Sunday, April 27, 2025
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नहीं रहे मंगलेश डबराल। साहित्यिक क्षेत्र के लिए। अपूरणीय क्षति

देहरादून (हि. डिस्कवर)।

सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार व लेखक मंगलेश डबराल का आज गाजियाबाद के एक अस्पताल में कोरोना के कारण निधन हो गया। वे 72 बर्ष के थे। गाजियाबाद के वसुंधरा में एक निजी अस्‍पताल में उनका इलाज चल रहा था। वे अपने लेखन के कारण हिंदी साहित्य अकादमी जैसे पुरस्कार से सम्मानित थे वे हिंदी कविता में उनकी विशेष पकड़ के कारण वे हिंदी कवियों के बीच एक चर्चित नाम के रूप में पहचान रखते थे।

उत्तराखण्ड मूल के मंगलेश डबराल का जन्म 14 मई 1949 को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड के काफलपानी गांव में हुआ था। उनकी इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई थी। दिल्ली आकर हिन्दी पैट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वे भोपाल में मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे।

उन्होंने इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की  सन् 1963 में जनसत्ता में साहित्य संपादक का पद संभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हुए थे। मंगलेश डबराल के पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं,आवाज भी एक जगह हैऔरनये युग में शत्रु  इनके मुख्य कविता संग्रह हैं।

इसके अतिरिक्त इनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन के साथ ही एक यात्रावृत्त एक बार आयो भी प्रकाशित हो चुके हैं। पहाड़ छोड़ने के बाद भी उनका कविता संग्रह “पहाड़ पर लालटेन” यहां के जनमानस में बहुत लोकप्रिय रहा। अक्सर वे  देहरादून के साहित्य  सम्मेलनों में शिरकत करने पहुंच जाया करते थे। फोटोजर्नलिस्ट कमल जोशी पर आयोजित कार्यक्रम में उन्हें श्रीमति गीता गैरोला द्वारा मुख्य रूप से आमंत्रित किया गया था। एक माह के अंदर उत्तराखंड की दो शख्सियतों जिनमें विश्वमोहन बडोला व मंगलेश डबराल शामिल हैं,का यों चला जाना यहां के नाट्य, सिनेमा क्षेत्र व साहित्यिक क्षेत्र के लिए एक अपूर्णीय क्षति कही जा सकती है।

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