Saturday, July 27, 2024
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आख़िर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी को होना ही पड़ा कठघरे में खड़ा! देने पड़े लोक से जुड़े कई कडुवे सवालों के जवाब।

आख़िर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी को होना ही पड़ा कठघरे में खड़ा! देने पड़े लोक से जुड़े कई कडुवे सवालों के जवाब।
◆ सुनने में आया कि आपकी अंधी बहिन आपके लिए गीत लिखती हैं?
◆ आप पर यह भी आरोप है कि आप किसी औरों के लिखे गीत नहीं गाते?
◆ आप पर यह भी आरोप है कि आपके पिता अस्पताल में भर्ती रहे और आप अस्पताल के बाहर गीत लिखते रहे।

(मनोज इष्टवाल)

यह सचमुच बेहद सुखद लगा जब उत्तराखंड दूरदर्शन ने पहली बार ऐसी प्रयोगधर्मिता को लेकर लीक से हटकर काम करने की ठानी। यह इसलिए भी सुखद लगा कि एक ऐसे कार्यक्रम को उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के लिए समर्पित करने के लिए तैयार करने की मुहिम चलाई जहां लोक कलाकारों द्वारा समाज को दिए गए अपने क्रियाकलापों का लेखा-जोखा लोकसमाज के बीच ही टीवी पर जवाब देने होंगे।

दूरदर्शन उत्तराखंड की निदेशक तरनजीत कौर की अगुवाई में इस कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम अधिशासी नरेंद्र सिंह रावत की रेख देख में शुरू किया जा रहा है। उत्तराखंड दूरदर्शन के “ हमारि माटी-पाणी” कार्यक्रम को विस्तार देते हुए अब इस कार्यक्रम में “माटी-पाणी की अदालत” के नाम से भी कार्यक्रम शुरू किया है। दूरदर्शन की निदेशक तरनजीत कौर बताती हैं कि इस विशेष कार्यक्रम के प्रस्तुतीकरण के लिए हमने यह कोशिश की है कि हम उत्तराखंड के लोकसमाज के लोककलाकारों की अभिव्यक्ति को व्यापक फलक देकर उनके काम को समाज के सम्मुख लाएँ जो उन्होंने सम्पूर्ण लोक संस्कृति अपने गीतों व अन्य माध्यमों से दिया है। लोक समाज का भी दायित्व बनता है कि वह लोकसंस्कृति पर लोककलाकारों द्वारा किए गए उनके अप्रितम कार्यों पर सवाल जबाब कर सकें। अर्थात् यह माटी पाणी की एक अदालत है जिसमें लोक कलाकार कठघरे में खड़ा होकर सामने खड़े अधिवक्ता के प्रश्नों के जवाब के साथ अदालत में शिरकत कर रहे लोक के प्रतिनिधियो के सवालों के जवाब दे सके।

वहीं “हमारि माटी पाणी की अदालत” का सम्पूर्ण ज़िम्मा संभाल रहे दूरदर्शन के कार्यक्रम अधिकारी नरेंद्र सिंह रावत ने जानकारी देते हुए बताया कि यह अपने आप में एक अलग तरह का कंसेप्ट तैयार किया गया है। यहाँ हम लोककलाकारों को माटी पाणी की अदालत के कठघरे में खड़ा करके उनके द्वारा किए गए कार्यों के संदर्भों के साथ प्रश्न भी पूछेंगे ताकि लोक समाज की वह जिज्ञासा शांत हो सके जो उनके मन में होती है, जैसे हमने इस कार्यक्रम के पहले एपिसोड में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी को इस अदालत के कठघरे में खड़ा कर उनकी गीत जात्रा के माध्यम से समाज को छूते विभिन्न अछूते प्रसंगों को उठाया है। हमारी टेक्निकल टीम इसे चार कैमरों से शूट कर रही है। मुझे लगता है यह अदालत आम जन के बीच बेहद लोकप्रिय होगी।

लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि सचमुच क़ठघरे के पीछे खड़े होने के बाद आए कई तरह के प्रश्नों को सुनकर मैं भी अचंभित हो गया जिन्होंने मुझे झकझोर कर रख दिया लेकिन तसल्ली इस बात की है कि मेरा मन शांत हुआ, यह जानकर कि जिस तरह के प्रश्न समाज के मेरे बारे में थे उनका जवाब सुनकर लोकसमाज की जिजीविषा भी शांत होगी और मैं भी…,! मुझे लगता है यह एक बेहतरीन मंच है जिस पर हम क़ठघरे के घेरे में रहकर सभी सवाल जवाब कर सकते हैं व उन गूढ़ प्रश्नों से अपनी मन की तसल्ली भी कर सकते हैं।

माटी पाणी की लोकअदालत में काला कोट पहने अधिवक्ता की भूमिका निभा रहे गणेश खुगशाल गणी ने कहा कि यह पहला मौक़ा है जब मेरे उन प्रश्नों का जबाब मुझे भी मिल गया जो मेरै और मेरे जैसे अनेको लोगों के मनमस्तिष्क में तैरते रहे होंगें। ऐसे तल्ख़ सवाल कि – सुनने में आया कि आपकी एक अंधी बहन आपके लिए गीत लिखती हैं? लोक समाज में लोगों की जुबान में रहे हैं।
• आप पर यह भी आरोप है कि आप औरों लोगों के लिखे गीत नहीं गाते ?
• आप पर यह भी आरोप है कि आपके पिता अस्पताल में भर्ती रहे और आप अस्पताल के बाहर गीत लिखते रहे? ऐसे बहुत से प्रश्नों के जबाब आपको माटी पाणी की अदालत में सुनने को मिल जाएँगे। यह शुरुआत है व इसमें प्रदेश भर के लोककलाकार हर माह आकर शिरकत कर सकते हैं व ऐसे ही प्रश्नों का जबाब भी समाज को देंगे जो उनके द्वारा लोक संस्कृति व लोकसमाज के लिए कार्यों को लेकर समाज के मन मस्तिष्क पर विचारणीय हो।

बहरहाल माटी पाणी की अदालत नामक दूरदर्शन का एक माह के अंदर ऑनएयर होकर दूरदर्शन में प्रसारित होने वाले इस कंसेप्ट का सभी को बेसब्री से इंतज़ार है।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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