नौरख का नंदालोकोत्सव!– नंदाष्टमी मेले में देवताओं के अदभुत मिलन के साक्षी बनते हैं श्रद्धालु..
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
(नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रायें– किस्त–6)
हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा, यहाँ के लोक में इस तरह से रची बसी है कि नंदा के बिना पहाड़ के लोक की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती है। नंदा से अगाढ प्रेम की बानगी है कि आज भी लोग खुशी खुशी अपनी बेटी का नाम नंदा रखते हैं। भादो के महीने नंदा के लोकोत्सवों की अलग ही पहचान है। ऐसे ही लोकोत्सव है नौरख का नंदा लोकोत्सव।
पीपलकोटी के नौरख गांव में स्थित कैलावीर मंदिर में आयोजित तीन दिवसीय नंदाष्टमी मेले का नंदाष्टमी के पावन पर्व पर आज समापन हो गया। 11 सितम्बर को गांव के लोगों द्वारा फुलारी का चयन कर देवपुष्प ब्रहमकमल लेने उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित कुंआरी पास/ गोरसों बुग्याल भेजा गया था, जहां से ब्रहकमल लेकर फुलारी आज सुबह 10 बजे पैदल नौरख गांव पहुंचे जहां पर बंड क्षेत्र के समस्त देवताओं नें उनका स्वागत किया।
इस लोकोत्सव में बंड भूमियाल, कैलावीर और बजीर देवता के अदभुत मिलन नें हर किसी को भावविभोर कर दिया। इस अवसर पर श्रद्धालुओं द्वारा अपने इष्ट देवताओं से मनौतियां मांगी जाती है। तीन दिवसीय इस लोकोत्सव में ग्रामीणों द्वारा माँ नंदा के पारम्परिक लोकगीतों और जागरों से शानदार प्रस्तुति से हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस लोकोत्सव में ऐसा लगा की साक्षात माँ नंदा यहाँ पहुंची है। नंदा के मायके में लोकसंस्कृति जींवत हो उठी। श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में ब्रहमकमल वितरित किये गये।
मान्यता है कि भूमियाल देवता मां नंदा को अष्टमी मेले में दिन अपनें यहाँ बुलाते हैं। मां नंदा फुलारी के साथ नौरख गांव में पहुंचती है। अष्टमी के दिन सभी देवता श्रद्धालुओं को आशीष देते हैं।