पहाड़ की ”पांडवाणी दादी”– 80 सालों से संजोये हुये है सांस्कृतिक विरासत, पांडवों की गाथा का लोक गायन शैली के जरिये वर्णन…!
(ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!)
पहाड़, पानी और पांडव एक दूसरे के पूरक है। इनके बिना पहाड़ के लोक की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। इन दिनों पहाडों के गांवों में पांडव नृत्य का मंचन किया जा रहा है। पांडव नृत्य देवभूमि की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है। आजकल सीमांत जनपद चमोली के बंड पट्टी के दिगोली और पैनखंडा के पाखी गांव में पांडव नृत्य का आयोजन किया जा रहा है। इन दिनों इन गांवों में पहाड़ की लोकसंस्कृति परिलक्षित हो रही है। दिगोली गांव में पांडव नृत्य के आयोजन में 90 साल की रुक्मणी देवी पुरोहित की पांडवाणी नें हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया है। उम्र के इस पड़ाव में भी पांडवाणी दादी की जादुई और खनकती आवाज लोगों को हतप्रभ कर रही है। हर कोई पांडवाणी दादी की भूरी भूरी प्रशंसा कर रहा है।
ये है पांडवाणी दादी और पांडवाणी विधा..।
चमोली जनपद के दशोली ब्लाॅक की बंड पट्टी के दिगोली गांव की 90 वर्षीय रुक्मणी देवी विगत 80 सालों से पांडवाणी लोक गायन शैली के जरिये पांडवों की गाथा का वर्णन बंड क्षेत्र के विभिन्न गांवों में आयोजित पांडव नृत्य में करती आ रही हैं जिस कारण से बंड क्षेत्र ही नहीं बल्कि पूरे दशोली और जोशीमठ ब्लाॅक में लोग उन्हें पांडवाणी दादी के नाम से जानते हैं। पांडवाणी दादी के पुत्र हरीश पुरोहित कहते हैं कि उनकी माँ उन्हें बचपन से ही पांडवाणी सुनाती आ रही है। उन्हें पांडवों की पूरी गाथा पांडवाणी के रूप में आज भी कंठस्थ याद है। मेरी माँ नें मेरे नाना जी से पांडवाणी को आत्मसात किया है। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें अपनी माँ से इस अनमोल विरासत को सुनने का मौका मिला है। मेरी माँ शायद चमोली जिले की एकमात्र पांडवाणी लोक गायन शैली की गायिका हैं जो विगत 80 सालों से इस विधा को संजोये हुए हैं। हमारे पूरे परिवार को उन पर गर्व है। वहीं बंड पट्टी के सामाजिक सरोकारों से जुड़े और बंड विकास संगठन के पूर्व अध्यक्ष अतुल शाह का कहना है कि आज युवा पीढ़ी पांडवाणी विधा से शायद ही भली भांति परिचित हो लेकिन पांडवाणी दादी जिस तरह से विगत 80 सालों से इस विधा को संजोये हुए हैं वह अनुकरणीय और प्रेरणादायक हैं। ऐसी शख्सियत को विशेष सम्मान मिलना चाहिए। हमारी कोशिश रहेगी की उन्हें भविष्य में पांडवाणी लोक गायन शैली के लिए सम्मानित किया जाय। वे युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। हम सबको उनसे सीख लेने की आवश्यकता है।
पिताजी से विरासत में मिली थी पांडवाणी गायन की दीक्षा!
पांडवाणी दादी रुक्मणी देवी पुरोहित को पांडवाणी गायन की दीक्षा अपने पिताजी कुलानंद तिवारी जी से विरासत में मिली। वे बचपन से अपने पिताजी से महाभारत को सुना करती थी। उनके पिताजी को रामायण, महाभारत से लेकर पुराण और अन्य धार्मिक ग्रन्थ कठंस्थ याद थे और वे हर रोज इनका वाचन किया करते थे। पांडवाणी दादी नें अपने पिताजी से पांडवों की गाथा को पांडवाणी के जरिये आत्मसात किया। दादी कहतीं हैं कि वे जब महज 10 साल की थी तो तभी से ही उन्होंने पांडवाणी गायन शुरू कर दिया था और आज 90 साल की उम्र में भी वे पांडवाणी गा रहीं हैं। वे कहती है कि हमारी पहचान हमारी लोकसंस्कृति और लोक परंपरायें हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी समृद्धशाली सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखें और आनें वाली पीढियों तक इसे पहुंचाये।
ये है पांडव नृत्य!
उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग और चमोली जनपद की मंदाकिनी और अलकनंदा घाटी के सैकड़ों गाँवों में हर साल नवम्बर से फरवरी माह तक पौराणिक पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है। पांडव नृत्य का आयोजन पांडवो की याद में और घर गाँवों में खुशहाली के लिए किया जाता है। इस आयोजन में पांडवो के जन्म से लेकर स्वर्गारोहणी के रास्ते स्वर्ग जानें के विभिन्न अंशों का ढोलो की तालों और थापों पर मंचन किया जाता है। इस दौरान मोरी डाली/ देवदार डाली, केला पेड, कीचक वध, पंया, नारायण भगवान की शादी, राजा पांडु के श्राद्ध हेतु गेंडे की खगोती लाना (गेंडा वध), और पांडु राजा के श्राद्ध का मंचन किया जाता है। जिसके बाद अंतिम दिन सामूहिक भोज दिया जाता है व पांडवो के अस्त्रों को बाण कंडी में रख दिए जाते हैं। इस तरह से लगभग 10-12 दिनों का ये आयोजन सम्पन हो जाता है।
बंड पट्टी के इन गांवों में होता है पांडव नृत्य का आयोजन!
सीमांत जनपद चमोली की बंड पट्टी के दर्जनों गांव बरसों से अपनी अनमोल लोकसंस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए जानी जाती है। बंड पट्टी के बाटुला गाँव में पौराणिक बगडवाल नृत्य और नौरख, लुंहा गाँव, किरूली, कम्यार, दिगोली, गडोरा, रैतोली, अगथल्ला आदि गांवो में पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है। आजकल बंड पट्टी के दिगोली और पैनखंडा के पाखी गांव में पांडव नृत्य का आयोजन हो रहा है। इस आयोजन के लिए दोनों गाँव के ग्रामीणों द्वारा पूरी तैयारी की गयी है। गांव की ध्याणियां भी अपने मायके पहुंच गयी है पांडव नृत्य को देखने के लिए। पांडव नृत्य के आयोजन को लेकर गाँव में रौनक लौट आई है।
अगर आपके पास भी समय हो तो जरूर देखने आइये इस बार पहाड़ की अनमोल सांस्कृतिक विरासत को देखने बंड पट्टी के दिगोली और पैनखंडा के पाखी गांव। और सुनिए पांडवाणी दादी की पांडवाणी.।