Tuesday, July 15, 2025
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खारणी यानि कपडे धोने का यह साइंटिफिक तरीका ….!

खारणी यानि कपडे धोने का यह साइंटिफिक तरीका ….!

(मनोज इष्टवाल)

जब पहाड़ में पहाड़ से भी विकट जिंदगी थी..न सड़क ही थी और न इतना पैंसा की आदमी अपनी दैनिक दिनचर्या की वस्तुओं का उपभोग कर सके. अब कितने दिन कोई मैले कपड़ों में दिन गुजार सकता है. तब हमारे पुराने वैज्ञानिकों (भद्र जनों) ने कपडे धोने का यह तरीका इजाद किया. उन्होंने देखा कि हम दैनिक दिशाकर्म (शौच) निबटाने के बाद माटी या फिर राख से हाथ धो रहे हैं ..शायद इसलिए की हाथों की बदबू समाप्त हो जाए लेकिन जब उन्होंने इस नित्य कर्म में राख से हाथ धोने के बाद हाथों की चमक देखी तो उनके दिमाग में यह विचार आया कि क्यों न हम राख से भी कपडे धोकर देखें। उन्हें जब शुरूआती प्रयोग ज्यादा लाभप्रभ नहीं लगे होंगे तब उन्होंने यह तकनीक अपनाई…और आप यकीन नहीं करेंगे यह तकनीक पिछले बीस बर्ष पूर्व भी जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में यथावत चल रही थी।

संसाधनों की कमी और धन के अभाव से जोझते ग्रामीणों ने इस तकनीक को विकसित किया इसे जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में खारनी के नाम से जाना जाता है …! अपने अपने क्षेत्र में इसे अलग अलग नाम से पुकारा जाता है कोई खरवानी तो कोई खरमलडू कहते हैं।

जैसा कि आप फोटो में देख ही रहे होंगे कि एक चौड़े तसले को ओखल (स्थानीय भाषा में इसे घुत्तु कहा जाता है) के ऊपर दो लकड़ी के माध्यम से उंचाई दी गई है तसले के निचले हिस्से पर बारीक छेद किये जाते हैं फिर उसके ऊपर घास को पतली सेवल (भेमल) की डोर से बांधा जाता है तदोपरांत उसमें राख को आटे की तरह गोंथकर रखा जाता है और पानी से उसे धीरे धीरे पतला किया जाता है …ताकि उससे रिसने वाला महीन द्रव्य जा ओखल में गिरे तो उसकी क्वालिटी अच्छी हो और राख का पतला द्रव्य जब गिरकर ओखल में जाता है तो वह द्रव्य गंदे से गंदे कपडे बेहद सफाई से धुलता है।  है न बात में दम।

अगर आप वाराणसी या भारत के किसी भी अन्य पवित्र स्थल पर जाते हैं, तो आप आम तौर पर साधुओं या संतों के समूहों को देखते हैं जो सफेद रंग की राख को अपने माथे पर लगाए होते हैं। विभूति को आमतौर पर भगवान शिव के साथ जोड़ा गया है क्‍योंकि वह अपने पूरे शरीर पर इस पवित्र राख को लगाते थे। क्या आपने कभी सोचा है कि यह राख क्या है? इस पवित्र राख को विभूति कहा जाता है। विभूति का मतलब है बहुत मूल्यवान। यह एक विशेष प्रकार की लकड़ी को जलाने से प्राप्त होती है। परंपरागत रूप से, विभूति को शमशान घाट में जली हुई लकड़ी से प्राप्त किया जाता है। अगर इस भस्म का इस्तेमाल नहीं हो सकता है तो अगला विकल्प गाय का गोबर होता है। इसके अलावा चावल की भूसी से भस्म तैयार की जाती है।

सांस्कृतिक रूप से, माथे पर पवित्र राख को लगाने का बहुत महत्व हैं। विभूति या भस्म या पवित्र राख को लगाना भारत में एक आम बात है। एक आम धारणा यह है कि विभूति या पवित्र राख सभी बुरी ताकतों के खिलाफ रक्षा करती है। विभूती को लगाने के धार्मिक महत्व के अलावा इसके कई स्वास्थ्य लाभों को भी जानना चाहिए ।

सबसे अधिक मात्रा में होता है कैल्शियम। इसके अलावा होता है पोटेशियम, अल्युमिनियम, मैग्नीशियम, आयरन, फॉस्फोरस, मैगनीज, सोडियम और नाइट्रोजन। कुछ मात्रा में जिंक, बोरोन, कॉपर, लैड, क्रोमियम, निकल, मोलीब्डीनम, आर्सेनिक, कैडमियम, मरकरी और सेलेनियम भी होता है। इसके कई ऐसे गुण हैं जो गन्दे पानी को साफ करता है। कीटाणुओ का विनाश करता है। बेशक राख कपड़ों में इतनी चमक देने में नाकामयाब हो सकती है जितनी वाशिंग पाउडर इत्यादि लेकिन यह स्वस्थ्य मन चित्त के लिए बेहद लाभप्रद है।

कोरोना महामारी के दौर में पाया गया कि ग्रामीणों ने शौच आदि निवृत्ति के बाद या गांव से शहर जाने व वापस लौटने के बाद राख का प्रयोग बतौर सेनेटाइजर किया व कपडों में कीटाणुओ से बचने के लिए कपड़ों में राख का प्रयोग किया है।

  1. विभूति के फायदे सिरदर्द के लिए।
  2. पवित्र राख के लाभ रखें आपको साकारात्मक।
  3. भस्म के फायदे दिलाएं कोल्ड में राहत।
  4. ऊर्जा के लिए विभूति के स्वास्थ्य लाभ।
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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