* अपने ही घर में बेगाने हो गये हम, गैरों पर करम अपनों पर सितम
* अजय भदूला को बर्बाद कर दिया, अकबर के सजदे में झुक गया वन विभाग
(गुणानंद जखमोला)
पौड़ी के धुमाकोट तहसील के कार्बेट रिजर्व के साथ लगते गांव जमूण के अजय भदुला ने 2011 में स्वरोजगार अपनाने की सोची। उसे लगा कि रामगंगा का इलाका है। कार्बेट घूमने आए पर्यटक उसके यहां ठहरेंगे और उसका जीवन यापन ठीक से होगा। उसने 2016 में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत बैंक से 10 लाख का लोन लिया और उसकी पत्नी ने 8 लाख का लोन लिया। 18 लाख के लोन के साथ उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन में पांच टेंट लगाकर होम स्टे खोल दिया। यह गांव बफर जोन में है। गांव के लिए अंग्रेजों के समय से ही बैलगाड़ी की सड़क है।
अजय भदूला के सपनों पर वन विभाग ने कुठाराघात कर दिया। पहले ही दिन से उसके होम स्टे तक किसी भी पर्यटक को नहीं आने दिया। अनुमति न मिलने से अजय भदूला का पूरा निवेश खत्म हो गया। वह वन विभाग से लेकर मुख्यमंत्री तक पहुंचा। पर चिट्ठी-चिट्ठी के खेल में अजय के पैरों पर छाले पड़ गये और दरबदर की ठोकरें भी वन विभाग से अनुमति नहीं दिला सका। लिहाजा अजय भदूला बैंक की किश्त नहीं दे सका और बैंक ने उसके खिलाफ कुर्की का नोटिस दे दिया। अजय के अनुसार उसकी बेटी को पढ़ना छूट गया क्योंकि फीस के लिए भी पैसा नहीं था।
अजय का आरोप है कि वन विभाग इसी इलाके के कालाखांड में यूपी के आजमगढ़ के अकबर अहमद को होम स्टे बनाने की अनुमति भी दे दी और वहां सड़क भी बन गयी। जबकि कालाखांड भी बफर जोन में है। अकबर ने पक्का निर्माण किया है। वन विभाग ने कोई आपत्ति नहीं की। वह कहता है कि मूल निवासी के साथ भेदभाव और बाहरी लोगों को गले लगाया जा रहा है। उसने वन विभाग से लेकर सचिवालय तक दौड़ लगाई। हाल में सीएम धामी ने भी उससे मिलने की बात कही, लेकिन मिले नहीं।
सच यही है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे प्रदेश के नेता और अफसर बाहरी लोगों को गले लगाते हैं और मूल निवासियों के हक-हकूकों पर डाका डालने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसी का परिणाम है कि अजय भदूला जैसे सैकड़ों युवा बर्बादी के कगार पर हैं। स्वरोजगार इसलिए भी कोई नहीं अपनाता, क्योंकि हमारे अपने नेता और अफसर ही उन्हें प्रोत्साहन नहीं देते।