(हिमालयन डिस्कवर स्पेशल रिपोर्ट)
ये कहानी एक ऐसे परिवार की वीर गाथा है जो देश प्रेम के लिए विगत 110 बर्षों से लगातार अपना सर्वोच्च देता आया है। यह बाट उस दौर की है जब द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था व दूसरी ओर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध देश में बगालत की लहर थी। इसी लहर का एक वीर दयाल सिंह भंडारी का जन्म 4 फरवरी 1913 को उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ तहसील के परकंडी गांव में हुआ था। वे उदय सिंह और कौंसा देवी की प्रथम संतान थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव में ही हुई। उनके तीन भाई गजपाल सिंह, सुरेंद्र सिंह एवं शिशुपाल सिंह थे। चारों भाई वीरता, शौर्य और देशभक्ति से परिपूर्ण थे तथा चारों भाई आर्मी में भर्ती हुए।
राष्ट्र सेवा का मार्ग चुनते हुए दयाल सिंह 17 बरस की आयु में ब्रिटिश आर्मी में भर्ती हुए और 10 वर्षों तक उन्होंने ब्रिटिश सरकार में अपनी सेवाएं दी। उस समय देश अंग्रेजों के अधीन था। अंग्रेजों के अत्याचार से प्रत्येक भारतीय पीड़ित था। सुभाष चंद्र बोस देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, ऐसे में दयाल सिंह भंडारी कहां पीछे रहने वाले थे। 1940 में वे नेताजी सुभाष चंद्र से प्रभावित होकर आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए।
उन्होंने जापान और सिंगापुर की लड़ाइयों में बहादुरी से भाग लिया और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। वर्मा युद्ध में भाग लेने के दौरान, दयाल सिंह को दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। उनके दाहिने हाथ में दो गोलियां लगी। इसके बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और मुल्तान जेल में छह महीने की सज़ा काटनी पड़ी।
1945 में, उन्होंने बर्मा की सीमा पार की, अंततः बिना किसी उचित जीविका के जहाज पर 18 महीने की कठिन यात्रा के बाद भारत लौट आए और आजादी के संघर्ष को निरंतर जारी रखा। दयाल सिंह भंडारी की अपने देश के लिए अटूट प्रतिबद्धता और अथक प्रयासों ने पहचान बनाई। क्षेत्र में उनको आजाद के नाम से पुकारा जाता था। भारत की स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ पर, प्रधान मंत्री ने उन्हें उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए राष्ट्र की कृतज्ञता का प्रतिनिधित्व करते हुए ताम्र पत्र प्रदान किया।
दयाल सिंह भंडारी का निधन 26 अप्रैल 1987 को उनके निवास पर हुआ। उनकी धर्मपत्नी पत्नी स्वर्गीय रामदेई का निधन 2016 में उनके निवास स्थान रुद्रप्रयाग में हुआ।
दयाल सिंह की सात पुत्र संतानों में क्रमशः जेष्ठ पुत्र महेंद्र सिंह भंडारी, स्वर्गीय कमल सिंह भंडारी, नरेंद्र सिंह भंडारी, स्वर्गीय पुष्कर सिंह भंडारी, रणवीर सिंह भंडारी, स्वर्गीय जयवीर सिंह भंडारी और सतवीर सिंह भंडारी हैं। इनके जेष्ठ पुत्र महेंद्र सिंह भंडारी ने इनके द्वारा दी गई देश सेवा की भावना को आगे बढ़ाते हुए आर्मी में जाने का निर्णय लिया तथा सन 1971 की लड़ाई में शामिल होकर अपनी वीरता का परिचय दिया। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती लक्ष्मी देवी भंडारी उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी है जिन्होंने उत्तराखंड राज्य को अस्तित्व में लाने के लिए संघर्ष किया। स्वर्गीय दयाल सिंह की पौत्री एवं श्री महेंद्र सिंह भंडारी की पुत्री डॉ राजकुमारी भंडारी चौहान उत्तराखंड के राजकीय पीजी कॉलेज डाकपत्थर में राजनीति विज्ञान की विभागाध्यक्ष हैं। डॉ राजकुमारी महिला जागरुकता के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं। उनको वर्ष 2021 में राज्य का सर्वोच्च पुरस्कार “राज्य स्त्री शक्ति तीलू रौतेली” से सम्मानित किया गया है।
आज उनके पौत्रों में से एक पौत्र अनिल भंडारी इंडियन आर्मी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे 2002 में भारतीय सेना में भर्ती हुए, बाद में विशेष बल से प्रभावित होकर छाताधारी बटालियन में शामिल हो गए। हाल में वह ऑफिसर प्रशिक्षण अकादमी में प्रशिक्षक के रूप में नायब सूबेदार के पद पर कार्यरत है। दयाल सिंह भंडारी के एक पौत्र एवं महेंद्र सिंह भंडारी के सुपुत्र राजकुमार भंडारी प्रतिष्ठित समाचार पत्र पंजाब केसरी में अपना योगदान दे रहे हैं। अन्य सभी पौत्र अपना व्यवसाय कर रहे हैं।