Friday, September 12, 2025
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सोशल मीडिया की ताकत: बांग्लादेश और नेपाल का सबक

सोशल मीडिया पारंपरिक मीडिया (टीवी, अखबार) को मीलों पीछे छोड़ चुका है, क्योंकि यह सीधे जनता के हाथ में..!

(शीशपाल गुसाईं)

सोशल मीडिया आज सिर्फ एक मंच नहीं, बल्कि एक ताकत है – युवाओं का हथियार, जनता की आवाज, और सत्ता को चुनौती देने का सबसे बड़ा औजार। बांग्लादेश और नेपाल के हालिया विद्रोह इसका जीता-जागता सबूत हैं। दोनों देशों में युवाओं ने साबित किया कि जब अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला होता है, तो सोशल मीडिया के जरिए एक चिंगारी पूरे जंगल में आग लगा सकती है।

बांग्लादेश का विद्रोह (2024)

बांग्लादेश में जुलाई-अगस्त 2024 में शुरू हुआ छात्र आंदोलन सरकारी नौकरियों में कोटा सिस्टम के खिलाफ था। लेकिन यह जल्द ही भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और शेख हसीना सरकार की तानाशाही के खिलाफ एक जन-विद्रोह में बदल गया। युवाओं ने टिकटॉक, फेसबुक, और एक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स पर अपनी मांगें और अत्याचारों के वीडियो साझा किए। सरकार ने इंटरनेट बंद किया, लेकिन वीपीएन और ऑफलाइन नेटवर्किंग के जरिए युवाओं ने आंदोलन को जिंदा रखा। नतीजा? लाखों लोग सड़कों पर उतरे, और शेख हसीना को सत्ता छोड़कर देश छोड़ना पड़ा। एक्स पर एक यूजर ने लिखा: “सोशल मीडिया ने दिखाया कि जनता की आवाज को अब कोई नहीं दबा सकता।” बांग्लादेश ने साबित किया कि सोशल मीडिया पारंपरिक मीडिया (टीवी, अखबार) को मीलों पीछे छोड़ चुका है, क्योंकि यह सीधे जनता के हाथ में है।

नेपाल का ताजा विद्रोह (2025)

नेपाल में 4 सितंबर 2025 को सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया, जिसे युवाओं ने अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला माना। जेन Z ने डिस्कॉर्ड, टिकटॉक, और व्हाट्सएप पर संगठित होकर सड़कों पर उतरने का ऐलान किया। 8-9 सितंबर को काठमांडू में हजारों युवाओं ने संसद भवन को घेर लिया, भ्रष्टाचार और नेपोटिज्म के खिलाफ नारे लगाए। सरकार ने हिंसा से जवाब दिया, लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज और लाइव स्ट्रीम्स ने दुनिया का ध्यान खींचा। नतीजा? पीएम केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा, सोशल मीडिया बैन हटाना पड़ा। एक नेपाली यूजर ने एक्स पर लिखा: “हमारा फोन हमारा हथियार है।” यह आंदोलन दिखाता है कि सोशल मीडिया ने न केवल अखबारों और टीवी को पीछे छोड़ा, बल्कि यह हर हाथ में एक क्रांति की ताकत देता है।

सोशल मीडिया क्यों अजेय है?

1. हर हाथ में ताकत: बांग्लादेश में एक छात्र का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें पुलिस की बर्बरता दिखी। नेपाल में एक टिकटॉक लाइव ने हजारों को सड़कों पर ला दिया। आज हर स्मार्टफोन एक न्यूज चैनल है, हर यूजर एक पत्रकार।
2. तेजी और पारदर्शिता : अखबार और टीवी में खबरें छनकर आती हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर लाइव अपडेट्स, वीडियो और तस्वीरें बिना सेंसर के दुनिया तक पहुंचती हैं। बांग्लादेश में हसीना सरकार की क्रूरता और नेपाल में पुलिस की गोलीबारी की तस्वीरें मिनटों में वायरल हो गईं।
3. संगठन का मंच : डिस्कॉर्ड, टेलीग्राम, और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स ने बिना लीडर के आंदोलन को संगठित किया। नेपाल में “हामी नेपाल” जैसे एनजीओ ने सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को एकजुट किया।
4. वैश्विक समर्थन : दोनों देशों में विद्रोह की खबरें एक्स और इंस्टाग्राम के जरिए दुनिया तक पहुंचीं। संयुक्त राष्ट्र और एमनेस्टी जैसी संस्थाओं ने तुरंत बयान जारी किए, क्योंकि सोशल मीडिया ने दबाव बनाया।

सरकारों का गलत फैसला

नेपाल और बांग्लादेश की सरकारों ने सोशल मीडिया पर बैन लगाकर गलती की। यह 21वीं सदी में अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने की कोशिश थी। लेकिन युवाओं ने दिखा दिया कि एक स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन के साथ वे सत्ता को हिला सकते हैं। टीवी और अखबार सरकारों के प्रभाव में हो सकते हैं, लेकिन सोशल मीडिया जनता का मंच है – इसे कोई नहीं रोक सकता।

#SocialMediaPower #YouthRevolution”

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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