इनरलाइन परमिट के झमेले से क्षुब्ध है नीति-गमशाली के लोग।
पंजाब, हिमाचल में इनरलाइन परमिट नहीं फिर उत्तराखंड में ही क्यों।
(मनोज इष्टवाल)
क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड में एक स्थान ऐसा भी है जहां अमरनाथ जैसी गुफा है और बिल्कुल वैसा ही बर्फीला अद्भुत शिब लिंग। अगर नहीं जानते तो आइए आपको ले चलते हैं पहली बार ऐसी यात्रा पर जहां बर्फ के विशाल ढेरों और उतुंग हिमालय के दर्शन करते हुए आप भोले भंडारी के जयकारे लगाकर सड़क मार्ग से मात्र ढाई किमी. की दूरी हल्की सी चढाई पार कर टिम्बरसैण महादेव की उस गुफा में पहुंचते हैं जहां भगवान भोले का विशाल बर्फीला शिबलिंग अवस्थित है।
यहां पहुंचने के लिए आपको हरिद्वार- बद्रीनाथ मार्ग, कोटद्वार- पौड़ी -श्रीनगर – बद्रीनाथ मार्ग, अल्मोड़ा- गैरसैण-कर्णप्रयाग -बद्रीनाथ मार्ग या फिर बागेश्वर-ग्वालदम-बद्रीनाथ मार्ग से जोशीमठ पहुंचना होगा। यहां से आप बद्रीनाथ की जगह नीति घाटी के लिए निकले मार्ग से होकर नीति-गमशाली पहुंचना होगा। याद रहे नीति-गमशाली जाने के लिए आपको जिला प्रशासन चमोली या एसडीएम जोशीमठ से परमिट लेकर जाना होगा क्योंकि चीन बॉर्डर पास होने से यहां बिना परमिट के पहुंचना सम्भव नहीं है।
गमशाली नीति गांव के लोगों का कहना है कि मनाली चेक पोस्ट पर ही हमें रोका जाता है जहां हमें जरूरी कागजात दिखाने के बाद ही हमारे गांव जाने दिया जाता है जबकि अन्य आंगतुकों को बिना इनर लाइन परमिट के यहां प्रवेश नहीं करने दिया जाता। बुजुर्ग इस व्यवस्था से इसलिये क्षुब्ध हैं क्योंकि सरकारी नीतियों के चलते नीति घाटी में उनके नौनिहालों का आने का रुझान धीरे-धीरे कम होता जा रहा है और उन्हें शंका है कि कहीं आने वाले समय में उनके ये दोनों गांव मानवविहीन न हो जाएं।
बर्फानी बाबा टिम्बरसैण यात्रा पर नीति घाटी पहुंचे देहरादून के उदित घिल्डियाल ने जानकारी देते हुए बताया कि यह यात्रा पहले 18 मार्च को शुरू होनी थी लेकिन इस साल भारी बर्फबारी के कारण बड़े बड़े ग्लेशियर सड़क मार्ग अवरुद्ध कर गए जिसके कारण यहां तक सड़क मार्ग खोलने के लिए सीपीडब्लूडी व बीआरओ को बहुत मेहनत करनी पड़ी। अभी भी सड़कों के हालत बेहद खराब हैं क्योंकि भारी बर्फबारी के चलते सड़कें ध्वस्त हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि इस बार इतनी बर्फवारी हुई कि कई हिमालयी बरड़ व नीति-गमशाली क्षेत्र की गाय बैल अतिवृष्टि के कारण मर गए जिनकी खालें व कंकाल हड्डियां इस यात्रा मार्ग के बर्फ के बीच आपको बिखरी दिखाई देंगी।
आपको बता दें कि इस यात्रा जत्थे में शामिल होने उत्तर प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली से कई लोग आए हुए थे जिन्होंने बर्फानी बाबा टिम्बरसैण की पहली यात्रा कर पुण्य कमाया। दिल्ली से दिनेश मिट्ठू बताते हैं कि वे इस से पूर्व कैलाश मानसरोवर व दो बार अमरनाथ यात्रा कर चुके हैं जिन्हें उन्हें संगीनों के साये में करना पड़ा। यहाँ जहां एक ओर अप्रितम हिमलयी सौंदर्य व लोक धर्म संस्कृति है वहीं यह स्थान दिल्ली जिसे महानगर के बिल्कुल निकट है। उत्तराखण्ड सरकार चाहे तो इस बाबा बर्फानी से हर बर्ष धर्म पर्यटन के श्रद्धालु यात्रियों से करोड़ों का राजस्व अर्जित कर सकती है क्योंकि यहां की गुफा के बाबा बर्फानी के लिंग अद्भुत हैं।
जहां एक ओर नीति-गमशाली के लोग ढोल नगाड़ों के साथ बाबा बर्फानी के टिम्बरसैण स्थित बाबा बर्फानी के दर्शन करने अपने पारम्परिक भेषभूषा व लोकनृत्यों की छटा बिखेरते हुए गए वहीं वे इस बात से बेहद आहत हैं कि इस यात्रा को आयोजित करने से पूर्व वे प्रदेश के मुख्यमंत्री व धर्मस्व पर्यटन मंत्री से मुलाकात कर चुके हैं लेकिन दोनों जगह से निराशा ही हाथ लगी।
सूत्रों के हवाले से पता चला है कि यात्रा में शामिल होने या रहे कई पत्रकारों व श्रद्धालुओं को मलारी चेक पोस्ट से वापस लौटा दिया गया क्योंकि उनके पास इनर लाइन परमिट नहीं था। और तो और इस क्षेत्र के मूल निवासी लोककलाकार व कोषाधिकारी दरवान नैथवाल तक को मलारी चेकपोस्ट पर रोक दिया गया मजबूरन उन्हें अपने सरकारी कागजात दिखाकर अपने गांव जाना पड़ा। लोगों का कहना है कि वे भी जानते हैं कि यहां से चीन की सीमाओं के सटे होने से इसे बेहद सेंसिटिव ज़ोन माना जाता है लेकिन कागजों में इनर लाइन ज़ोन नीति गांव से लगभग ढाई किमी आगे से शुरू होती है फिर भी उन पर वे यात्रियों पर परमिट के बिना प्रवेश निषेध लागू है जबकि पंजाब ले अटारी व हिमाचल पर यह नियम जाने क्यों लागू नहीं होता।
बहरहाल यात्रा के प्रथम दिवस डेढ़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने उत्तराखण्ड का अमरनाथ कहलाने वाले बर्फानी बाबा टिम्बरसैण के बर्फ़ीले शिबलिंग के दर्शन कोई और अब देखना यह है कि कितने श्रद्धालु इस बर्ष यहां दर्शन कर पाते हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या उत्तराखण्ड सरकार व उसका धर्मस्व पर्यटन मंत्रालय इसे गंभीरता से लेकर इस यात्रा को अपने सरकारी सिस्टम से जोड़कर करवाएगा या फिर सरकारी नीति से आगामी समय में नीति गांव उपेक्षाओं का यूँहीं दंश झेलता रहेगा।