Thursday, December 26, 2024
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पुरानी पेंशन का चारा

पुरानी पेंशन योजना की समाप्ति का फैसला नव-उदारवादी नीतियों के कारण हुआ, जिन्हें देश ने लगभग आम सहमति के साथ स्वीकार कर लिया था। उन नीतियों के जारी रहते उनके एक स्वाभाविक को पलटना एक विसंगति ही माना जाएगा।

राज्यों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अब विभिन्न विपक्षी दलों की तरफ से सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना वापस लाने के वादे की झड़ी लग गई है। संभवत: इस वादे के पीछे यह धारणा है कि चुनाव नतीजों को प्रभावित करने में सरकारी कर्मचारी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। फिर यह भी माना जाता है कि अगर एक  कर्मचारी खुश होगा, तो उससे जुड़े कई परिजनों का वोट संबंधित पार्टी को मिल सकता है। लेकिन इसी वर्ष उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में यह वादा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को जीत दिलाने में नाकाम रहा। फिर भी राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दी है और अब गुजरात में ऐसा ही वादा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ने किया है। लेकिन वहां भी इसके प्रभावी होने की संभावनाएं कम ही हैं। इसलिए कि तमाम मतदाताओं के बीच सरकार  कर्मचारियों की संख्या न्यून होती है, बल्कि खुद सरकारी विभागों में अब लगभग एक चौथाई अस्थायी कर्मचारी हैं, जिन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती।

वैसे भी बाकी समाज ऐसी सुरक्षाओं से वंचित रहे, जबकि सरकारी नौकरी पा जाने वाले कुछ खुशकिस्मत लोगों की रिटायर्ड जिंदगी निश्चिंत होकर गुजरे, इस बात का कोई तर्क नहीं हो सकता। गौर करने की बात है कि 2004 में पुरानी पेंशन योजना की समाप्ति का फैसला नव-उदारवादी कट्टरता की उन नीतियों के कारण हुआ, जिसे देश ने लगभग आम सहमति के साथ स्वीकार कर लिया था। अब बाकी क्षेत्रों में उन नीतियों पर आगे बढऩा और उनके स्वाभाविक परिणाम एक निर्णय को पलट देना एक विसंगति ही माना जाएगा। बेहतर यह होत कि राजनीतिक दल इन नीतियों पर अमल के तीन दशक के अनुभव के आधार पर इनकी अपना पूरा आकलन देश के सामने रखते। लेकिन ऐसा कर सकने की बौद्धिक क्षमता और साहस किसी दल के पास है, उसके कोई संकेत नहीं मिले हैं। इस बीच चुनाव जीतने की बेसब्री में ऐसा वादा करना जिस पर अमल इन नीतियों के रहते समस्या ही पैदा करेगा- इन दलों की अल्पदृष्टि को जाहिर करता है। ऐसे वादों या उपायों से समाज का भला नहीं होता- यह हमें याद रखना चाहिए।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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