बिडरु मामा….। जौनसारी संगीत का वह स्वर्णिम दौर।
(मनोज इष्टवाल)
यह भी अजब इत्तेफ़ाक है आज विश्व संगीत दिवस है और साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भी…। संगीत और योग एक दूसरे के पूरक रहे हैं क्योंकि दोनों की ही साधना में ईश्वरीय तत्व शामिल हैं व दोनों ही आपको कालजयी बनाते हैं। अब से क़रीब 15 से 20 बरस पूर्व तक यक़ीन मानिए ऐसे गीतों की सृजना होती रही है जो लोक में अमरत्व पा गए और उसी अमृत की एक बूँद जौनसार के “बिडरु मामा “ पर ऐसी पड़ी कि क्या जौनसार के लोक कलाकार गीतकार नंद लाल भारती व क्या लोकगायक जगत राम वर्मा…दोनों ने ही जौनसारी संगीत में इसे एक नाम ही दे डाला। अंतर्राष्ट्रीय संगीत दिवस पर यह लेख लोकगायक स्व. जगत राम वर्मा जी को समर्पित।
जौनसार के लोकगायन का यह भी स्वर्णिम दौर था। बिडरु मामा कैसेट में सुप्रसिद्ध लोकगायक स्व. जगतराम वर्मा, मीना राणा व सुमन वर्मा ने बेहतरीन आवाज़ दी। सभी गीतों के कॉपीराइट आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं जिन्हें मै जौनसारी फ़ीचर फ़िल्म के लिए सम्भाले हुआ हूँ।
इस ऑड़ियो में लोकगायक जगत राम वर्मा को मैंने उनके ऊँचे सुर से एक डेढ़ काला नीचे गवाया। उन्हें तब यह लग रहा था कि यह तो मेरे लोकगायन की तौहीन है या फिर कहीं जानबूझकर मुझ पर प्रयोग तो नहीं हो रहे हैं। लेकिन जिस सुर में उन्होंने बिडरु मामा गाया व दर्शिनिए …गाया, उसकी सुप्रसिद्ध संगीतकार राजेंद्र प्रसन्ना ने जमकर तारीफ़ की। जगत राम वर्मा फिर मुझे आलिंघन करते बोले- आप गायक न होकर भी संगीत की बहुत गहरी पकड़ रखते हैं। आपको नमस्कार इष्टवाल जी…।
यह वह दौर था जब पहली बार जगतराम वर्मा ने अपनी वर्षों पुरानी टीम “जौनसार बावर लोककला मंच “ से बाहर निकलकर रिकार्डिंग करवाई। लोककलाकार नंदलाल भारती को शायद उसकी भनक नहीं थी। इस बात की जानकारी मुझे तब लगी जब हम दिल्ली रिकॉर्डिंग के लिए जा रहे थे। रास्ते में सुप्रसिद्ध रिदमिस्ट ढोलक वादक ज्ञान चंद ने मुझे कहा -आप ज़रा झूठ-मूठ में फ़ोन पर बात करो ताकि ये लगे आप नंदलाल भारती से बात कर रहे हैं। मैंने जब ऐसा ही किया तो जगतराम वर्मा जी ने इशारों-इशारों में बोला कि ये मत बताना कि मै साथ हूँ। यह शायद उनकी तरफ़ से एक सम्मान नंद लाल भारती जी के लिए था क्योंकि नंद लाल भारती ही उन जैसे हीरे को तरासकर मंच पर लाये थे।
ख़ैर इस चुहल के बाद सब खिलखिलाकर हंस पड़े। इस ऑडीओ को निकालने में “ए” ग्रेड ठेकेदार मलेथा गांव (हाल निवास बद्रीपुर) टीकम सिंह नेगी जी का बड़ा सहयोग रहा। टीकम सिंह नेगी जी बोले- अरे जगतराम तुम भारती से इतना डरते क्यों हो। तब जगतराम जी ने बेहद ख़ूबसूरत बात कही। बात डरने की नहीं पारिवारिक रिश्तों की है। मुझे तब पता चला था कि भारती जी व जगतराम ज़ी उन दिनो एक दूसरे से नाराज़ चल रहे थे।
बहरहाल जगतराम वर्मा व टीकम सिंह नेगी का एक ही अनुरोध था। शायद ज़िद थी कि यह कैसेट टी सीरीज़ से निकले। सुप्रसिद्ध संगीतकार राजेंद्र प्रसन्ना मुझे 1992 से जानते थे जब उन्होंने “शकुंतला नृत्य नाटिका” नामक प्रोजेक्ट में सुप्रसिद्ध संगीतकार बीरेन्द्र नेगी के संगीत में अपनी बांसुरी का सुर दिया था। मैने राजेंद्र प्रसन्ना जी से कहा कि इसे मुझे हर हाल में टी सीरीज़ से निकालना है आप रास्ता बताओ। वे मुस्कुराए व बोले- इष्टवाल जी आप एक निष्ठावान व ईमानदार व्यक्ति हो, शायद ही संगीत के उन पहलुओं की ख़ूबसूरती जानते हो जो गीत में पहाड़ की आबोहवा के साथ घुला-मिला है, फिर भला मैं आपको निराश कैसे कर सकता हूँ।
राजेंद्र प्रसन्ना जी ने फ़ौरन फ़ोन उठाया व टी सीरीज़ के मालिक दर्शन कुमार जी से बात की। मुझे कहा फ़ौरन नॉएडा पहुँचो। मैं दर्शन जी से मिला। चाय कॉफ़ी हुई।फिर विक्रम रावत जी (जो लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का सम्पूर्ण प्रबंधन देखते हैं) को बुलवाया। कैसेट सुनवाया और बोला बताओ क्या करना चाहिए। मुँहफट विक्रम रावत जी बोल पड़े- जौनसारी गीत हैं। मार्केट छोटी है..इसलिए बड़ी बिक्री तो हो नहीं पाएगी। दर्शन जी ने कुछ देर सोचा व फिर मुझसे बोले- अब राजेंद्र प्रसन्ना जी ने भेजा है तो निराश नहीं करूँगा। छोटे लाभ के लिए बड़ी सिफ़ारिश को नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। टी-सीरीज़ से कैसेट क्या निकला बाज़ार में बवाल मच गया। बिडरु मामा को लोककलाकार भारती जी के सुप्रसिद्ध गीत बिडरु ना मानिए मेरे जाणा चूड़पुरा..का तोड़ माना जाने लगा।
टी सीरीज़ जौनसार की लोकगायिका सुमन वर्मा जी के लिए भी नई उपलब्धि थी। सच तो ये है कि यह दौर तमसा -यमुना घाटी की कैसेट मार्केट में इष्टवाल सीरीज़ का था , जहां इष्टवाल सीरीज़ का नया ऑडियो नंबर हाथों-हाथ बिक जाता था व सुमन वर्मा उस समय इष्टवाल सीरीज़ कम्पनी की नयी खोज थी। भले ही सुमन वर्मा पूर्व में नंदलाल भारतीजी की टीम में स्टेज वग़ैरह में गाया करती थी। बिडरु मामा के सारे गीत वैसे ही लोकप्रिय हुए जैसे गढ़वाल में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीत होते रहे हैं। लोकगायिका मीना राणा जी ने इस अल्बम में एक कर्ण प्रिय गीत गाया है। अब आप कहेंगे कि फिर मीना जी की फ़ोटो साझा क्यों नहीं की? दरअसल मीना राणा उस समय केसुअल ड्रेस अप थी व उन्होंने मुझसे कहा- इष्टवाल भाई साहब, प्लीज़ इस वक्त मेरा फ़ोटो लेना ठीक नहीं रहेगा क्योंकि मैं प्रॉपर ड्रेसअप नहीं हूँ। एक स्टूडियो में डबिंग चल रही थी तो वहाँ ऐसे ही चली गई । अचानक प्रसन्ना जी का फ़ोन आया कि फ़ौरन चली आओ तो मैं ऐसे ही आ गई, फिर ऐसे कपड़ों में फ़ोटो खींचना ठीक नहीं रहेगा।
मीना राणा जी के ये शब्द बेहद सरलता से कहे हुए थे लेकिन उसे इत्तेफ़ाक ही समझिए कि इस से पहले वह देहरादून स्थित पटेल नगर के स्टूडियो में मेरे प्रोजेक्ट का मूर्धन्य साहित्यकार स्व. भजन सिंह “सिंह” जी का लिखा गीत अधूरा छोड़कर इसलिए चली गई थी क्योंकि उन्हें किसी कार्यक्रम में जाना था, व यह कह गई थी कि वह आकर इसे गाएँगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। तब से यह हुआ कि मैं किसी प्रोजेक्ट में मीना राणा जी को दुबारा न गवा पाया। ख़ैर यह अतीत के खेल व बाज़ार के उतार चढ़ाव होते ही हैं।
बिडरू मामा ऑडियो कैसेट के इन ख़ूबसूरत गीतों को आम जन के सामने लाने का श्रेय मैं टीकम सिंह नेगी जी को देता हूँ। ज्ञात हो कि टीकम सिंह नेगी के छोटे पुत्र युद्धवीर सिंह नेगी अब इसी लाइन में हैं व उनका एक प्रोडक्शन हाउस है। शायद यह लोकगायक स्व. जगतराम वर्मा की उन दुआओं का ही असर है कि आज युद्धवीर ने इसी क्षेत्र में बडा नाम बना लिया है। यह कैसेट जहां सुपरहिट साबित हुआ वहीं इस कैसेट के बाद मैंने निजी ज़िंदगी में कई उतार चढ़ाव झेले।चक्रधर फिल्म्स कंपनी जो मेरे पिता जी के नाम पर थी की इष्टवाल सीरीज़ का बाज़ार में फँसा लाखों रुपया वापस नहीं मिला। जिसके कारण सिर्फ़ मुझे ही नहीं बल्कि मेरे बिजनेश पार्टनर अंतराम नेगी जी को भी बड़ा नुक़सान उठाना पडा। और अंत में मुझे 2007-08 में अपनी कम्पनी पर ताला लगाना पड़ा।