Sunday, April 27, 2025
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छिपला केदार…! मल्ला जोहार के उच्च हिमालयी शिखर की व्रतपन यात्रा।

(मनोज इष्टवाल)

अगर आप हिमालयी सौंदर्य से अभिभूत होना चाहते हों! अगर आपने कभी बादलों कोई गोल्डन, सिल्वर व ब्लैक हिमालयी शिखरों से आँख मिचोली खेलते न देखा हो। अगर आपके पैरों ने कभी मखमली बुग्याल का लुत्फ़ न उठाया हो। और अगर आपने हिमालय के वन्य जंतु, औषधि पादप, सैकड़ों किस्म के पुष्प न देखें हों तो चले आइये छिपला केदार…। सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के बंगापानी तहसील में गोरी नदी घाटी के मध्य उच्च हिमालय में स्थित छिपला कोट, अपने में विशेष धार्मिक महत्व रखता है। समुद्र तल से लगभग 4200 मीटर की ऊचाई एवं बंगापानी के जारा-जिबली कस्बे से लगभग 14-15 किलोमीटर की कठिन पैदल चढ़ाई के बाद स्थित यह बुग्याल क्षेत्र प्राकृतिक सौन्दर्य, जैव-विविधता के साथ देवी-देवताओं का निवास स्थान भी माना जाता है. भगवान केदार के नाम से प्रसिद्ध इसे छिपला केदार नाम से भी जाना जाता है।

कौन हुए छिपला केदार 

स्थानीय लोकगाथाओं, जागरों व किंवदन्तियों के आधार पर यदि छिपला केदार के बारे में जाना जाय तो कहानी कुछ इस तरह सामने उभर कर आती है कि माता मैणामाई और पिता कोडिया नाग (हो सकता है ये कालिया नाग हों) से जन्म लेने वाले केदार देवता के दस भाई-बहन थे। तीन भाइयों में केदार सबसे छोटे थे। उदैण और मुदैण भाई और होकरा देवी, भराड़ी देवी, कोडिगाड़ी देवी, चानुला देवी, नंदा देवी, कालिका देवी, कोकिला देवी बहनें थी। बहनों में एक चानुला‌ देवी थी। वर्तमान में चानुला देवी मन्दिर, छिपला कोट के हृदय में स्थित गाँव‌ जारा-जिबली में विराजमान है। अतः छिपला जात या छिपला यात्रा जारा-जिबली के तोक जिबली के ( मलग्यूँ) से लगभग 8-9 बजे सुबह आरम्भ होती है। जिन्होंने सम्पूर्ण उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वास किया व हिम शिखरों के अलावा बुग्यालों व डांडा-कांठा के देवी व देवता के रूप में ये उच्च हिमालयी गाँवों में पूजे जाते रहे। छिपला केदार को आम जन महादेव का अंश भी मानते हैं व उनकी यात्रा उसी श्रद्धा भाव से करते हैं जिस श्रद्धा भाव से आम जन आदिदेव केदार अर्थात केदारनाथ की यात्रा करते हैं लेकिन यह बड़ा आश्चर्य है कि जोहार, दारमा, चौंदास, ब्यांस घाटी की अलौकिक सौन्दर्यमयी उच्च शिखरों में अवस्थित छिपला केदार आज भी विश्व भर के पर्यटन, धर्मावलम्बियों की नजरों से दूर सिर्फ एयर सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए व्रतपन यात्रा/चूडाकर्म/जनेऊ संस्कार बनकर ही रह गया है। यकीन मानिए लगभग 16000 फिट से भी अधिक ऊँचाई पर बसा छिपला केदार उच्च हिमालय में अभूतपूर्व सौन्दर्य लिए हुए है। यहीं स्थित छिपलाकुण्ड, नंदा देवी राजजात के बेदनीकुण्ड रूपकुण्ड की याद दिलाने लगता है।

नौलधप्या के साथ छिपला यात्रा:–

गोरी छाल में, जारा-जिबली, खड्तोली शिलैंग एव् कनार आदि गाँवों के लोग प्रत्येक तीसरे वर्ष श्रावण भाद्र के मास में छिपलाकोट एवं नाजूरीकोट की यात्रा करते हैं। इसे छिपला जात (छिपला) नाम से जाना जाता है। यात्रा में विशेष यह है कि यहां बालकों का व्रतपन (जनेऊ/ मुण्डन संस्कार) किया जाता है।  मान्यता है कि बिना व्रतपन वाले लोग एवं महिलाओं का इस क्षेत्र में जाना वर्जित है। जिन बालकों का व्रतपन होना होता है, उन्हें नौलधप्या बोला जाता है। सभी नौलधप्या सफेद पोषाक, सफेद पगड़ी, हाथों में शंख एवं लाल-सफेद रंग का नेजा (ध्वज), गले में घंटी लेकर नंगे पांव चलते हैं।  3 या 4 दिवसीय यह धार्मिक यात्रा जिबली तोक से आरम्भ होकर लगभग 14-15 किलोमीटर पैदल मार्ग यात्रा के प्रथम पड़ाव बाननी षुष्कर मन्दिर पहुंचती है। फिर मन्दिर में पुजारी, जगरिया एवं बोण्या (अवतरित देवता) की गरिमामयी उपस्थिति में विशेष देव वाद्य यंत्रों शंख, भंकोर (धात्विक पाइप यंत्र) की ध्वनि से देवताओं का आह्वान होता है। एक-एक कर देवी-देवता अवतरित होते है, सभी यात्री आशीर्वाद लेकर यात्रा की कुशलता की कामना करते हुए यात्रा के दूसरे पड़ाव टाकुला जो गांव से दिखाई देने वाली अन्तिम धार पहुँचते हैं। फिर पर कुछ समय बिश्राम के बाद यात्रा आगे को प्रस्थान करती है। फिर वहाँ से 3-4 घंटे के बाद सूकीदौऊ पहुँचते हैं। सूकीदौऊ इसका मतलब है कि यहाँ पर जो पानी के जमाव से जो तालाब बनता है वो सूख जाता है। इसी लिये इसे सूकीदौऊ कहा जाता है। यहाँ पहुचने पर सभी यात्रियों द्वारा भोजन या फिर दिन का खाना खाया जाता है। कुछ समय विश्राम करने के पश्चात फिर यहाँ से भी यात्रा प्रस्थान किया जाता है, और यात्री  धनिया्खान पहुँचते हैं। वहाँ से शुरू हो जाता है चढावा जो भी उस यात्रा में शामिल होता है, वह यात्री यहाँ सिक्के, पुष्प, रूपयेघरों से तैयार किया गया विभिन्न अन्नो से मिश्रित भोग यहाँ से चढ़ाना प्रारंभ कर देते हैं । लोक मान्यता है कि यह भोग उच्च हिमालय में रहने वाली वे अदृश्य आत्माएं व देव व गण श्रद्धापूर्वक ग्रहण कर यात्रियों को सकुशल यात्रा करने हेतु मंगलकामना आशीर्वाद देते हैं।

रात्रि विश्राम हेतु यहीं एक विशाल गुफा है। एक गुफा ही नहीं अन्य भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं यहाँ अवस्थित हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में भनार के नाम से जाना जाता है। जिसमें जितने भी लोग दल में होते है भगवान की कृपा से सब लोग बड़े आराम से आ जाते हैं।  यहां की व्यवस्था यहां पर अन्वाल (भेड़ चराने वाले) करते हैं।  जिन्हें कर के रूप में घी और धनराशि दी जाती है। दूसरे दिन प्रातः स्नान के बाद छिपला कोट (यानी नाजुरी ) के लिये चढ़ाई आरम्भ होती है। यहां से आगे का मार्ग चट्टानी, कठिन एवं कष्टकारी होता है। अतः सभी बालकों को जगरिया एवं अवतरित देवता अपने मार्गदर्शन में सबसे आगे लेकर चलते हैं। समुद्र तल से अत्यधिक उंचाई में स्थित होने के कारण यहां ऑक्सीजन की अत्यधिक कमी है, जो इस कठिन मार्ग को और भी जटिल बनाती है।

अगले दिन  चूली , तेजम-खैया, नन्दा शिखर से गुजरते हुऐ छिपला कोट (नाजुरी) पहुंचते हैं। मौसम साफ होने पर छिपला कोट से पंचाचूली की चोटियों की झलक नजदीक से पा सकते हैं। यह क्षेत्र उच्च हिमालयी औषधियों के भण्डार है। ब्रहम कमल, जटामॉसी, कटकी, कीडा-जड़ी (फंगस) यहां बहुतायत में है। छिपला कुण्ड पहुंचकर सभी पूजा-अर्चना कर व्रतपन (मुण्डन) का कार्य करते हैं एवं कुण्ड में पवित्र डुबकी लगाकर, कुण्ड की परिक्रमा करते हैं। अत्यधिक ठण्ड व मौसम के प्रतिकूल होने की अत्यधिक संभावनाओं के कारण यहां ज्यादा न रूक तीसरे पड़ाव, फिर से भनार की ओर प्रस्थान करते हैं।

रात्रि विश्राम के बाद मुण्डन संस्कार के कुछ अन्य कार्यों को पूर्ण कर यात्रा का प्रायोजन सकुशल पूर्ण कर कुछ लोगों द्वारा फूलों को तोड़ा जाता है, जो बहुत जरूरी होता है। यही फूल यहाँ का प्रसाद माना जाता है। जो घर आने के बाद हर एक छिपला केदार के प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं । इसके अतिरिक्त छिपला कोट से प्रसाद के रूप में छिपला कुण्ड का पवित्र जल एवं पवित्र पुष्प ब्रहमकमल साथ लाने की पंरम्परा है, जिन्हें लोग अपने स्थानीय देवताओं को चढ़ाने के बाद अपने घरों में रिद्धि-सिद्धि की कामना के साथ रखते हैं। वापसी में श्रद्धालु अपने साथ लाये हुए फूलों को मार्ग में मिलने वाले मन्दिरों में चढ़ाते हुए घर लौटते हैं। उनकी अवधारणा है कि ऐसा करने से उन पर सभी हिमालयी देवताओं का आशीर्वाद बना रहता है।

इस तरह 3 दिन की यह कठिन धार्मिक यात्रा घने वनों, चट्टानों, जटिल मार्गो, मौसम की विषय परिस्थितियों से भरी हुई  यात्रा भगवान केदार की असीम कृपा से सकुशल सम्पन्न होती है और सभी भाग्यशाली लोग इस अलौकिक धार्मिक यात्रा को पूरा कर  कैलाशी देवता का आशीर्वाद पाकर सकुशल घर वापसी के लिए चल हैं।  फिर दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद बिना खाना खाये शुष्कर मन्दिर जिबली की ओर प्रस्थान करते हैं । यह देखने लायक नजारा होता है क्योंकि लोगों की भीड़ सब एक दूसरे से बड़ी खुशी के साथ मिलते हैं। खाने पीने की सारी व्यवस्था सब गांव के लोगों की होती है। उनके द्वारा आये सभी यात्रियों को खाना खिलाकर सभी को कुशल मंगल घर प्रस्थान कराया जाता है। और सभी यात्रियों द्बारा वहाँ की अहम यादों को अपने जीवन भर यादों में संजोये रखते है। छिपला केदार यात्रा करने के बाद स्थानीय लोग अपने गाँव में अपने साथ गए मेहमानों व अन्य यात्रियों कोई रुकने का न्योता देते हैं। ताकि यात्रा से थके लौटे दूर के यात्री एक दिन उनके घरों में विश्राम करें व वे लोग भी पुण्य के भागीदार बन सकें।

छिपला केदार कैसे पहुंचें।

छिपला केदार पहुँचने के लिए आप हवाई यात्रा से पिथौरागढ़ व अपने वाहन या बस टैक्सी से हल्द्वानी-काठगोदाम से पिथौरागढ़ पहुँच सकते हैं। यहाँ से आप सड़कमार्ग से पिथौरागढ़-मुनस्यारी होकर मदकोट होकर व्वाल्की-मिर्तोली-तोमिक-झापली होकर बोनागाँव या फिर पिथौरागढ़ से जौलजीवी होकर जौलजीवी पुल से बाएं मुड़कर बरम-बंगापानी-सेराघाट होकर मदकोट-व्वाल्की-मिर्तोली-तोमिक-झापली होकर बोनागाँव पहुंचकर यहाँ रात्रि विश्राम कर अगले दिन यहीं से छिपला केदार के लिए निकल सकते हैं। बोना गाँव में आपको गाइड व पोर्टर भी मिल सकते हैं जो उच्च हिमालयी यात्रा के पथ-प्रदर्शक के रूप में आपके लिए सबसे बेहतर साबित हो सकते हैं। अलसुबह आप बोना गाँव से खारी-मोखलखान धार- तोमिकचैन धार होकर धारतीधार (लगभग 14000 फिट की ऊँचाई व 7 से 10 किमी ट्रैक) व धारतीधार से दाहिनी ओर मुड़कर शांयकाल तक छिपलाकेदार पहुँच सकते हैं। वर्तमान में क्षेत्रीय विधायक धामी ने वहां एक धर्मशाला का निर्माण भी करवा दिया है। आप जस्सू उड़ियारी में भी रात बिता सकते हैं और अगले दिन सुबह छिपला केदार के दर्शन कर यहाँ के बुग्यालों से अनमनी भांति के फूल चुन कर अपने साथ ला सकते हैं। साथ ही साथ अगली आप शांयकाल तक बोना गाँव लौट सकते हैं।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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