खूँट या च्वींचा गांव…! आखिर कब और कहां है पं. गोबिंद बल्लभ पंत का जन्मदिन व जन्मस्थल। 1946 में स्वयं पंत ने किया था रहस्योद्घाटन।
(मनोज इष्टवाल)
किताबों में सरकारी अभिलेख व दस्तावेजों में हो या फिर गूगल व विकिपीडिया में दर्ज….! लगभग 80 प्रतिशत जगह उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित गोबिंद बल्लभ पंत का जन्मस्थान उनके अल्मोड़ा जिले का खूँट गांव दर्शाया व बताया गया है जबकि सच तो स्वयं 1946 में पौड़ी की एक जनसभा को संबोधित करते हुए पंडित गोबिंद बल्लभ पंत स्वयं ही बयां कर बैठे थे।
अतिथि संपादक गणेश खुगशाल ‘गणी’ व स्वयं सम्पादित अपनी पुस्तक “पौड़ी उनके बहाने” में डॉ योगेश धस्माना ने इस संशय को मिटाते हुए स्पष्ट किया है कि पंडित गोबिंद बल्लभ पंत का जन्म 30 अगस्त 1887 में पौड़ी गढ़वाल की नादलस्यूँ पट्टी के च्वींचा गांव के प्रसिद्ध थोकदार तुला सिंह की गौ-शाला (अलग छोटी सी कोठरी) में हुआ था।
अब यहां दुविधा यह है कि पंडित गोबिंद बल्लभ पंत की जयंती तो 10 सितंबर को मनाई जाती है फिर यह 30 अगस्त बीच में कहां से आ गया? दरअसल इन्हीं अपवादों के चलते हम सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाते हैं। वैसे जन्मतिथि दो-दो हो सकती हैं क्योंकि पहाड़ों में ज्यादात्तर ऐसा ही होता है कि जन्मकुंडली में दर्ज जन्मतिथि तो ऑरिजिनल होने के बाद भी प्रामाणिक इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि स्कूली दस्तावेजों में दर्ज जन्मतिथि को ही सब जगह प्रामाणिक माना जाता है।
अब आप पूछेंगे कि क्या पंत जी का गांव खूँट नहीं है? तब मेरा जबाब होगा- जी नहीं …! खूँट उनका ननिहाल है। व उनकी परवरिश उनके ननिहाल में ही हुई है।
डॉ योगेश धस्माना अपने लेख में प्रमाणिकता के साथ लिखते हैं कि उन्होंने 25 बर्ष पूर्व पंडित गोबिंद बल्लभ पंत के पुत्र पूर्व केंद्रीय मंत्री केसी पन्त को पत्र लिखकर उनके जन्मस्थल की वास्तविकता जानने सम्बन्धी पत्र लिखा था लेकिन उनका कोई जबाब नहीं आया। जबकि थोकदार स्व. तुला सिंह के नाती अधिवक्ता स्व. शंकर सिंह नेगी, वरिष्ठ पत्रकार कैलाश जुगराण, पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त दर्शन एवं बैरिस्टर मुकुन्दी लाल तक ने कई संस्मरणों में पंडित गोबिंद बल्लभ पंत की जन्मस्थली को पौड़ी गढ़वाल के च्वींचा गांव ही बताया है। इस बिषय में 1946 में प्रांतीय विधायिका के चुनाव में पौड़ी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पंडित गोबिंद बल्लभ पंत ने स्वयं इस बात का रहस्योद्घाटन किया था कि उनका जन्म च्वींचा गांव के तुला सिंह जी के यहां हुआ है। इसकी पुष्टि पंडित पन्त के सहयोगी व स्वाधीनता सैनानी ने भी की कि जब भी पंत जी के साथ वे पौड़ी भ्रमण पर गये पंत जी ने हमेशा यही बात दोहराई की पौड़ी उनकी जन्मस्थली है।
ज्ञात हो कि ब्रिटिश सरकार द्वारा सन 1939 में पौड़ी गढ़वाल कमिश्नरी की स्थापना के बाद यहां कलेक्ट्रेट की स्थापना के साथ अल्मोड़ा कमिश्नरी से यहां कुशल कर्मचारियों का स्थानांतरण करना भी शुरू कर दिया था। बर्षों बाद कर्मचारियों की अदला-बदली के चलते 1986 में अल्मोड़ा कमिश्नरी से पंडित गोबिंद बल्लभ पंत के पिता मनोरथ पन्त, पंडित आदित्यराम धस्माना व रविदत्त नवानी का स्थानांतरण पौड़ी कमिश्नरी किया था। तब पौड़ी में सरकारी कर्मचारियों के लिए “अमला क्वाटर्स” का कार्य निर्माणाधीन था व उन पर खिड़की चौखट लगने बाकी थे। ऐसे में पंडित मनोरथ पंत सपत्नी च्वींचा गांव के थोकदार तुला सिंह नेगी के मकान में रहने लगे। और बर्ष 1887 में उन्ही की नवनिर्मित गौशाला में पंडित गोबिंद बल्लभ पंत का जन्म हुआ। उस दौरान प्रसवकाल के दौरान महिलाओं के निरोग रहने व शुचिता की दृष्टि से उन्हें अक्सर गौशाला में रखे जाने की परंपरा थी। यह परम्परा हाल के बर्षों तक पौड़ी के राठ क्षेत्र के कई गांवों में देखी जा सकती थी।
अपनी पुस्तक “एन्ड दैन गढ़वाल” में अपने संस्मरणों 20 वीं सदी के प्रथम दशक में ब्रिटिश गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर जेम्स क्ले की पुत्री एंड्रूज ने 1911 में अपने संस्मरणों को साझा करते हुए लिखा है कि “मैंने पं गोबिंद बल्लभ पंत व मुकुन्दीलाल बैरिस्टर को टेनिस ग्राउंड में कई बार एक साथ युगल जोड़ी के रूप में देखा है।” गोबिंद बल्लभ पंत कई बार अंग्रेज अफसर की पौड़ी के बारे में बुराई पर गुस्से पर तमतमा जाया करते थे व कहते थे- पौड़ी उनकी जन्मस्थली है वे वहां की बुराई नहीं सुन सकते।
पंडित गोबिंद बल्लभ पंत के बर्ष शतक पर 1987 में 100वीं जनशताब्दी पर पौड़ी में एक सर्वदलीय कमेटी का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता वयोवृद्ध पत्रकार कुंवर सिंह नेगी ‘कर्मठ’ ने की थी व इस कमेटी में पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त दर्शन, च्वींचा गांव निवासी थोकदार तुला सिंह नेगी के नाती लक्ष्मण सिंह नेगी व राजेन्द्र सिंह रावत को शामिल किया गया व निर्णय लिया गया कि जहां पंडित गोबिंद बल्लभ पंत का जन्म हुआ उसे राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित करवाया जाए। इस संबंध में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लिए पत्र लिखकर सम्बंधित प्रस्ताव भेजा गया जिस पर उन्होंने सैद्धांतिक सहमति भी दी थी। यह पत्र पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त दर्शन के पास बर्षों सुरक्षित पड़ा रहा लेकिन 1990 में उत्तराखंड राज्य आंदोलन के कारण कई सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दे नेपथ्य में चले गए जिनमें सबसे ज्वलन्त मुद्दा पंडित पन्त की जन्मस्थली को राष्ट्रीय स्मारक में तब्दील करने का भी था।
अपनी पुस्तक “पौड़ी उनके बहाने ” में डॉ योगेश धस्माना लिखते हैं कि उत्तराखंड की समन्वयवादी और समरसतापूर्ण सांझी संस्कृति के विकास की दिशा में जिस तरह से पौड़ी निवासियों ने पंडित गोबिंद बल्लभ पंत के प्रति अनन्य लगाव प्रदर्शित करते हुए घुड़दौड़ी इंजीनियरिंग कालेज को उनके नाम समर्पित किया है वह बेमिशाल है।
यकीनन गढ़-कुमाऊँ की सांझा लोक संस्कृति व सामाजिक परिवेश का लोक राजा रजवाड़ों के काल में जैसा भी रहा हो लेकिन स्वतंत्र भारत के बाद से, या फिर उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद से जिस आत्मीयता का वास इसमें हुआ है वह अतुलनीय है, जिसकी खुलेमन प्रशंसा की जानी चाहिए।