Saturday, July 27, 2024
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श्रीनगर के अल्पकालीन राजा पराक्रम शाह ने मोलाराम की गणिका छीन उन्हें दो माह तक कैद में रखा।

श्रीनगर के अल्पकालीन राजा पराक्रम शाह ने मोलाराम की गणिका छीन उन्हें दो माह तक कैद में रखा।

(मनोज इष्टवाल)

सम्पूर्ण विश्व के राजघरानों के अंतरंग इतिहास को अगर खंगाला जाय तो काफी कुछ हैरतअंगेज इतिहास से आपका पाला पड़ जायेगा। क्योंकि राजतन्त्र में प्रजा पर तो सभी नियम लागू थे लेकिन प्रजापालक पर कोई नियम लागू नहीं होता था। आश्चर्य तो यह है कि गढ़वाल राजघराने के सुप्रसिद्ध चित्रकार होने के साथ-साथ सम्मानीय सभासद व मुद्राधिपति थे, जिनके नियंत्रण में टकसाल तो थे ही साथ में वे स्वयं राजाओं को चित्रकला व अरबी फारसी का ज्ञान भी देते थे। आज भी उनके नाम पर ऐसे क़ई चित्र प्रकाशित कर दिए जाते हैं जो उन्होंने कभी बनाये ही नहीं। अब चाहे श्रीनगर का गढ़राज महल हो या फिर मुगलों की शक्ल -सूरत लिए गढ़वाली राजाओं के चित्र! इनमें से ज्यादात्तर फर्जी चित्र हैं, और तो और उनके चित्र को राजा श्याम शाह (साम शाह) का चित्र बता दिया जाता है। शायद चित्रकार मोलाराम तुंवर आज भी हम सबके बीच अबूझ पहेली हैं, क्योंकि हमने न उन्हें पढ़ा और न उन पर कुछ खोजबीन करने की कोशिश की। सच सौ पर्दों में क्यों न छुपाया जाय वह एक न एक दिन सामने आ ही जाता है जैसे – राजा पराक्रम शाह का यह सच कि उन्होंने मोलाराम से उनकी गणिका लक्ष्मी को छीनकर उन्हें कैद कर लिया साथ ही राजा प्रधुम्न शाह को भी विश्वासघात कर कैद में डाला।

“जिन छीन लई गणिका हम सौं, बिन ही अपराध हमको दंड दियो।” वैरिस्टर मुकुंदी लाल ने अपनी पुस्तक “गढ़वाल चित्रकला” में लिखे अपने “दो शब्द” में इसका उल्लेख करते हुए यह बात कही जो मोलाराम ने अपनी पुस्तक “गणिका नाटक अथवा गढ़ गीता संग्राम में स्वयं इसका उल्लेख किया है।

अब आते हैं चित्रकला के उन महत्वपूर्ण पहलुओं पर जिन पर आज भी बड़ा संशय बना हुआ है क्योंकि हम सिर्फ़ चित्रकार मोलाराम तुंवर को ही गढ़राज वंश में चित्रकार मान लेते हैं क्योंकि और किसी का हमें नाम ही पता नहीं है। यह भी सच है कि अपने खानदानी चित्रकारों में वे इकलौते ऐसे चित्रकार रहे जो राजघराने में राजाओं के गुरु भी रहे व उन्होंने चित्रकारिता के साथ -साथ राजा व राजकुंवरों को अरबी फारसी का ज्ञान भी दिया।

दरअसल गढ़वाल राजघराने में तो चित्रकला का उदगम बर्ष 1658 में ही राजा पृथ्वीपति शाह के समय में हो गया था जब उनके परदादा श्यामदासहरदास औरंगजेब के भाई दाराशिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह के साथ श्रीनगर आ बसे थे। उनके दादा हीरालाल (हीरानन्द) उनके पिता मंगतराम के पश्चात उनका जन्म 1743 ई. में हुआ व मृत्यु 90 बर्ष की उम्र में 1833 ई. में हुआ। उन्होंने अपनी उम्र गढ़वाल राजघराने के चार राजाओं के साथ गुज़ारी। यह आश्चर्यजनक है कि उन्होंने न सिर्फ़ गढ़वाल राजघराने के चित्र उकेरे बल्कि उन्होंने नेपाल के सेनानायकों के भी चित्र उकेरे क्योंकि वे टिहरी राज विस्थापन के बाद भी टिहरी नहीं गये क्योंकि टिहरी रहा प्रधुम्न शाह के भाई पराक्रम शाह से उनकी शत्रुता थी जबकि टिहरी से प्रीतम शाह श्रीनगर उनसे चित्रकला सीखने आया करते थे। पराक्रम शाह से उनकी दुश्मनी का सबसे बड़ा कारण यह था कि उन्हें कांगडा नरेश के यहाँ से मिली खूबसूरत गणिका लक्ष्मी जिसकी खूबसूरती पर स्वयं मोलाराम भी मुग्ध थे, को पराक्रम शाह ने छीन लिया और उन्हें कैद कर दिया। दरअसल पराक्रम शाह को इस बात की ईर्ष्या हुई कि आखिर एक चित्रकार को कैसे कोई राजा राजकीय सम्मान की तरह गणिका, तलवार, ढाल, पगड़ी, दुशाला व खिल्का प्रदान कर सकता है। पराक्रम शाह ने इतनी खूबसूरत बांदी-निर्तकी या गणिका (जिसे वर्तमान में रंडी या वैश्या) बोला जाता है, या तो देखी नहीं थी या फिर वह स्वयं उस पर मुग्ध हो गये थे। यह भी हो सकता है कि उन्हें मिले ऐसे राजकीय सम्मान से उनकी भावनाएं आहत हुई हों।

मोलाराम के चित्र को मिटाया तो नहीं जा सका क्योंकि उनके चित्र को स्वयं मोलाराम द्वारा ही बनाया बताया गया है, जिसे आज भी लंदन स्थित म्यूजियम में संग्रहित किया गया है व चित्र के नीचे लिखा गया है :- मोलाराम की छवि (पोर्ट्रेट) गढ़वाल, मोलाराम, 1743-1833 (9″x 5″) बालक राम के संग्रह से।
यही चित्र विवाद का बिषय बना हुआ है क्योंकि क़ई लोग इस बात को पचा नहीं पाते कि यह मोलाराम का चित्र है लेकिन इस चित्र को वैरिस्टर मुकुंदी लाल ने 1969 में रूपलेखा में प्रकाशित किया था। उनका कथन है कि इस चित्र का मूल कैप्टेन शूरवीर सिंह जी के पास है जिसे 1973 में मुंबई की एक पत्रिका ने भी प्रकाशित किया।

इस बात की पुष्टि के लिए मेरे द्वारा मोलाराम के कृतित्व खंगाले गये। हम में से बहुत कम जानते हैं कि मोलाराम तुंवर ने न सिर्फ़ चित्रकला को बढ़ावा दिया अपितु उन्होंने 12 पुस्तकें भी अपने जीवनकाल में लिखी। सन 1787 में वे कांगड़ा के ज्वालामुखी मंदिर में भगवती दर्शन को गये थे जहाँ उन्हें राजकीय सम्मान के तौर पर तलवार, ढाल, पगड़ी, दुशाला व खिल्का पहनाया गया। अपने पेंटिंग के साथ उन्होंने इस सम्मान के लिए अपने शब्दों में इसे ऐसे वर्णित किया :-
“मोहि बरदान दिया, सिर पे टोपी धरी, खिल्का गले बीच डाला,
मन्मथ पंथी धराया नाम, दिया बार दुशाला।
दिया मुझे दस्त में शमसेर पिसर मेहर भई….
टोपी फैलाकर सिर पर, खिल्का गले बिच डालो।
पांच हथियार मेरे बांधिके रैयत को पालो
फ़तेह होगी तुम्हारी संत मैं बरदान दिया।”

फोटो में दिख रहे हुक्के के बारे में मोलाराम ने लिखा :-
“हुक्का चलता नहीं मेरा, न शाकी है न प्याला है।” कहा तो यह भी जाता है कि हुक्के से संबंधित शब्द उन्होंने अपनी गणिका की जुदाई पर कहे।
मोला राम के बाद उनके दो पुत्र हुए जिनके ज्वालाराम और अजबराम नाम थे। इनमें से अजबराम का वंशवृक्ष शायद समाप्त हो गया क्योंकि ज्वालाराम (1788-1848) ने पिता की मृत्यु के बाद व उनकी वृदावस्था को देखते हुए चित्रकारिता संभाल ली थी। गढ़राजवंश में श्रीनगर राजदरबार व शहर का जो चित्र उकेरा गया है वह अक्सर हम मोलाराम की कृति मानते हैं जबकि यह उनके पुत्र ज्वालाराम ने बनाया है जिसकी मूल प्रति विक्टोरिया-अल्बर्ट म्यूजियम लंदन में रखी बताई जाती है व कुछ प्रतियाँ मोलाराम संग्रह टिहरी, बोस्टन संग्राहलय, टैगोर संग्रह, भारतीय कला भवन इलाहाबाद, लखनऊ संग्राहलय, दिल्ली संग्राहलय इत्यादि में रखे गये हैं।

बहरहाल ज्वालाराम के पुत्र आत्मा राम व तेजराम, आत्मा राम के मुकुंदराम व मुकुंद राम के फतेहराम, काशीराम व तुलसीराम (1881-1950) तक की वंशावली जबकि तेजराम के हरिराम, तोताराम व बालकराम तथा बालक राम के बैजनाथ (1917-1973) व बैजनाथ के द्वारका प्रसाद तक वर्तमान वंशवृक्ष प्राप्त हो सका। कोई सज्जन अगर महान चित्रकार मौलाराम तुंवर के वर्तमान वंशजो का जानकारी उपलब्ध करा सके तो बड़ी कृपा होगी।

(Refrenses :- वैरिस्टर मुकुंदी लाल, वैरिस्टर मानुक, मिस्टर विलियम आर्चर (इंडियन पेंटिंग फ्रॉम द पंजाब हिल्स ), मिस्टर जे सी फ्रेंच (हिमालय आर्ट), गढ़वाल पेंटिंग, अजीत घोष (रूपम)

 

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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