Saturday, July 27, 2024
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68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में उत्तराखंड को मिला “मोस्ट फ़िल्म फ्रेंडली (स्पेशल मेंशन) पुरस्कार। मुख्यमंत्री धामी बोले- गौरांवित करने वाला क्षण।

68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में उत्तराखंड को मिला “मोस्ट फ़िल्म फ्रेंडली (स्पेशल मेंशन) पुरस्कार। मुख्यमंत्री धामी बोले- गौरांवित करने वाला क्षण।

(मनोज इष्टवाल)

उत्तराखण्ड को 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के अन्तर्गत Most Film Friendly (Special Mention) पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इस पर प्रदेशवासियों को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह हम सभी के लिए गौरवान्वित करने वाला क्षण है।

  • (मुख्यमंत्री धामी जी व बर्ष 2018 में उत्तराखंड को मिला राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार।)

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार ने फिल्म निर्माण को लेकर निर्माताओं को हर संभव सुविधा उपलब्ध कराने के दृष्टिगत राज्य में जो फिल्म नीति बनाई है, वो कारगर साबित हो रही है। गौरतलब है कि इससे पहले भी  उत्तराखण्ड को कई बार मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट का अवार्ड मिल चुका है।

ज्ञात हो कि 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2020 की घोषणा 22 जुलाई, 2022 को नई दिल्ली के राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में की गई। उत्तराखंड को ‘मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट (स्पेशल मेंशन)’ का पुरस्कार मिला है।
इस बारे में उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद के नोडल अधिकारी के.एस. चौहान ने जानकारी देते हुए बताया है कि अब तक उत्तराखंड को सर्वश्रेष्ठ फिल्म अनुकूल राज्य के तहत तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है।

इस बार  राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की इस श्रेणी में 13 राज्यों ने भाग लिया था। मध्य प्रदेश को ‘मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट’ का अवॉर्ड मिला, जबकि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश को ‘मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट (स्पेशल मेंशन)’ अवॉर्ड दिया गया।

(उत्तराखंड फ़िल्म विकास परिषद के नोडल अधिकारी केएस चौहान बर्ष 2018 में उत्तराखंड को 66वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (मोस्ट फ़िल्म फ्रेंडली अवार्ड) के साथ।)

उत्तराखंड फ़िल्म विकास परिषद के  नोडल अधिकारी के.एस. चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि उत्तराखंड फिल्म निर्माताओं के लिए पसंदीदा शूटिंग गंतव्य बना हुआ है। यहां फिल्मों और धारावाहिकों की शूटिंग के लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध है। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता फिल्म निर्माताओं को यहां शूटिंग के लिए आकर्षित करती है। सबसे बड़ी बात यह है कि हमारा प्रदेश मैदानी व पहाड़ी विषमताओं से भरा हुआ है जहां उतुंग हिमालयन, खूबसूरत बुग्याल, पुष्प घाटियां, शानदार वादियां व गंगा जमुना जैसी पवित्र पावन नदियों के अलावा शानदार वास्तुशिल्प युक्त गांव व उनकी संस्कृति है। इसीलिए उत्तराखंड के प्रति फ़िल्म निर्माताओं का रुझान बड़ा है व यहां के प्रतिभावान कलाकारों के लिए फ़िल्म इंडस्ट्री में काम का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

केएस चौहान बताते हैं कि उत्तराखंड की फिल्म नीति से आकर्षित होकर पिछले पांच साल में यहां छह सौ से ज्यादा फिल्मों और धारावाहिकों की शूटिंग हो चुकी है। 2015 से अब तक उत्तराखंड में शूटिंग के लिए लगभग 800 से अधिक फिल्म अनुमति प्रमाण पत्र जारी किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि बर्ष 2015 में फ़िल्म पालिसी बन जाने के बाद वित्तीय बर्ष 2015-16 में 18, 2016-17 में 37, 2017-18 में 49, 2018-19 में 124, 2019-20 में 134, 2020-21 में 228 व 2021 से लेकर अब तक 194 फ़िल्म इत्यादि को हमारे द्वारा अनुमति प्रमाण पत्र जारी किये गए हैं। इस हिसाब से अब तक 784 अनुमति प्रमाण पत्र जारी किए जा चुके हैं व मात्र अप्रैल 2022 से 20 जुलाई 2022 तक 100 से अधिक और अनुमति प्रमाण पत्र जारी कियर जा चुके हैं। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है  कि इस वित्तीय बर्ष के अंत तक यह आँकडा 800 से कई अधिक होगा।

केएस चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारे प्रदेश को बर्ष 2018 व 2022 अर्थात 66वें व 68वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में दो “मोस्ट फ़िल्म फेंडली (स्पेशल मेंशन) पुरस्कार”, 2018 में ही राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार के अंतर्गत ” सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म प्रमोशन फ्रेंडली स्टेट अवार्ड” व 2019 में 67वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार के अंतर्गत “मोस्ट फ़िल्म फ्रेंडली स्टेट का प्रथम पुरस्कार मिल चुका है। इस तरह अब तक उत्तराखंड चार बार राष्ट्रीय स्तर पर फ़िल्म पुरस्कार अर्जित कर चुका है।

उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में उत्तराखंड फिल्म शूटिंग हब बनने जा रहा है। इससे उत्तराखंड में रोजगार के साधन बढ़ने के साथ-साथ पर्यटन क्षेत्र में भी भारी वृद्धि हो रही है।

कब से शुरू हुआ राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार ?

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की शुरुआत 1954 से हुई थी। तब 1953 में प्रदर्शित हुईं कुछ बेहतरीन फिल्मों को चुना गया था। पहले नेशनल फिल्म अवॉर्ड में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का स्वर्ण पदक मराठी फिल्म श्यामची आई को दिया गया था। वहीं सर्वश्रेष्ठ वृत्त चित्र का स्वर्ण पदक महाबलीपुरम मिला था। इसके अलावा हिंदी फिल्म दो बीघा जमीन के साथ बांग्ला फीचर फिल्म भगवान् श्रीकृष्ण चैतन्य और बच्चों की फिल्म खेलाघर को योग्यता प्रमाण पत्र दिया गया था

इन पुरस्कारों की शुरुआत करने के लिए 1949 में एक कमेटी गठित की गई थी।  इस समिति का काम शिक्षा और सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित बनी सर्वोत्तम फिल्मों का चुनाव करना था। शुरुआती दौर में इन्हें राजकीय फिल्म पुरस्कार के नाम से जाना जाता था?

क्यों दिया जाता है राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार?

राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार कला, संस्कृति, सिनेमा और साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठ काम करने वाले कलाकारों को इसलिए दिया जाता है ताकि इन बिषयों पर आधारित  अच्छी फिल्मों के निर्माण को प्रोत्साहन मिले। देश में स्वतंत्रता के बाद कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए इसकी शुरुआत की गई थी।

पुरस्कार में क्या मिलता है?

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में हर कैटेगरी के आधार पर अलग अवॉर्ड दिया जाता है, जिन्हें रजत कमल, स्वर्ण कमल आदि नाम से जाना जाता है। कुछ अवॉर्ड में नकद पुरस्कार भी दिया जाता है, जबकि कुछ कैटेगरी में सिर्फ मेडल ही दिया जाता है। दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के विजेता को पुरस्कार स्वरूप स्वर्ण कमल, 10 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और शॉल प्रदान किया जाता है। सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म विनर को स्वर्ण कमल और ढाई लाख रुपये दिए जाते हैं। कई कैटेगरी में रजत कमल और डेढ़ लाख रुपये दिए जाते हैं और कई फिल्मों में एक लाख रुपये दिए जाते हैं। यह हर कैटेगरी के आधार पर तय किया जाता है।

कौन देता है पुरस्कार?

वैसे तो इसे राष्ट्रपति की ओर से दिए जाने वाले पुरस्कारों में शामिल किया जाता है। कई सालों से यह अवॉर्ड राष्ट्रपति की ओर से ही दिए जा रहे हैं, लेकिन कुछ सालों से उप राष्ट्रपति या सूचना प्रसारण मंत्री भी ये अवॉर्ड दे रहे हैं। कुछ साल पहले राष्ट्रपति के कार्यक्रम में शामिल न होने पर भी काफी बवाल हुआ था, जब कुछ अवॉर्ड राष्ट्रपति ने जबकि कुछ अवॉर्ड तत्कालीन मंत्री ने दिए थे। 2021 में इन पुरस्कारों का वितरण उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने किया। अब इस बर्ष राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार राष्ट्रपति प्रदान करेंगे या फिर उप राष्ट्रपति..! यह देखना बाकी है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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