(मनोज इष्टवाल)
अब अगर सुनील बडोनी के नाम की चर्चा हो तो उत्तराखण्डी फ़िल्म जगत से जुड़ा कोई भी व्यक्ति बता देगा कि वही ना जिनके होम प्रोडक्शन में “बाटा की ब्योली” फ़िल्म बनी। खैर सुनील बडोनी का परिचय इतने में ही समाप्त नहीं हो जाता क्योंकि पिछली सदी के 90 के दशक से उत्तराखंडी सिनेमा रंगमंच पर उपस्थिति दर्ज करवाने वाले सुनील बडोनी की गढ़वाली फ़िल्म “बाटा की ब्योली” 2005 में बनकर तैयार हुई। बीच में गढ़वाली सिनेमा जगत में क्राइसेस का दौर सभी ने झेला और फिर ऑडियो वीडियो अल्बम का बाजारीकरण शुरू हुआ। ऐसे में श्रीनगर व टिहरी सीमाएं सिमटी व उनकी अर्धांगिनी परिणीता बडोनी जोकि खुद भी बेहतरीन अदाकारा रही हैं, ने फ़िल्म अभिनेता, स्क्रिप्ट राइटर व निर्देशक सुनील बडोनी के साथ मिलकर होम प्रोडक्शन “माँ शक्ति पिक्चर्स” के बैनर तले काम करना शुरू किया।
अगर माँ बेटे कलाकार हों तो भला बेटा कहाँ पीछे रहने वाला था। बेटा सारांश बडोनी ने अभिनय के साथ जो सबसे जरूरी काम है,फ़िल्म एडिटिंग का..! वह शुरू कर दिया। फिर क्या था संसाधनों की भला कहाँ कमी आती। ऐसे में कई शार्ट फ़िल्म बनकर “माँ शक्ति पिक्चर्स ” के बैनर तले यूट्यूब पर आने लगी। बडोनी परिवार ने इस महामारी के दौर में कोरोना नाम की भयानक महामारी से जूझ रहे देशवासियों को जागरूक और सजग करने के उद्देश्य से तीन शॉर्ट फिल्मों का निर्माण किया है।जिनमें पहली फ़िल्म “कोरोना से डरो ना” (हिंदी में जो सामाजिक/शारीरिक दूरी पर आधारित है) अवधि 3.45 मिनट है, जिसमें सुनील बडोनी के साथ अभिनय में दिनेश बौड़ाई ने भूमिका निभाई है। फ़िल्म देखकर आपको आभास हो ही जायेगा कि कोरोना की इस महामारी से अंजान हम कितने हल्के में इस बीमारी को लेकर आगे बढ़ते हैं। फ़िल्म मात्र पौने चार मिनट में ही बहुत साधारण सी भाषा में सदे हुए डायलॉग के साथ सन्देश देने में कामयाब होती है। आप खुद ही देख लीजिए-
दूसरी फिल्म “एक पहल…!” में सुनील बडोनी, उनकी पत्नी परिणीता बडोनी, बेटा सारांश बडोनी व दिनेश बौड़ाई अपने अभिनय से बहुत ही सुंदर व कारगर सन्देश देते नजर आते हैं। जहां एक पड़ोसी को अपने पड़ोसी के बेटे की खांसी की चिंता है तो माँ को अपने बेटे की चिंता व बाप को पूरे देश की चिंता। पढ़ा लिखा बेटा समझदारी के साथ जो निर्णय लेता है वह फ़िल्म का क्लिकिंग पॉइंट कहा जा सकता है। हिंदी भाषाई इस फ़िल्म की अवधि 5.24 मिनट है।
तीसरी व अंतिम फ़िल्म “थेचवाणी”(गढ़वाली में जो lockdown के नियमों का पालन करने के बारे में शिक्षा देती है) अवधि 6.49 मिनट। फ़िल्म के टाइटल से ही पता चलता है कि यह फ़िल्म जरूर कहीं हास्य को प्रस्तुत करती होगी लेकिन यहां हास्य की जगह लॉक डाउन का वह सन्देश साफ दिखता है जिसमें पुलिसिया लट्ठ न उम्र का खयाल करता है न आपकी लापरवाही का। आलू के थेचवाणी का यह थेचवाणी यकीनन एक कठोर सन्देश तब प्रभावी रूप से दे रहा होगा जब लॉकडाउन 2 बजे तक का उत्तराखण्ड में प्रभावी था।
सच कहें तो “माँ शक्ति पिक्चर्स” के इस होम प्रोडक्शन ने इन तीन फिल्मों के माध्यम से जो सन्देश देश भर में फैलाया है वह जनजागरूकता के रूप में एक विज्ञापन समझ लीजिए जो समाज के हर वर्ग के लिए किसी मानसिक सहयोग से कम नहीं है।
“माँ शक्ति पिक्चर्स” के बैनर तले बनी इन तीनो शार्ट फ़िल्म की निर्मात्री परिणीता बडोनी बताती हैं कि इन फिल्मों का निर्माण हम परिजनों ने सामाजिक/शारीरिक दूरी और lockdown के नियमों का पालन करते हुए किया है। तीनों फिल्मों की स्क्रिप्ट को मेरे पति श्री सुनील बडोनी जी ने लिखा और निर्देशित किया है। फिल्मों के डीओपी और एडिटर मेरे बेटे सारांश बडोनी हैं और अभिनय में श्री सुनील बडोनी, श्री दिनेश बौड़ाई, परिणीता बडोनी और सारांश बडोनी हैं।
उल्लेखनीय है कि माँ शक्ति पिक्चर्स उत्तराखंड की प्रतिष्ठित फ़िल्म निर्माण संस्था है। इससे पहले इसी बैनर की गढ़वाली फ़िल्म *बाटा की ब्योली* ने यूट्यूब पर अच्छी खासी धूम मचा दी थी। फ़िल्म के पहले भाग को महज तीन महीने में ही लगभग पौने दो लाख दर्शक देख चुके हैं और दूसरे भाग को भी अभी तक 83,296 लोग देख चुके हैं।
माँ शक्ति पिक्चर्स ने *औलाद* नाम से हिंदी में आधा घंटे की एक शार्ट फ़िल्म अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों के लिए बनाई थी जो विभिन्न फेस्टिवल्स में फाइनल/सेमी फाइनल और आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में अपनी छाप छोड़ चुकी है। अब ये फ़िल्म यूट्यूब पर ही बहुत पसंद की जा रही है और मात्र 4 महीनों में ही इस फ़िल्म को 1,92,694 लोग देख चुके हैं।