(नितिन उपाध्याय)
ललित मोहन रयाल जी द्वारा लिखित “कल फिर जब सुबह होगी” एक अद्भुत पुस्तक है, जो उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध गीतकार श्री नरेंद्र सिंह नेगी के १०१ चुने हुए गीतों की गहन समीक्षा करती है। इन गीतों का चयन ऐसे किया गया है कि यह नेगी जी के रचना संसार का मुकम्मल परिचय कराते हैं। यह पुस्तक न केवल नेगी जी के गीतों के साहित्यिक और सांस्कृतिक मूल्यों को उजागर करती है, बल्कि उनकी गीत-रचना की प्रक्रिया, विचारधारा और उनके गीतों के समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को भी विस्तृत रूप से प्रस्तुत करती है।
पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह न केवल एक साहित्यिक दस्तावेज़ के रूप में कार्य करती है, बल्कि यह उन पाठकों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति, भाषा और गीतों में रुचि रखते हैं। रयाल जी ने प्रत्येक गीत की समीक्षा में उसके शब्दों के अर्थ, भावनात्मक गहराई, सांस्कृतिक संदर्भ और समाज पर उसके प्रभाव का विश्लेषण किया है।
रयाल जी की लेखन शैली अब किसी परिचय की मोहताज़ नहीं है, यह अत्यंत सरल , सुगठित और प्रवाहपूर्ण है, जिससे यह पुस्तक एक विस्तृत पाठक वर्ग को आकर्षित करने में सक्षम है। गीतों के अर्थों और उनके पीछे छिपे संदेशों को उजागर करने में रयाल जी ने अत्यधिक कुशलता दिखाई है। इसके अलावा, पुस्तक में शामिल गीतों के संदर्भ में स्थानीय रीति-रिवाज, परंपराओं और जीवनशैली की झलक भी दिखाई देती है, जो पाठकों को गढ़वाली समाज की एक गहरी समझ प्रदान करती है।
“कल फिर जब सुबह होगी” केवल एक समीक्षात्मक पुस्तक नहीं है, बल्कि यह नेगी जी के गीतों के माध्यम से उत्तराखण्डी समाज की धड़कन और उसकी आत्मा को समझने का एक प्रयास है। यह पुस्तक नेगी जी के योगदान को एक नया दृष्टिकोण देती है और उन्हें उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में स्थापित करती है।
पुस्तक का आवरण पृष्ठ अत्यंत आकर्षक और नेगी जी की रचनात्मकता को सम्मानित करने के लिहाज से भव्यता से परिपूर्ण है। इसे छूते ही पाठक को यह एहसास होता है कि वे एक विशेष कृति को हाथ में ले रहे हैं। इसके कागज की गुणवत्ता उच्च स्तरीय है, जिससे पढ़ने का अनुभव और भी सुखद हो जाता है। पुस्तक के प्रकाशन और मुद्रण में अत्यंत सावधानी और उत्कृष्टता का ध्यान रखा गया है जिसके लिए विनसर पब्लिकेशन और नवानी जी को भी साधुवाद।
पुस्तक की सामग्री और उसके भौतिक स्वरूप के बीच का सामंजस्य इस कृति को और भी विशिष्ट बनाता है। जब कोई व्यक्ति इस पुस्तक को हाथ में लेता है, तो उसे यह महसूस होता है कि वह कुछ विशेष और अमूल्य के संपर्क में है। “कल फिर जब सुबह होगी” निस्संदेह उन सभी मानकों पर खरी उतरती है, जो एक कालजयी रचनाकार पर लिखी गई किसी भी कृति से अपेक्षित होते हैं।
कुल मिलाकर, “कल फिर जब सुबह होगी” उन सभी के लिए एक मूल्यवान संसाधन है जो उत्तराखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और गढ़वाली गीतों में रुचि रखते हैं। ललित मोहन रयाल जी की यह कृति साहित्य प्रेमियों और संगीत प्रेमियों दोनों के लिए अनिवार्य रूप से पठनीय है।