Saturday, September 14, 2024
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सुवा तेरी यादूँ माs..! बॉलीवुड स्टार जुबिन नौटियाल व हिलीबुड स्टार अमित सागर की शानदार जुगलबंदी।

सुवा तेरी यादूँ माs..! बॉलीवुड स्टार जुबिन नौटियाल व हिलीबुड स्टार अमित सागर की शानदार जुगलबंदी।

(मनोज इष्टवाल)

गीत और संगीत दो जिस्म और एक जान हैं। ठीक वैसे ही जैसे प्रेमी युगल होते हैं। यहाँ भी दो जिस्म एक ही जान के पीछे पड़े हुए हैं…! और वह जान है सुवाs।

यूँ तो सुवाs शब्द बहुत से गढ़वाली गीतों में प्रयोग में लाया गया शब्द है, जो जब भी इस्तेमाल में लाया गया बस अंतर्मन में उतरता चला गया। विगत 27 अगस्त को यूट्यूब में रिलीज हुए इस गीत 70 को 70 हजार से अधिक लोग देख चुके हैं। बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध स्टार गायक जुबिन नौटियाल का शुद्ध गढ़वाली में यह शानदार प्रयोग रहा है। वहीं गीतकार चैत की चैत्वाली से उत्तराखंड में सुपर स्टार सिंगर बने अमित सागर ने गीत की असली लसाक में कोई कमी नहीं रखी।

इस गीत का सबसे कर्णप्रिय हिस्सा इसके शानदार म्यूजिक कम्पॉजिशन को जाता है। गीत की शुरुआत जुबिन के बोलों से शुरु होती है। अर्थात इसका स्थायी पार्ट उनसे शुरु होता है फिर उसी को अमित सागर दोहराते हैं, और पहले आंतरे की दो पंक्तियाँ अमित सागर गाते हैं। सच कहूं तो गाने का फील इतना बैलेंस है कि स्थायी व आंतरा लगभग एक काला से गाया गया लगता है। शायद यह इसलिए की गीत के बोलों का फील आँखें बंद करके हृदय की गहराइयों तक उतर जाए।

2:45 मिनट का यह गीत आपको इस सावन भादो के मौसम में मैदान से उन पहाड़ी ढालों में, बुग्यालों में, डांडी-कांठयूँ व गाँवों में ले जाता नजर आता है जहाँ आपका हृदय बसता है। जहाँ आप घने कोहरे के बीच बैलों की घंटियां व भेड़ बकरियों की मिमिहाट में बूरदार बारिश की बूंदों के मध्य हृदय की गर्मी की तपन को सुलगाते नजर आते हैं। बशर्ते आप गीत के फील के साथ – साथ अपना मन प्राण भरमाते हैं।

मेरी तो बंद आँखें अचानक तब खुल गई जब ‘दिल की धड़कन’ शब्द आता है। मुझे लगा कि इसमें धड़कन तक पहुँचने का फील जरा कम रह गया। हल्का सा हैश लगा। वैसे इस गीत को मैं लगातार पांचवी बार सुन रहा हूँ।

गढ़वाली गीत कोई नन – गढ़वाली गाये तो कहीं न कहीं कमी नजर आती है लेकिन जुबिन नौटियाल ने इसे ठेठ उसी फील व टोंन में गया जो एक बड़ा गायक गाता है जैसे सुप्रसिद्ध गायिका गायिका लता मंगेशकर ने गढ़वाली गीत ‘मन भरमैगे मेरी सुध- बुध ख़्वेगे” को गाया था। गीत गाना हम लोग सरल काम समझते हैं लेकिन गीत की शब्द सम्पदा का उच्चारण किसी भी गीत की आत्मा होती है। अब प्रसिद्धि में तो गायक पवनदीप राजन भी चरम पर हैं लेकिन जब भी वह अपने उत्तराखंडी गीत गाते हैं तब वे ‘ळ’ शब्द को ‘ल’ गाते हैं। जो कई बार अर्थ का अनर्थ सा लगता है। फिर आज के कई छोटे सिंगर भी हैं जो कतार में खड़े दिखते हैं उनकी बात तो करनी ही क़्या है।

मुझे लगता है कि हम सबको इस गीत को जरूर सुनना चाहिए। मेरा दावा है कि यह गीत आपको जरूर पसंद आएगा।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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