Saturday, July 27, 2024
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पटियाला पैग ईजाद करने वाले महाराजा पटियाला भूपिंदर सिंह की बुर्गी व मालती जौनसारी राणी।


पटियाला पैग ईजाद करने वाले महाराजा पटियाला भूपिंदर सिंह की बुर्गी व मालती जौनसारी राणी ।

* जौनसार बावर की दो लड़कियों का विवाह हुआ था पटियाला महाराजा भूपेंद्र सिंह के साथ।

* बुर्गी राणी चिचराड व मालती राणी कोटवा गाँव से..।

* दूसरी शादी के बाद भी बुर्गी राणी निःसंतान जबकि मालती राणी के हुए 06 बच्चे।

* पटियाला पैग के जनक थे महाराजा भूपिंदर सिंह।

(मनोज इष्टवाल)

आइये आज एक ऐसे बिरले महाराज की बात करते हैं जिन्होंने न सिर्फ़ शादियों का रिकॉर्ड बनाया बल्कि उन्होंने ब्रिटिश क्रिकेट टीम को व्हिस्की का ऐसा पैग पिलाया कि दूसरे दिन मैच तक हैंग ओवर उतर नहीं पाया। और मैच महाराजा पटियाला की टीम जीत गई। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने इस संबंध में महाराजा पटियाला भूपिंदर सिंह से नाराजगी व्यक्त की तो महाराजा पटियाला बोले – पटियाला में ऐसे ही पैग बनते हैं। कहा जाता है कि तब से वायसराय ने अंग्रेज अफसरों को निर्देश हो गये कि आप पटियाला पैग नहीं पिएंगे।

पटियाला के मोती बाग़ पैलेस में 12 अक्टूबर 1891 जन्मे महाराजा पटियाला भूपिंदर सिंह के बारे में कहावत है कि उनके हरम में सैकड़ों रानियां थी। कुछ का कहना था कि वह हर दिन रानी बदलते थे व साल में सिर्फ़ एक रात ही एक रानी के साथ गुज़ारते थे। इनके बारे में कहावत है कि इनके हरम अर्थात ‘रंगमहल’  जिसे लीला भवन कहा जाता है, में 365 रानियां थी। लेकिन उनकी 10 शादियाँ विधिवत मानी जाती हैं जिनसे इनकी 88 संतानें हुई। उनकी पटरानी जन्मे पुत्र कुंवर यादविंदर सिंह उनकी मृत्यु के बाद महाराजा पटियाला बनाये गये।

 

 

जौनसार बावर से उनके दो विवाह के बारे में वरिष्ठ पत्रकार व समाजसेवी भारत सिंह चौहान बताते हैं कि यह घटना यह घटना संभवत 1930 के आसपास की रही होगी पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह की अनेक रानियां थी उन्हें जो भी पसंद आती थी उनसे शादी कर लेते थे। जौनसार बावर के खत कोरु के चिचराड से खीमाण परिवार की बुर्की देवी (बूर्गी रानी) का विवाह भी पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह के साथ हुआ था, वह तीसरी कक्षा तक पढ़ी लिखी थी देखने में अत्यंत सुंदर बुर्गीं देवी अपनी बड़ी बहन बर्मी देवी जिसका विवाह विकासनगर के राजावाला में एक संभ्रांत परिवार में हुआ था जिनका पंजाब में भी फ्रूट और बागवानी का व्यवसाय था बुर्गी देवी भी अपने दीदी के साथ पंजाब गई थी वहीं एक समारोह में महाराजा पटियाला ने उन्हें देखा और उससे विवाह कर लिया ।

उन्होंने बताया कि महाराजा भूपिंदर  सिंह  का दूसरा विवाह जौनसार बावर बड़गांव खत के कोटवा गांव देवी सिंह ढोगराण परिवार की सबसे बड़ी सुपुत्री जो अत्यंत खूबसूरत थी मालती देवी का विवाह भी महाराजा पटियाला के साथ हुआ था। (देवी सिंह कोटवा भी ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे।)। सन 1938 में पटियाला महाराजा भूपेंद्र सिंह के निधन के बाद उनके सुपुत्र यादवविंदर सिंह ने विधिवत घोषणा की कि जो रानीयां वापस अपने घर जाना छाती है उन्हें सम्मान, धन, संपदा एवं स्वर्ण आभूषणों देकर विदा किया जाएगा और इसमें अधिकांश रानियां जो युवा थी वह अपने मायके वापस आ गई।

इसके पश्चात चिचराड़ निवासी बुर्गी रानी अपने मूल गांव चिचराड आकर रहने लगी। जिसका विवाह कुछ वर्षों के बाद खत बहलाड के लाच्छा गांव निवासी प्रताप सिंह से हुआ। प्रताप सिंह के पिता रत्ना सिंह/रतन सिंह ( घर का नाम घुड्डू)(बाजियाण गांव में उनके परिवार का नाम) ब्रिटिश सरकार में रेंजर पद पर कार्यरत थे। यह अत्यंत संपन्न थे, प्रताप सिंह अय्याश किस्म के युवा थे जो उस समय मुंबई जैसे शहर में बार गर्ल्स के डांस देखने जाते थे और हमेशा कोर्ट पेंट और टाई पहन कर रखते थे।

प्रताप सिंह के पिता रेंजर रतन सिंह ने लाच्छा गांव में एक सुंदर बंगला भी बनवाया था। आज भी उनके मकान को बांगला नाम से ही जाना जाता है। अव्यवस्थित जीवनचर्या के कारण प्रताप सिंह का अंत कठिनाई में बीता उन्होंने बाद में सन्यास लिया विकास नगर के आसपास किसी मंदिर में उनकी मृत्यु हो गई। बुर्गी रानी के कोई संतान नहीं थी और वह भी लाचछा से अपने मूल गांव चिचराड़ मे वापस आई और कुछ वर्षों बाद उसकी भी मृत्यु हो गई। गांव में बुर्गी रानी को दिल्ली वाली नानी कह कर भी पुकारते थे, क्योंकि वह कुछ समय के लिए पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह की दिल्ली स्थिति हवेली में भी रहीं।

अब  कोटवा गाँव निवासी मालती देवी भी महाराजा के निधन के बाद वापस अपने मायके आ चुकी थी। कुछ वर्षों के बाद मालती रानी का विवाह खत कोरू के गांगरो गाँव निवासी मोहर सिंह चौहान के साथ हुआ मोहर सिंह संपन्न व्यक्ति थे शिकार करने के अत्यंत शौकीन थे। जिन्होंने बाद में चकराता में अपना बहुत बड़ा व्यवसाय प्रारंभ किया।

मोहर सिंह चौहान के पोते देव सिंह बताते हैं कि उनके दादा ने पहले मालती देवी से विवाह रचाया जो पूर्व में महाराजा पटियाला की पत्नी थी। उनकी दादी वगैरह तीन बहनें थी जिसमें उनकी दादी मालती मंझली (अर्थात बीच की) हुई जबकि उनसे बड़ी वाली निमो देवी का विवाह मुंबई के व्यवसायी मफत लाल साड़ी वालों से हुई थी। उनके बेटे अजय व विजय दोनों आज भी अपने पिता की मफत लाल एंड कम्पनी चला रहे हैं। उन्हें अच्छे से याद है कि जब उनकी दादी की बड़ी बहन निमो देवी गाँव आई तो उनके साथ उनके पति भी आये थे।

मैंने देव सिंह चौहान से प्रश्न किया कि मालती राणी के अलावा उनकी एक और बहन की शादी भी महाराजा पटियाला से होनी बताई जाती है?  इस पर वह तर्क देते हुए कहते हैं कि नहीं मालती दादी से छोटी उनकी बहन का नाम हरदेई था जिन्हें गाँव में सब हरोद नाम से जानते हैं। जब दादा मोहर सिंह व दादी मालती की कोई औलाद नहीं हुई तो दादा ने उन्ही की बहन हरोद से विवाह कर लिया। हरदेई मेरी सगी दादी हैं। विधि का विधान देखिये कि जैसे ही मेरी दादी ने मेरे बड़े बाबा (ताऊ जी) को जन्म दिया, मालती दादी की गोद भी भर गई और कालांतर में मालती दादी की व मेरी दादी हरदेई की 06-06 संताने हुई। देव सिंह बताते हैं कि उन्होंने बचपन में अपने घर में बहुत सुंदर नक्काशी वाले चांदी के बर्तन देखे थे, तब बताया जाता था कि ये बर्तन दादी अपने साथ पटियाला से लाई थी। उन्हें मलाल है कि वे अपनी दादी को नहीं देख पाये थे क्योंकि उनके जन्म से पहले ही मालती राणी स्वर्ग सिधार गई थी लेकिन आज भी चकराता में “मालती मोहर सिंह गैस एजेंसी” दादा -दादी की याद दिला देते हैं.

ज्ञात हो कि बुर्की राणी जिन्हें बुर्गी नाम से भी जाना जाता है का विवाह मालती राणी से 4 बर्ष पूर्व महाराजा पटियाला से होना बताया जाता है लेकिन उनकी न महाराजा पटियाला से कोई संतान उत्पन्न हुई न लाच्छा गाँव के प्रताप सिंह से ही कोई संतान पैदा हुई। उनकी भतीजी रामसी देवी जोकि वर्तमान में बद्रीपुर में रहती हैं बताती हैं कि प्रताप मामा की मृत्यु के बाद हमारी फुफु जी वापस चिचराड गाँव लौट आई लेकिन उन्होंने जिंदगी भर उन्हीं वस्त्रों में जीवन यापन किया जो महाराजा पटियाला के यहाँ से लौटते हुए अपने साथ लाई थी। श्रीमति रामसी देवी बताती हैं कि बुर्की राणी को जब भी पैंसों की जरुरत होती तो वह अपनी सोने चांदी की जर्रीदार साड़ी जलाकर उसका सोना चांदी निकालकर उसे बेच देती। उन्होंने कहा कि मैं यह तो नहीं कहूँगी कि उनके बुढ़ापे में भी उन्हें पूरा ऐशोआराम मिला लेकिन इतना जरूर कहूँगी कि वह ताउम्र रानियों की तरह के आभामंडल में ही जीती रही। उनके पति प्रताप ने न सिर्फ़ अपने पिता की कमाई अपनी अय्याशी में फूंकी बल्कि बुर्की राणी के सोने चांदी के बर्तन जेवर तक बेच खाये थे और अंत में उनकी मृत्यु एक मंदिर में हुई।

सन 1938 में  महाराजा भूपेंद्र सिंह की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र यादविंदर सिंह बाद में राज गद्दी पर बैठे 1947 में देश में जब सभी रियासतों का विलय भारत संघ के साथ हुआ तब पंजाब स्टेट का विलय भी भारत के साथ हुआ। बाद में यह अनेक उच्च पदों पर आसीन रहे क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी रहे तथा विदेशों में भारत के राजदूत भी रहे।

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