(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 2022)
भवाली-नीम करौली-खीनापानी के बाद अब लाजिम था आगे के सफर का आनंद लिया जाय। इधर बीरेंद्र भट्ट जी व कैलाश सुयाल जी का मन था कि आज चौकोरी स्थित कुमाऊं मंडल विकास निगम के बंगले में आराम कर अलसुबह पिथौरागढ़ के लिए चल देंगे जहां “श्रीगोलज्यू सन्देश यात्रा” रथ की पूरी टीम आज रात पहुंच रही थी। इस सम्बंध में जीवन जोशी जी का कई बार अपनी धरोहर सोसायटी के अध्यक्ष पूर्व आईजी पुलिस गणेश मर्तोलिया जी व सचिव विजय भट्ट जी से टेलिफोनिक वार्तालाप भी हो चुका था।
सब कुछ प्लान से चल रहा था कि अचानक जीवन जोशी जी बोले। अभी समय 10:30 बजे का है। इस हिसाब से हम कितने बजे तक चौकोड़ी पहुंच जाएंगे। फौरन पिछली सीट पर बैठे कैलाश सुयाल जी बोले लगभग दो या ढाई बजे। मानो जीवन जोशी जी की मन मांगी मुराद पूरी हो गयी हो। बोले- वैसे भट्ट जी व सुयाल जी की राय बहुत अच्छी है चौकोड़ी रुकने की। लेकिन 2 बजे पहुंचने पर क्या हम बोर नहीं होंगे सारे दिन वहां..! क्यों न हम रात के लिए मुनस्यारी निकले व सुबह वहां से मदकोट होते हुए बोना गाँव। मैं बोला- मुनस्यारी से कहाँ सड़क होगी सर..! भट्ट जी बोल पड़े- है , क्यों नहीं है। मैंने वहां कई साल नौकरी की है। ये अच्छा आईडिया है चलो मुनस्यारी। जीवन जोशी जी ड्राइविंग सीट पर थे- बैक मिरर पर देखते हुए बोले- सुयाल जी..आप बताएं कैसा रहेगा। सुयाल जी बोले – करीब 8:30 घण्टे की ड्राइविंग है अर्थात हम 6:30 बजे तक मुनस्यारी पहुंच सकते हैं।
फिर क्या था चौकोड़ी का प्लान कैंसिल…! यहां से चौकोरी लगभग 140 किमी दूर व सफर लगभग साढ़े चार पांच घण्टे का। मैं थोड़ा असहज था कि इतनी लंबी यात्रा तो हमें थका देगी। चलो जब प्रोग्राम बन गया था तो क्या करें। मैं खुश था कि मैं ड्राइविंग सीट की बगल वाली सीट में हूँ। मेरे लिए पहाड़ के सफर में यह सबसे कंफर्ट सीट रहती है। हमें खीना पानी से गङ्गरकोट-सुयलबाड़ी-रतिघाट-अल्मोड़ा-बाड़ेछीना-खांकरी गूंठ-हटौली-सनरी-सेराघाट-गोनाई-राईआगर-बेरीनाग होकर पहले चौकोरी जाना था लेकिन अब चौकोरी से पहले ही पिंगलनाग-कुमल्टियां होकर थल का सड़कमार्ग पकड़ना था क्योंकि यह मुनस्यारी जाने के लिए सबसे मुफीद मार्ग हुआ।
अल्मोड़ा के पास हाई वे पर भट्ट जी से बाल मिठाई ली तो मैं भी लपककर पाव भर रास्ते के लिए ले आया। सिंगौरी मिठाई को आपस में बांटकर खाने के बाद सभी ने बाल मिठाई के डिब्बे वापस रखे और हो गया आगे का सफर शुरू…। तय हुआ सेराघाट में सरयू नदी की मछली खाई जाएगी। फिर क्या था- सुयाल जी बोल पड़े- क्या मांस खाना आप लोगों का जरूरी है। घर से यूँ भी खाने की सारी व्यवस्था साथ है। भट्ट जी बोले- आप चिंता न करो। हम आपको वहां गाड़ी में ही बैठाकर रखेंगे। मैं समझ गया कि सुयाल जी मछली नहीं खाते।
थल से चिलकिया, नाचनी, टिमटिया-तेजम-क्वीटी-सिमली-दफा-बिर्थी-पुर्दम-बनिक-रातापानी-कालामुनी टॉप-मुनस्यारी।