Monday, July 14, 2025
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पवन पवित्र त्योहारों के आगमन पर माघ माह के “मकर संक्रान्ति” के पर्व पर “घिया खिचड़ी संक्रांति”।

(समाजसेवी श्रीमति विजय लक्ष्मी गुसाईं के संस्मरण)

मैं ये कभी नही भूलती अपने दादा-दादी जी के साथ मनाये हुए ये वो त्यौहार …! जिनकी याद अक्सर आ ही जाती है। दादा जी ने बताया था कि- बेटे देखो आज से मकर संक्रान्ति के दिन से ही “माघ मास”का आरंभ हो जाता है। इसलिए इसको ‘”माघ संक्रांति'” भी कहा जाता है।
उत्तराखण्ड में आज के दिन उड़द दाल की खिचड़ी व घी के साथ बनाते व दान करते हैं, इसे घिया संग्रान्द भी बोला जाता है।”माघ की संक्रांति”” के दिन उड़द दाल की खिचड़ी को घी के साथ बनाते हैं।


….अच्छा तभी आज दादी जी ने इतना एक साथ ठेर सारी खिचड़ी बनायी है। तब हम छोटे थे पूछा ही लिया कि आज इतना सारी खिचड़ी…..!

– तब दादी बोली कि देखो जो बाहर दमाऊ ढोल बजा रहे हैं ये सब भी ये खिचड़ी ही खाएंगे। ये हमारे दास है वो दर्जी लोगो हैं। उनको भी खिचड़ी देनी है। और पहरे पड़ोस घर में त्यौहार नही है, उनके बच्चो को भी बोल रखा है उन्हें बुलाकर मिल बैठ खिन्चड़ी खाएंगे। ये सब आज “माघ संक्रांति” के दिन “घी खीचड़ी संक्रांति” पर ही सम्भव होता है। सब मिलकर इस खिचिड़ि को अब खाया जाएगा। इसलिए मेने ये बर्तन भर-भर कर बनाई है। मुझे खुशी हुई।इसलिये इसको “खिचड़ी वाला पर्व” भीकहा जाता है।
-तभी दादा जी पूजा करके आये बोले बेटे ये भी आप बच्चों की पता होना भी जरूरी है कि चावल जो चंद्रमा का प्रतीक है। उड़द दाल को शनि का प्रतीक है। हरी सब्जियां का संबंध बुध से माना जाता है। इसलिए कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से राशि में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है।इसलिए इसे पूरे देश मे अपने अपने तरीको से इस खिचड़ी को खास तरह रूप में हम कह सकते हैं कि प्रसाद के रूप मे खिचड़ी बनाई जाती है। और खिलाई जाती है। दान की जाती है।

चलो हम आपको आज मकर संक्रान्ति के बारे में बताते हैं। बेटी आज के दिन “माघ मास का आरंभ माना जाता है”इसलिए इसको ‘”माघी संक्रांति”‘ भी कहा जाता है। उत्तराखण्ड में आज के दिन हम लोग उड़द दाल की खिचड़ी बनाते व दान करते हैं। क्योकि माघ की संक्रांति के दिन उड़द दाल की खिचड़ी को ही बनाकर खाते हैं। इसलिए इसको ‘खिचड़ी वाला पर्व’ भी कहा जाता है।

बेटे आपको ये भी पता होना जरूरी है कि चावल को चंद्रमा का प्रतीक, उड़द दाल को शनि का और हरी सब्जियां का संबंध बुध से माना जाता है. इसलिए कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से राशि में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है।

हमारे उत्तराखण्ड में खास तरह का प्रसाद या खिचड़ी बनाई जाती है। “घी के बिना घी संक्रांति अधूरा पन लिए होती है”

“मकर संक्रांति”” के त्योहार पर क्यों खाते हैं खिचड़ी आओ! बैठो जानते हैं क्या? है इसका महत्व।

हमारी देवभूमि उत्तराखण्ड में त्योहार की अपनी एक खासियत होती है। उसमे इसी तरह “मकर संक्रांति त्योहार” की भी अपनी एक खासियत है।इस त्योहार को हमारे देश मे अलग-अलग नाम से पूरे भारत देश के प्रदेशों में बड़े ही उत्साह के साथ ये पर्व अपने- अपने भौतिकता व भौगोलिकता को भी मिलाकर मनाते आ रहे हैं। क्योकि पौराणिकता से ही ये सबका मानना है कि”साल का पहला त्योहार”अपने साथ कई महत्व को शुभ संकेतो को लेकर आता है।
“मकर संक्रांति” का ये त्योहार फसलों और किसानों से ही जुड़ा है। और इसे एक त्योहार के रूप में संक्रांति के रूप में “खिचड़ी संक्रांति” के नाम से जाना जाता है। हमारे उत्तराखण्ड में “घी संक्रान्ति” पंजाब में लोहड़ी और दक्षिण में पिंगल इसी प्रकार यूपी में भी “खिचड़ी संक्रांति” के रूप में पारंपरिक तरीकों से बनाते चले आ रहे हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा देश किसान प्रधान है। इसलिए आज के दिन हम किसान अपनी साल भर की अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रार्थना करते हुए धन्यवाद देते हैं कि हे! प्रभु आपकी कृपा व दया भाव सदैव हम किसान लोगों पर बनाए रखना। यही आशीर्वाद को उत्सव के रूप में मांगते आ रहे हैं।

उत्तराखण्ड में ठाकुरों का बर्चस्व है वे खेती करते हुए जमीदारी लोग हैं। उनकी एक विशेषता यही रहती है कि वे सभी आपस मे अपने कम संख्या से जुड़े अपने ब्राह्मण व अपने दास जो लोग इन जमीदारों पर ही आश्रित हैं। उन्हें इस त्यौहार से जोड़कर अपनी खुशी को मिलकर एक साथ मनाते आ रहे हैं, जैसे हमने देखा है।  हमारे उत्तराखण्ड के द्वारा लाये ब्राह्मणों को हल नही लगाने देते थे। और “माघ महीने” से ही अपनी फसल का पहला अनाज को उनको दान कर साल भर सुख शांति की कामना व सम्बरधी की कामना से ही “खिचड़ी दान” करते थे और सारी नई फसलों का पहला अनाज भी दान कर “महादान” करते थे। माघ माह से पहली खिचडी से ही शुभारम्भ करते थे, जो कि स्वस्थता की कामना का प्रतीक हम भारतियों का ये प्रमुख भोजन में शुमार हो गया, क्योकि स्वस्थ होने निरोगता का प्रतीक यह खिचड़ी है। इसे घी के साथ ही खाया जाता है।
तभी तो आज हमारे उत्तराखण्ड में भी हर कोई कि “उड़द दाल की खिचड़ी” में “घी” डाल कर खाते हैं व “खिलाते” भी हैं साथ में “दान” करते हैं।
इस “घी संक्रांति” को हमारे उत्तराखण्ड का बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। त्योहारो का ज्ञान बच्चों को होना बहुत जरूरी है तभी तो आप भी इसे मनाएगी….अभी बात ही चल रही थी कि तभी…तभी हमारी दादी जी ने भी बहुत सारे उड़द दाल के पकोड़े बनाकर कहा कि बेटे इन्हें तुमने गांव में बांटने जाना है जल्दी से तैयार हो जाओ।

मेरी दादी भी खूब अच्छी खिचड़ी बनाती थीं। आज हम भी इस दिन से इस त्योहार के बारे में जाना। और देखा कि हर घर में तरह-तरह के मीठे पकवान असज भी बनाए जाते हैं। जिसमें गुलगुले मीठे पूये और मीठा चावल शामिल हैं लेकिन सबसे खास होती थी “उड़द दाल खिचड़ी घी के साथ” का मजा औऱ महत्व ही कुछ औऱ है।

आज के दिन उत्तराखण्ड में जो गंगा स्नान का महत्व बहुत है बल्कि पूरे भारत मे भी “माघ स्नान ” का महत्व है। पर जैसे हम स्नान नही कर सकते थे तो दादा जी बोले जो लोग गंगाजल पर नही पहुँचते उनको अपने पानी मे गंगाजल मिलाकर ही जरूर स्नान करते हुए पूजा पाठ करना चाहिए। स्नान के बाद पहले से ही हमारी परंपरा रही है कि पूजा करने के बाद दाल, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, सोना, ऊनी कपड़े, बस्त्र कम्बल जैसी चीजों को जो भी उपलब्ध है कुछ न कुछ दान करना ही है। दान करने के बाद तब ही खुद खिचड़ी खा सकते हैं।

मन मे आया तो दादा जी से पूछा कि “खिचड़ी” ही क्यों?? मकर संक्रांति पर बनाई जाती है? तब  दादा जी ने ही हमे बताया था। कि “मकर संक्रांति” प्रकृति से जुड़ी व मनुष्य शरीर के स्वस्थ कैसे रखे… तो माघ जो प्राकृतिक के कई गुण रूप रंग ठंग से जोड़ते हुए एक शुभ मुहूर्त व नये सृजन का प्रतीक मानकर इस “त्योहार” की एक स्वभाविक रूप में हर्ष उल्लास के साथ मनाते हुए उसमें “घी को खिचड़ी” को जोड़ते हुए भोजन खाने की यह परंपरा है। जिनको ये खिचड़ी प्राप्त नही होती जो गरीबी होते हैं तो उनके घर मे भी यह त्यौहार एक साथ मनाने के लिए ही पहले से ही विभिन्न प्रकार से “दान में चावल उड़ददाल नमक मसाले हल्के से एक साथ मिलाकर””अलग से “घी को भी दान करते थे।” बेटी तभी एकत्व-मिल बर्तन का प्रतीक है कोई इस त्यौहार से बंचित न रह जाये….ये ही पहले माह के प्रथम त्योहारो का सुंदर रूप लिए सम्पूर्ण अर्थ इसमें समया है बेटे यह बताना भी आपको जरूरी है कई त्योहारों के रूप में बताया करते थे। हमें ये भी समझते थे कि बेटे इस त्योहार को कई जगहों पर ‘खिचड़ी’ के नाम से भी जानते हैं।
हमारी सँस्कृति- सांस्कृतिक महत्व “घी संक्रांति” में है। देखो खिचड़ी को एक ही बर्तन में पकाया जाता है साधारण मसालों के साथ बनाकर एक साथ उसमे मिला दिया जाता है हम सब मिलकर अपने अपने घरों में गांव में शहरों में खिचड़ी खाते थे खाते हैं चाहे अमीर हो या गरीब तो ….
यह एकता का प्रतीक है। इसके अलावा, मकर संक्रांति की एक और खाससियत है कि ये हर एक के जीवन में उत्थान व विकास लाता है उसी प्रक्रिया को दर्शाता है। दोहराता है।

यह त्योहार जो आगे हमारी नए फसल की ओर भी संकेत करता हुआ… हर वर्ष की शुरुआत का संकेत भी देता है। खुशियों का प्रतीक है। दादा जी भी सबकुछ बता चुके थे। तभी मेरी दादी जी भी “मकर संक्रांति” पर बनाये तिल और गुड़ के लड्डू लेकर आ गयीं। मैंने खाया बोली दादी जी ये यो बहुत ही स्वादिष्ट हैं। फिर दादा जी बोले… देखो! बेटे …जो ये लड्डू खाकर तुम कह रही हो कि बहुत ही स्वादिष्ट हैं तो इसमें भी राज है।

दादा जी बोले…बेटे इसमें स्वाद ही नहीं सेहत के लिए भी लाजवाब हैं व शरीर की देखभाल भी करते हैं। ये हमारे वेध हैं तभी तो “”माघ की खिचड़ी”” खाना मीठा पक्वान बनाना ये सब स्वास्थ से जुड़ होने के कारण हैं।

— हमारे दादा जी ने हमे हर त्यौहार को बड़े गम्भीरता से बताकर फिर प्राकृतिक के साथ जोड़कर…मानव व प्रकृति की निकटता से बताते हुए यही कहते थे कि जो भी तीज त्यौहार हो उन्हें जरूर समय पर समयानुसार मनाते रहना चाहिए क्योकि इसमें स्वस्थता व शुद्धता के साथ मौलिकता के गुण लिए मानवता व प्रकृति की एकत्व को मिलवर्तन से एक निकटता को पास लेकर कही हम आपस मे एक दूसरे को भूल न जाये। जरूर मिलकर ही मनाए प्रभु खुश होता है और हमे व सबको भी खुशी मिलती है तभी हम संवर्धित साली का आशीष पाते हैं। मिलजुलकर प्रकृति से जुड़कर जो भी तैयोहार मनाते हैं वो परमात्मा की आत्मा से जुड़ा हुआ होता है।

दादा जी बोले- इसलिए “बेटे याद रखना” की हर कोई अपने ढंग से देश या विश्व में अपने तरीको से हर कोई व्यक्ति अपने पर्व मनाता है किसी भी उनके त्योहारो पर टिका – टिप्पणी नही करना बेटे……मेरा आशीष सदा तुम्हारे साथ है। चिरंजीव। ये मेरी यादों का एक त्योहार है…. दादाजी दादी जी की याद लिए ये त्यौहार है। चलो अब हम भी मनाये…..
आपको भी “”घी खिचड़ी”” “”माघ संक्रांति”” 👌की शुभ कामनाएं…..👍
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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