हिंवाली कांठा….। जहाँ कृष्ण व उनके भाई ब्रह्म कौँळ ने मोती माला व पत्थरमाला बहनों को जीतकर किया था विवाह।
(मनोज इष्टवाल)
जाने कितने ट्रैकर्स आये दिन पंवाली कांठा के उन खूबसूरत बुग्यालों की गुदगुदी घास व बिल्कुल सामने खड़े उतुंग हिमालय के दर्शन कर प्रफुल्लित हो उठते हैं। जाने कितने थक हार कर यहाँ तक पहुंचे साहसिक पर्यटन के शौक़ीन लोग अपनी थकान के बीच यहाँ की जटामासी, गूगल, व बेसकीमती हिमालयी औषधि पादप व सैकड़ों की तादात में खिले बहुरंगी फूलों की महकती खुशबु में भाव-विभोर हो जाया करते हैं लेकिन यह आश्चर्य जनक है कि आजतक किसी ने भी हिंवाली कांठा के उन पहलुओं को छूने की जहमत नहीं उठाई जो त्रेता युगीन दक्षिण द्वारिका के रज्जा भगवान कृष्ण व उनके छोटे भाई ब्रह्मी कौँळ (ब्रह्म कुंवर) के बारे में बर्णित है। दरअसल हमें आदत ही नहीं है कि हम जिस सफर पर निकल रहे हैं, उसकी महत्तता को जाने की जिज्ञासा पैदा कर उस पर शोध कर सकें। जैसे कि मैंने नंदाराज यात्रा के दौरान जौंळ मंगरी ढूंढ कर जब उसका पटाक्षेप किया तो कई मित्रों नें प्रश्न किया – ताज्जुब है.. हमने तो दो से तीन बार यात्रा कर ली लेकिन आज तक देखी नहीं! मैं तब मुस्कराया व बोला था यात्राएं मनोरंजन के लिए करेंगे तो यही होगा क्योंकि हम उस भू भाग के निवासियों से चर्चा नहीं करेंगे तो कैसे यह सब अपने में समेट पाएंगे। आइये आज आपको लिए चलता हूँ हिंवच कांठा..! जहाँ ब्रह्म कौँळ की रघुवंशी घोड़ी हवा में उठती हुई जा पहुंची थी व जहाँ उन्होंने चांदी की चौपड व सोने के पासा खेलकर विश्व की अद्वितीय सुंदरी मोती माला को हराकर उसे कृष्ण भगवान की इच्छा से जीतकर उन्हें सौंप दिया था।