आज फिर ‘इगास’ के भैलो जलेंगे बल…! लेकिन ये कौन सी इगास हुई बताइये तो जरा।
देहरादून (हि. डिस्कवर)
आज न देवउठाऊनि पर्व है और ना ही माधौ सिंह भंडारी की खुद में आकुल व्याकुल उनकी माँ का हृदय ही है जिसमें उनके हृदय की व्यथा का बखान कुछ इस तरह मिलता है – “बारा ऐनि बग्वाल माधौ सिंगा, सोला ऐनी शराद माधौs सिंगा।” क्योंकि अब तक तो रणसिंगा व भंकोर का जयनाद गूँजे 10 दिन दिन गुजर चुके हैं। एगास के भैलो तो सम्पूर्ण गढवाल में 11 व 12 नवंबर को खेले जा चुके हैं जिन्होंने बता दिया था कि गढ़ नरेश महिपतशाह का महान सेनानायक माधौ सिंह भंडारी तिब्बत फतह कर सेना के साथ उत्तरकाशी के रास्ते श्रीनगर लौट रहा है। आज मंगसीरी बग्वाल भी नहीं है उत्तरकाशी में क्योंकि वह तो बाड़ाहाट में दिवाली के एक माह बाद यानि 30 नवंबर व 1 दिसम्बर को मनाई जाती है क्योंकि इसी दिन सेनानायक माधौ सिंह भंडारी की सेना तिब्बत जीतकर उत्तरकाशी के बाड़ाहाट पहुंची थी। फिर ये कैसी इगास हुई…?
उत्तराखंड की संस्कृति साहित्य कला परिषद की उपाध्यक्ष मधु भट्ट इस बारे में अपनी राय देती हैं कि इस बात पर तो हमें गर्व होना चाहिए क्योंकि इसी माह एकादशी यानि इगास के दिन भगवान नारायण को उनकी नींद से जगाया जाता है और इसी दिन हमारे लगभग 400 बर्ष पूर्व के इतिहास में हमारी सेना ने तिब्बत विजय किया था। यह तो सनातन हिन्दू परंपराओं का महीना है। जहाँ इगास व बग्वाल संबंधी त्यौहार पूरे माह भर चलता है, इसलिए मेरा व्यक्तिगत मानना है कि हम अपने त्यौहारों की खुशियाँ पूरे विश्व भर में बांटे। और अगर इगास बग्वाल का पर्व हर दिन हमारी धरा को रोशन करता रहे तो यकीन मानिये यह देश के लिए सुख और समृद्धि लेकर ही आएगा।
रेड एफएम 93.5 के साथ कार्यक्रम हॉस्ट कर रही रजतशक्ति ने कहा कि आखिर उत्तराखंड में इगास को भी हम बग्वाल की तरह हफ्ता दस दिन तक क्यों नहीं मनायें? यह एक प्रकाश पर्व है। जब बंगाल अपनी दुर्गा पूजा असम अपने बिहू सहित देश का प्रत्येक राज्य अपने लोक पर्व को महीने भर धूमधाम से मना सकते हैं व उनके ऐसे लोक पर्वों में देश दुनिया के लोक सम्मिलित हो सकते हैं तो क्यों न हम ऐसी पहल करें कि इगास-बग्वाल पर्व एक महीने तक यूँही ही धूमधाम से मनाया जाय व अगले बर्ष से हमारे इस अलौकिक पर्व में विश्व समुदाय के लोग भी शिरकत करें। मुझे लगता कि हम Red FM 93.5 के माध्यम से इगास लोक पर्व की खुशियां बांटने के लिए हाथ बंटा रहे हैं ताकि हमारी लोक संस्कृति के ये रोशन दिए व उजाले पूरे प्रदेश ही नहीं देश में अपनी जगमगाहट बिखेरें।
इस दौरान पद्मश्री डॉ माधुरी बड़थ्वाल, ममता नागर, सुधा पांडे, उषा झा सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।