Friday, April 18, 2025
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कुशल के बहाने फैला मीडिया तंत्र जाल..! 

(मनोज इष्टवाल)

कोई सवाल करता है तीन महीने पहले रिटायरमेंट लेने का औचित्य क्या था? कोई बस आप तक सीमित इंसान तो कोई बिना भौकाल वाला सम्पादक…। और न जाने क्या – क्या? लेकिन चर्चाओं का बाजार गर्माहट लिये हुए है। यह चर्चा प्रदेश के एक ऐसे मीडिया ग्रुप में बदस्तूर जारी है, जहाँ प्रदेश के खांटी पत्रकारों के साथ-साथ बहुत बड़ा उच्च अधिकारीवर्ग भी शामिल है। चर्चा है दैनिक जागरण के उत्तराखंड सम्पादक से अब सूचना आयुक्त बने कुशल कोठियाल पर…! आर्य साहब भी आयुक्त बने लेकिन उन पर शोर नहीं हुआ। कुशल कोठियाल को चर्चा में लाये वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद ज़खमोला और चर्चा को बंद करने का आग्रह किया पत्रकार से राज्य पुलिस शिकायत प्राधिकरण के सदस्य बने दया शंकर पांडे ने।

वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला ने ग्रुप में शुरुआत करते हुए लिखा कि कितने पत्रकारों और नेताओं को लगता है कि कोठियाल जी सूचना के मंदिर में बैठकर जनता को न्याय दिला पाएंगे? मैं उन्हें एक बेहद डरपोक व दब्बू सम्पादक मानता हूँ…..! पोस्ट किये शब्द आगे भी लिखे गए थे लेकिन दयाशंकर पांडे के आग्रह “भाई जी मेरा आग्रह है ऐसा ना लिखें” के बाद गुणानंद जखमोला ने पोस्ट हटा दी। लेकिन यह सब इतने में कहाँ शांत होते वाला था। यह तो मधुमक्खियों के छत्ते पर पत्थर मार देने जैसा हुआ। बिषय चर्चा में रात्रि 8 बजकर 56 मिनट में सामने आया और चर्चा 11 बजकर 35 मिनट तक बदस्तूर जारी रही। वरिष्ठ पत्रकार पवन लालचंद अंत में लिखते हैं:-

शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को

ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का

दाग़ देहलवी

चर्चा अभी भी जारी है। मान लेते हैं कि कुशल कोठियाल के बहाने पक्ष-विपक्ष के कई मुद्दों के साथ यह चर्चा ऐसे पत्रकार समूह में सम्मिलित हुई, जहाँ चर्चा के पीछे समालोचना जैसा माहौल बना। वैसे जब से यह खबर आई कि कुशल कोठियाल सूचना आयुक्त बन रहे हैं तब से ही कुछ पत्रकार मित्रों की धारदार कलम डेस्कटॉप, लैपटॉप, मोबाइल पर शब्द सम्पदा को बिखेरने को बेताब दिखाई दी। पूर्व में प्रिंट मीडिया में बड़े पदों पर कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार वेद उनियाल ने  सबसे पहले अपनी पोस्ट में लिखा कि “कुशल कोठियालजी सूचना आयुक्त बने। पत्रकार के नाते वो भले बहुत तेवर‌ वाले न रहे हों पर भ्रष्टाचारी भी नहीं हैं । विवादों से भी दूर रहे हैं। हां उन्होंने कोई उथल पुथल मचा देने वाली पत्रकारिता भी नहीं की। चुपचाप अपना हर दिन निकालते रहे। अपना जो भी मालिकों का अखबार था उस काम को तल्लीनता से करते रहे। अखबार भी उनके नेतृत्व में निकलता ही रहा। अब सूचना आयुक्त बनेंगे। उन्हें शुभकामना। लेकिन शायद इस पद पर कभी भी किसी संपादक रहे व्यक्ति को बिठाना उचित नही हैं। एक तो नौकरी करते हुए संपादक का वेतन बहुत होता है। वारा नारा टाइप का होता है। फिर रिटायरमेंट के बाद भी फिर नया वारा नारा। राज्य में‌ इस तरह कुछ लोगों पर ही केंद्रित होना ठीक नहीं। यह सब ठीक नही। इसका असर यह भी होगा कि संपादक रहते हुए अपने आखिरी दिनों में हर कोई सत्ता की बल्कि मुख्यमंत्री की जमकर चापलूसी करने लगेगा। पत्रकारों के‌ बीच जी हजूरी की होड़ बढ़ेगी। अगर हो तो उसके सामाजिक और पत्रकारीय सरोकारों की गहरी पड़ताल हो।

कुशलजी के मामले‌ में कम से कम इतना संतोष जरुर है कि वो‌ नहीं बनते तो कोई फर्जी बन जाता। या भ्रष्टाचारी या लंपट बन जाता । उनसे पहले योगेशजी का सूचना आयुक्त बनना इसलिए अच्छा लगा था कि वो खांटी और शानदार पत्रकार रहे हैं। कुशलजी खांटी पत्रकार तो नहीं पर बेईमान‌ भी नही हैं। और पत्रकार तो वो रहे हैं। हां उनसे इतना अनुरोध रहेगा थोड़ा समाज और अपने लोगों के बीच उठना बैठना भी चाहिए । हम हाईकोर्ट के जज नहीं पत्रकार हैं । घर से आफिस और आफिस से घर शायद यही जिंदगी नहीं। उन्हें शुभकामना।”

ज्ञात हुआ है कि वरिष्ठ पत्रकार डॉ अजय ढोँडियाल ने भी अपनी पोस्ट में अपने शब्दों में कुशल कोठियाल पर लम्बा चौड़ा लेख लिखा! और ऐसे ही बहुत से लेख और मीडियाकर्मियों ने भी अपने-अपने हिसाब से लिखे।

चलो अच्छा है… यह सब लोक तंत्र में हम सबको आजादी मिली हुई है। मेरा मानना है कि हम सिर्फ़ अपने ही पत्रकार साथी के सूचना आयुक्त बनाये जाने में उनके गुण अवगुण क्यों खंगालते हैं? क्या हमें उनके सम्मानित पद पर विराजमान होने का स्वागत नहीं करना चाहिए। मेरी नजर में कुशल कोठियाल निर्विवाद छवि के ऐसे संपादक रहे हैं जिनकी नाहु किसी से दोस्ती, नाहु किसी से बैर रहा है।  अपने जीवन को अपने हिसाब से जीने व समझने वाले कुशल कोठियाल पर यूँ पत्रकारों के एक बड़े मंच में चर्चा होना इस बात का धोत्तक है कि कुशल कोठियाल जी में कुछ तो ऐसा अलग है जो उन्हें चर्चाओं में ले आया।

जहाँ तक मेरा कुशल कोठियाल जी से व्यक्तिगत परिचय रहा है तो वह जुलाई 2017 में तब हुआ जब दूरदर्शन उत्तराखंड सेटेलाइट से जुड़ा और उसके पैनल में मैं और कुशल कोठियाल जी बतौर पैनलिस्ट शामिल हुए। हमने सर्व प्रथम उस चयन प्रक्रिया में भाग लिया जिसने दूरदर्शन को पत्रकार, कैमरामैन व टेक्निशियन्स की शानदार  टीम दी। हमें गर्व है कि एक आध को छोड़कर लगभग 98 प्रतिशत चयन हमारे माध्यम से शानदार रहा और जो भी हमारे दौर में चयनित होने वाली दूरदर्शन की खेप है उस पर आज भी हमें नाज है।

कुशल कोठियाल यकीनन धीर गंभीर हैं, ऐसा सबका मानना है। वह व्यवहारिक भी कम है ऐसा भी मानना है। अपने से अपना मतलब रखने वाले हैं ऐसी भी आम लोगों की राय है। मुझे लगता है उस दौर में हम आपस में खूब बतियाते भी थे और ठट्ठा मजाक भी चलता रहता था। उनकी एक आदत मुझे बेहद पसंद आई कि उन्होंने उन्हीं के सम्पादक रहते अपने उन पत्रकारों के लिए मन में कोई ईर्ष्या द्वेष भाव नहीं रखा, जिन्होंने उनके संस्थान को गुड़ बाय नमस्ते सलाम कह दिया था,और वे दूरदर्शन में साक्षात्कार हेतु आये थे। जिनमें यह काबिलियत थी कि वे दूरदर्शन के लिए फिट हैं। उन्होंने उन्हें वही मार्क्स दिए जिसके वे हकदार थे। हाँ… कुशल भाई कुछ ज्यादा ही रिजर्व रहते हैं शायद..! जो आम आदमी को खलता है। हो सकता है पद प्रतिष्ठा की डिगनिटी भी उसमें समाहित रही हो।

बहरहाल मीडिया ग्रुप की टिप्पणी लाज़वाब रही और हमें लगता है कि समलोचना होनी भी चाहिए ताकि हम अपने आप को तलाश सकें कि हम कहाँ हैं और हमारे केंद्र बिंदु में आम राय क्या शामिल है। उत्तराखंड प्रदेश का सूचना आयुक्त बनने के लिए बहुत बहुत शुभकामनायें कुशल कोठियाल जी।

 

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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