(मनोज इष्टवाल)
प्रश्न तो यही उठता है कि क्या सच में राजनेता व प्रशासनिक अधिकारी संसदीय बिशेषधिकार का ज्ञान नहीं रखते? अगर सचमुच रखते तो संसद में उठे खनन के मुद्दे पर दिए गए पूर्व मुख्यमंत्री व हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान पर प्रतिक्रिया देने के लिए खनन सचिव मीडिया के समक्ष इसे खुले मंच से खारिज नहीं करते। मुझे लगता है अगर खनन सचिव को अपनी बात रखनी थी तो उन्हें राज्य सरकार से पहले इसकी अनुमति लेनी चाहिए थी, और फिर इसे उचित माध्यम से केंद्र सरकार या राज्य सरकार के समक्ष लाना चाहिए था ताकि इस पर राज्य सरकार के मुख्यमंत्री, मंत्री या फिर विधायक सरकार की स्थिति स्पष्ट करने मीडिया से रूबरु होते। किसी भी सचिव को यह बिशेषाधिकार नहीं है कि वह संसद में रखे गए किसी मुद्दे को मीडिया के समक्ष रख उसे खारिज कर सके। चलिए जानते हैं क्या है पूरा घटना क्रम..!
पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खनन का संसद में क्या उठाया मुद्दा?
सामान्य तौर पर, लोकसभा सांसद का संसद में दिया गया बयान संसदीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privilege) के दायरे में आता है। संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत, सांसदों को संसद में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्राप्त है, और उनके बयानों पर बाहरी हस्तक्षेप या टिप्पणी सीधे तौर पर उचित नहीं मानी जाती। इसका मतलब है कि सांसद के बयान पर किसी राज्य सचिव का सीधे सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करना, खासकर उसे “निराधार” कहना, संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है। यह विशेषाधिकार सुनिश्चित करता है कि संसद की कार्यवाही स्वतंत्र और बिना दबाव के चले।
हालांकि, दूसरी ओर, राज्य का खनन सचिव एक प्रशासनिक अधिकारी है, जिसका दायित्व अपने विभाग के कार्यों की जानकारी देना और उसकी नीतियों का बचाव करना है। अगर सांसद का बयान राज्य सरकार के कार्यक्षेत्र से जुड़ा है और उसमें तथ्यात्मक गलतियां होने का दावा किया जाता है, तो सचिव को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अधिकार हो सकता है। लेकिन यह टिप्पणी औपचारिक चैनलों के माध्यम से होनी चाहिए, जैसे कि राज्य सरकार की ओर से आधिकारिक बयान या केंद्र सरकार को रिपोर्ट, न कि व्यक्तिगत रूप से या मीडिया के जरिए सीधे प्रतिक्रिया देना।
इस मामले में, त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान पर उत्तराखंड के खनन सचिव बृजेश कुमार संत की टिप्पणी को “जायज” कहना इस बात पर निर्भर करता है कि यह टिप्पणी किस संदर्भ और तरीके से की गई। अगर सचिव ने इसे व्यक्तिगत रूप से और संसद की गरिमा को चुनौती देते हुए कहा, तो यह अनुचित और संसदीय विशेषाधिकार के खिलाफ माना जा सकता है। लेकिन अगर यह राज्य सरकार की ओर से एक औपचारिक प्रतिक्रिया थी, जो तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए दी गई, तो इसे प्रशासनिक जवाबदेही के दायरे में देखा जा सकता है।
फिर भी, प्रोटोकॉल के हिसाब से सचिव को सीधे सांसद के बयान पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए था, क्योंकि यह संसद और राज्य प्रशासन के बीच की सीमाओं को धुंधला कर सकता है। बेहतर होता कि यह मामला राज्य सरकार के मंत्रियों या विधायकों के जरिए उठाया जाता, जो संसद में जवाब देने के लिए अधिक उपयुक्त मंच होते।
क्या आपको लगता है कि इस मामले में सचिव की टिप्पणी ने कोई बड़ा विवाद खड़ा किया, या यह सिर्फ एक सामान्य प्रतिक्रिया थी?
भारत के संवैधानिक ढांचे के अनुसार, लोकसभा सांसद के बयान पर किसी राज्य के सचिव का सीधे टिप्पणी करना सामान्य प्रक्रिया नहीं है। राज्य का सचिव, जो एक प्रशासनिक अधिकारी होता है, मुख्य रूप से राज्य सरकार के अधीन कार्य करता है और उसका दायित्व राज्य के प्रशासनिक मामलों तक सीमित होता है। दूसरी ओर, लोकसभा सांसद संसद में विधायी और नीतिगत मुद्दों पर चर्चा करते हैं, जो केंद्र सरकार के दायरे में आता है।
हालांकि, अगर सांसद का बयान किसी राज्य से संबंधित मुद्दे पर हो और वह राज्य सरकार के कार्यक्षेत्र से जुड़ा हो, तो राज्य का सचिव अप्रत्यक्ष रूप से उस पर टिप्पणी कर सकता है, लेकिन यह आमतौर पर औपचारिक चैनलों के माध्यम से होता है, जैसे कि राज्य सरकार की ओर से आधिकारिक प्रतिक्रिया या केंद्र को रिपोर्ट। सीधे संसद में दिए गए बयान पर टिप्पणी करने का अधिकार या अवसर राज्य सचिव को नहीं होता, क्योंकि संसद एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है और वहां की कार्यवाही में हस्तक्षेप करना प्रशासनिक अधिकारियों के क्षेत्र से बाहर माना जाता है।
अगर पार्टी फॉर्म के हिसाब से सोचा जाय तो पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा संसद में दिया गया यह बयान अपनी ही प्रदेश सरकार को असहज करने वाला है। यह सिर्फ़ प्रदेश की पुष्कर सिंह धामी सरकार ही नहीं अपितु भाजपा संगठन को असहज करने जैसा बयान है. यही नहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत के संसद में रखे गए इस बयान ने प्रदेश की राजनीति में नया मोड़ भी लाया है। टीएसआर के इन तेवरों की तारीफ कांग्रेस भी करने से पीछे नहीं हट रही है। यह पहली बार नहीं है जब त्रिवेंद्र सिंह रावत इतने मुखर दिखाई दे रहे हैं, इससे पहले भी वह कई मुद्दों पर अपनी सरकार को घेर चुके हैं, जिनसे भाजपा संगठन और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी असहज हो गए थे।
जो काम पहले होना था, वह अब हुआ। अब राज्यसभा सांसद व प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान पर प्रदेश सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए साफ किया है कि प्रदेश सरकार ने खनन से कितना राजस्व हासिल किया है। सुनिए क्या कहा प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट ने :-