(हिमालयन डिस्कवर डेस्क न्यूज़)
क्या कभी आपने भी सुना है ऐसे चावल के बारे में..! जिसके धान की बाली को काला नमक धान कहा जाता है? आखिर क्यों और कैसे भगवान बुद्ध को इस काले नमक के धान की उत्पत्ति के लिए अपने कमंडल को खंगालना पड़ा और क्यों?
इस पर उत्तर प्रदेश के राज्य सभा सांसद बृज लाल जानकारी देते हुए बताते हैं कि यह है हमारे घर का काला नमक धान की बालियाँ। धान की कटाई के समय पारंपरिक रूप से धान के गुच्छे बनाये जाते हैं, जिसे हम “ सिधरी” कहते हैं।
इसे घर के बरामदों में लटकाया जाता है, विशेषकर बरसात के समय। बरसात में गौरैया को भोजन नहीं मिल पाता, ऐसे में गौरैया इन धान की बालियों पर लटक-लटक कर धान से चावल निकाल कर खाती है।हमारे यहाँ पशु- पक्षियों का ध्यान पारंपरिक रूप से रखा जाता है।
कालानमक चावल बुद्ध- काल का है। सिद्धार्थनगर के पिपरहवा में स्थित टीलों की खुदाई भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की गई। खुदाई में बुद्ध भगवान का महल और स्तूप मिला। स्तूप में भगवान बुद्ध की अस्थियों सुरक्षित मिली जिसे दिल्ली में सजो कर रखा गया है।
खुदाई के समय काफ़ी चावल मिले, जो समय के साथ कबोनाइज्ड होकर कोयले जैसे काले पड़ गए,परंतु आकार में कोई परिवर्तन नहीं हुवा। जाँच में यह कालानमक चावल पाया गया, जो उस समय राजमहल में प्रयोग किया जाता था।यह भगवान बुद्ध की जन्मस्थली के रूप में स्थापित हो चुका है । सीमा के दूसरी तरफ़ लुम्बिनी है जो नेपाल में है। 1988 में बस्ती ज़िले की उत्तरी भाग को ज़िला सिद्धार्थनगर बनाया गया।
बुद्धकालीन इस चावल की खेती अंग्रेज ज़मींदारों ने भी की। एच डबलू पे पे, कैंपियर, फ़ेरेंड, ब्रिज़मैन, विलियम बर्ड, हैमफ़्रे गोरखपुर और बस्ती में कालानमक की खेती कराने वाले ज़मींदार थे, उन्हीं के नाम पर पीपी गंज, कैंपियर गंज, फ़रेंदा, बृजमन गंज और बर्डपुर बसाये गये।
अंग्रेजों द्वारा नेपाल सीमा पर बजहा, मर्थी, मझौली, मोती, बटुवा सागरों का निर्माण कराकर सिंचाई की व्यवस्था कराई गई।अंग्रेज ज़मींदार इस चावल को ब्रिटेन भेजते थे। उन्होंने कालानमक की गुणवत्ता को देखते हुये इसकी खेती की। उन्होंने बासमती की खेती नहीं की।
कालानमक चावल में अन्य चावलों की अपेक्षा चार गुना आयरन, तीन गुना जिंक और दो गुना प्रोटीन पाया जाता है, ख़ुशबू तो लाजवाब है। काला नमक के पौधों से भी ख़ुशबू आती है। दुनिया का यही एक चावल है जिसमें विटामिन A पाया जाता है।
मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी ने ज़िला सिद्धार्थनगर के लिए इसे “ एक ज़िला , एक उत्पाद “ में स्थान दिया, जिससे इसकी खेती का रक़बा कई गुना बढ़ गया है। सिद्धार्थनगर में Common Facility Centre का निर्माण हुवा है, जहां पारंपरिक ढंग से चावल निकाल कर 24 डिग्री तापमान पर रखा जाता है , जिससे इसकी ख़ुशबू प्रभावित नहीं होती है। इसे विदेशों को निर्यात किया जा रहा है।