।

तब भारतीय कला केंद्र में नृत्य निर्देशक के रूप में राजेंद्र नेगी चर्चित थे। उन्हें लेकर भारतीय कला केंद्र की सुनीता सती व उनकी सहेलियों के साथ मैं इस नाटिका पर राजेंद्र नेगी के निर्देशन में कार्य प्रारंभ किया। तब मैं भी युवा था व ऊर्जावान भी। पैसा नहीं था लेकिन रिस्क बड़े बड़े उठा लेता था। उसी दौर में मैंने हिमाचल का पहला ऑडीओ कैसेट “शूलियाँ टंगोई गई जाण” की शुरुआत की थी। इसकी गायिका हिमाचल की ही शर्मा जी की बिटिया थी। आज भी उस ऑडीओ के सारे गीतों के मुखौटे मुझे मुँह ज़ुबानी याद हैं जैसे- घरे तेरे पौंदियाँ लड़ाइयाँ हो…।, गराई दियाँ छैल मुटयारा हो, उठ मुवे उठ रेशो चा बणाई दे इत्यादि। यह सुप्रसिद्ध संगीतकार वीरेंद्र नेगी जी का भी पहला हिमाचली ऑडीओ था जिसमें उन्होंने ड्वेट गीत गाए। उन्ही का क्या…सच मायने में उस से पहले हिमाचल का कोई ऑडीओ मार्केट में उपलब्ध था भी कि नहीं, इसकी कम ही जानकारी हैं क्योंकि गद्दी गीतों को सबसे पहले मैं ही बाज़ार में लाया था। लेकिन दुर्भाग्य देखिए एक बबंडर ने सारी हसरतें ख़ाक में मिला दी।

मैंने तब पन्नु गुसाँई के पिता जी से 10 हज़ार , शर्मा जी व उनके एक मित्र से 25 हज़ार क़र्ज़ लिया था। एल्बम शूट के लिए कोटद्वार कँवाश्रम, हरिद्वार इत्यादि जगह आए। सम्पादित भी किया लेकिन इसे तब दूरदर्शन से टेलीकास्ट नहीं करवा पाया। इसके बाद दिल्ली छोड़ दिया।

ख़ैर ये एक लम्बी कहानी है और इसकी पटकथा भी उतनी ही लम्बी। यह उन लोगों या कलाकारों के लिए संक्षिप्त सा संदेश है जिन्हें ये लगता है कि वे जो आज कर रहे हैं इस से पहले किसी ने कभी किया ही नहीं तो उन्हें बता दूँ कि तब सिर्फ़ दूरदर्शन ही एकमात्र ऐसा चैनल था जिसमें टेलीकास्ट होता था व अन्य चैनल्स का उदय भी नहीं हुआ था।

 आज क़ा सुप्रसिद्ध अभिनेता पन्नु गुसाई।

यक़ीन मानिए कुछ लोग जन्मजात अभिनय के लिए ही बने होते हैं और यह बात मैंने पन्नु गुसाँई के अंदर तब ही जाँच ली थी जब वह सातवीं-आठवीं कक्षा के छात्र थे। तब उन्हें स्टंड व मिमिकिरी का शौक़ था। पन्नु बंदर की तरह गुलाटी मारने, खड़ी दीवार से रोल करके कूदने में एक्स्पर्ट थे। उनके ऐसे रिस्की कारनामों से डर लगता था। तब में एक अमेरिकन कम्पनी Dupont for East Inc में कार्यरत था। अच्छा सेलरी पैकेज भी था व अंग्रेजों जैसा लाइफ़ स्टाइल भी। एक दिन रिहर्सल के लिए मुझे छुट्टी नहीं मिल रही थी तो पन्नु बोले- मैं फ़ोन पर ट्राय करूँ। मेरे बोलने से पहले ही उसने अपने घर से मेरे ऑफ़िस का नम्बर डाइल किया व बूढ़े व्यक्ति की आवाज़ निकालकर बोले- मैं मनोज का दादा बोल रहा हूँ। मुझे तकलीफ़ है व घर में इसके अलावा आज कोई नहीं है। इसने मुझे हॉस्पिटल दिखाना है। जैसे ही मेरे बॉस अमिताभ बसु ने छुट्टी सेक्शन की वह व मैं यह भूल गए कि फ़ोन हैंडल पर हूक करना है। पन्नु पहले अभिनेता राजकुमार की आवाज़ में कोई ड़ायलॉग बोले और बाद में मिथुन चक्रवर्ती के।

दूसरे दिन ऑफ़िस पहुँचा तो देखा पूरा ऑफ़िस मुझे बेहद ख़ास नजर से देख रहा है। आज इंग्लैंड ऑफ़िस से ई एच टायटस भी आए थे। मैं घबराया सा था कि आख़िर ऐसा क्या हुआ होगा। लेकिन जब अमिताभ बसु ने कहना शुरू किया कि कभी किसी को हल्के में नहीं लेना चाहिए। मनोज यहाँ भले ही टेलेक्स फ़ैक्स ओपरेटर या कलरिकल स्टाफ़ में है लेकिन उसकी पहुँच मुंबई इंडस्ट्री के फ़िल्म अभिनेताओं से है। कल इसने बहाना किया कि इसके दादा की तबियत ख़राब है लेकिन कल ये राजकुमार व अपने बंगाल के अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती से मिले । मैंने स्वयं उनकी आवाज़ें फ़ोन पर सुनी। मेरा चेहरा फक पड़ गया।पूरा स्टाफ़ मेरा स्वागत क्लैंपिंग करके करने लगा। मेरे चेहरे पर पसीना था मुझे लगा मेरा बड़ा झूठ पकड़ा गया। तब झूठ किसी बड़ी चोरी के समान लगता था। ख़ैर सब नोर्मल हुआ तो बसु साहब बोले-मनोज, कल तुमको ब्रेक फ़ास्ट पर मेरे घर ग्रेटर कैलाश आना मंग्टा..नो इफ़, नो बट!

दूसरे दिन बसू साहब के घर पहुँचा तो उनकी वाइफ़ के चेहरे की ख़ुशी देखते ही बनती थी बोली- मनोज, हमें एक बार मिथुन दा से मिला दो प्लीज। मैं बोला वो तो वापस चले गये। उन्हें बड़ी निराशा हुई । बोली- कहाँ मिले थे? मैं बिना हबड़ाये ही बोल गया – आयरलैंड अंबेसी। उफ़्फ़…बमुश्किल बचा। शुक्र है आयरलैंड की एक कम्पनी Befab Safeland Inc में मैंने पिछले हफ़्ते ही इंटरव्यू दिया था इसलिए यही नाम सूझा। फिर तो मैं अपनी कम्पनी क़ा हीरो हो गया लेकिन हमेशा यही डर बना रहा कि जाने कब चोरी पकड़ी जाएगी। शुक्र है कि हफ़्ते बाद मेरी जॉब अच्छे पैकेज के साथ आयरलैंड की कम्पनी में लग गयी और मैंने कह दिया यह उन्ही की बदौलत है।

तो साहिब…ये था पन्नु गुसाँई से मेरा पहला परिचय ।फिर वह दिन भी आया जब इस प्रतिभावान अभिनेता को बाल कलाकार के रूप में मैं मंच पर लाया फिर दूरदर्शन के “शकुंतला नृत्य नाटिका” में…। व दिल्ली छोड़ने के बाद अपने मित्र लोकगायक व निर्देशक अनिल बिष्ट से अनुरोध किया कि वह पन्नु को अपने किसी अल्बम में स्थान दे। वो दिन था व आज क़ा दिन…! पन्नु तब भी मेरी नज़र में स्टार कलाकार थे तो आज भी शानदार अभिनेता व शानदार इंसान। आज पन्नु गुसाई के प्रोफ़ायल में सैकड़ों अल्बम व कई फ़ीचर व छोटे पर्दे की फ़िल्में हैं लेकिन विगत 15 अगस्त को बब्बल प्ले स्कूल के कार्यक्रम में उन्हें गाते देख आश्चर्य हुआ। लगा इसे कहते हैं हरफ़नमौला अभिनेता,रंगकर्मी, गायक ।

यह सुनकर कान तृप्त हो गए जब ब्रेक के समय पन्नु गुसाँई सुप्रसिद्ध गायक गजेंद्र रमोला व सुप्रसिद्ध गायिका पूनम सती को बोले – क्या आप जानते हो कि मुझे सबसे पहले मंच पर कौन लाये। फिर बोले- मनोज इष्टवाल जी। यह बात यूँ तो वह कुछ दिनों पूर्व हिमाद्रि फ़िल्मस द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में भी मित्रों के मध्य बोले थे। लेकिन उसी बात को पुन: रिपीट करना जाने क्यों कर्णप्रिय लगा। आज प्रसिद्धि पाने के बाद जहां सितारे ज़मीन पर नहीं देखते ऐसे में पन्नु गुसाँई के ये शब्द कानों में रुणाट पैदा कर गए। मुझे इस बात की तसल्ली है कि मेरे साथ फ़िल्म, पत्रकारिता व अन्य सेक्टर्स में काम कर बुलंदियाँ छूने वाले कई मित्र व अनुज अभिनेत्री अभिनेता, टीवी चैनल्स के सीईओ सम्पादक गायक गायिका क्षितिज में जुगनुओं की तरह चमकते हुए आँखों को ठण्डक़ व दिल को सुखद लगते हैं लेकिन ऐसे बिरले ही होते हैं जो वक़्त की मार झेले मुझ जैसे व्यक्तित्वों को सार्वजनिक मंचों पर जोड़कर हृदय से निकले आशीर्वाद की ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
मुझे यक़ीनन अच्छा लगी पन्नु गुसाँई आपकी यह आत्मीयता।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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