Wednesday, February 5, 2025
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शव यात्रा में क्यों फैंकी जाती है देवभूमि में धान की छुर्की ..!

शव यात्रा में क्यों फैंकी जाती है देवभूमि में धान की छुर्की..!

(मनोज इष्टवाल)

शव यात्रा के दौरान जहाँ गरुड़ पुराण के अनुसार न सही लेकिन मैदानी भू-भागों में फूल, बताशा, मखानापैंसे फैंकने का रिवाज है वहीं देवभूमि में इसके उलट मुट्ठी भर धान रास्ते पर विभिन्न स्थानों में रखा जाता है। मैदानों में शव यात्रा जिधऱ से भी निकलती है उधर “राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है” के स्वर सुनाई देते हैं। जबकि देवभूमि के पहाड़ी जनपदों में यह शब्द नहीं सुनाई देता। आखिर ऐसा क्यों?

आइये इस सब पर उत्तराखंड के गढ़वाल-कुमाऊँ के पहाड़ी जनपदों की बात करते हैं। गढ़वाल कुमाऊँ में मरते हुए व्यक्ति को बोला जाता है कि वह मरते हुए ‘राम.. राम’ का जाप करे। चांदी के चम्मच से या आम चम्मच से उस व्यक्ति को गंगाजल पिलाया जाता है जबकि चिता दहन के बाद वापस लौट रहे ‘मडोई‘ (शव दहन के लिए गए यात्री/लोग) घर पहुंचकर गौमूत्र का सेवन करते हैं।

अब अगर हम द्वापर युग की बात करें व पांडवों के वनवास का जिक्र करें तो यक्ष – युधिष्ठिर संवाद के प्रसंग भी कहीं न कहीं इस ओर हमें इंगित करते नजर आते हैं। यक्ष के प्रश्न में युधिष्ठर का जबाब कुछ यूँ बनता दिखाई देता है :-

अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम् ।

शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्।।१६।।

दु‌रियाल पर आशक्त।

बदरीनाथ से कुछ पहिले एक चट्टी में आज भी वह दुरियाल पुरुष जीवित और स्वस्थ है, जिसकी सुन्दर, आकर्षक, हंसमुख मुखाकृति और स्वस्थ  शरीर पर मुग्ध होकर एक “प्रेतात्मा” नारी उसके साथ तीन वर्ष तक सह‌ास करती रही। उस दुरियाल की दुकान चट्टी के एक कोने पर है। एक दिन जब वह अपनी दुकान के लिए जोशीमठ से सामग्री लेकर लौटा तो रात हो चुकी थी।

सामग्री को दूकान में रखकर जब वह उपरली मंजिल में गया तो उसने देखा, शयनकक्ष में लालटेन जल रही है। भूमि पर उसके लिए भोजन सामग्री रखी है। और उसके बिस्तर पर सुन्दर वस्त्र पहने एक युवती बैठी है। पहले तो उस अपरिचित नारी को देखकर वह सहम गया लेकिन जब उस नारी ने उसके गालों पर हाथ फेरते हुए कहा – घबराओ मत। तो उसके मन में भी नारी के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो गया। उसने सोचा वह पास- पडोस की कोई नारी होगी जो काम वासना तृप्ति के लिए उसके पास आई होगी।

प्रेत नारी रात्रि खुलने से पह‌ले ही उस घर से चली गई और जाते समय वह दुरियाल से किसी से रहस्य प्रकट करने का निषेध कर गई । तब से वह प्रति रात्रि को अंधेरी होने पर आने और रात्रि खुल जाने पर जाने लगी। दुरियाल दु‌कान पर अकेला ही रहता था । वह दिन में अपने गाँव एक- दो घंटे के लिए जाता था और तुरंत लौट था।

जबसे उसका प्रेत नारी से सम्बन्ध हुआ उसको सम्पत्ति में वेग से वृद्धि हुई। तीन वर्ष तक दोनों पति-पत्नी के समान रहे। एक दिन दुरियाल ने देखा कि वह नारी द्वार पर ताला लगा रहने पर भी भीतर-बाहर जा सकती है, तथा सीढियों से उतरते हो ओझल हो जाती है। उसने एक साधू से यह रहस्य प्रकट कर दिया। तब से प्रेतात्मा नारी ने वहाँ आना छोड़ दिया।

प्रेतात्मा नारियों द्वारा सुन्दर स्वस्थ युवकों को मुग्ध करने की कई घटनाएं अब भी होती रहती है। क्या सरोवरों के तटो पर, एवं ऊंची पयारों पर कुछ ऐसे स्थल बताए जाते हैं,  जहां सुन्दर पर युवकों के पहुँचने पर  प्रेतात्मा नारियां उन्हें बेहोश कर देती हैं।

अपनी ही पत्नी पर मुग्ध पुरुष प्रेतात्मा

पुरुषों में से कई ऐसी प्रेतात्मा भी हैं जो अपनी ही पत्नी पर मुग्ध पाए गए है। हमारी पड़ोस में एक नवयुवक अत्यधिक नारी- प्रसंग के कारण क्षय रोग से पीडित हो गया। चिकित्सकों के परामर्ष से उसके परिवार वालों ने उसकी पत्नी को उसके शयन कक्ष में जाने से रोक दिया। लेकिन वे वहां  उसकी मृत्यु के पश्चात उसकी प्रेतात्मा के प्रवेश की रोकने में असमर्थ रहे।

युवक की मृत्यु के एक मास पश्चात् से उसकी विधवा पत्नी उसी के शयनकक्ष में सोने लगी। रात्रि में उसे ऐसा अनुभव हुआ कि उसका दिवंगत पति उसकी शय्या उसका आलिंगन कर रहा है।

प्रातः उसने यह बात अपनी जेठानी से कही जिसे उसकी जेठानी ने उसका भ्रम मात्र कहकर बात को टाल दिया। घटना की पुनरावृ‌त्ति प्रत्येक रात्रि में होती रही। दो मास पश्चात् एक प्रातः वह अपनी शय्या पर मृत परि गई। उसकी नीवी विमुक्त थी।  और और उसके साथ प्रेतात्मा द्वारा सहवास किए जाने के अन्य चिन्ह भी थे।

कांगड़ा के थुरल गाँव की घटना 

डॉ डबराल अपनी पांडूलिपि में उल्लेख करते हैं कि कांगड़ा जिले के थुरल गांव में एक कराड (बनिया) की पहिली पत्नी के मर जाने पर उसने गुलाबों नामक एक युवती से विवाह कर लिया। गुलाबो गुलाब की पंखुड़ियों के समान सुन्दर थी। किन्तु बिवाह किए दो वर्ष भी नहीं हुए थे, कि कराड चल बसा । मृत्यु के एक मास पश्चात् से वह प्रति रात्रि को गुलाबो की शय्या पर आने लगा और उससे सहबास करने लगा। ऐसा लगभग तीन वर्ष तक होता रहा। प्रेतात्मा से उसका पिंड छुड़ाने के लिए समय-समय पर कुछ व्यक्तियों को बुलाया गया। पर उन्हें सफलता न मिली।

गुलाबों ने मुझे बतलाया कि रात्रि के दूसरे पहर में, जब सब सो जाते हैं, वह मेरी शय्या पर आता है। उसके आने से मुझे बेहोशी छा जाती है। वह कई बार मुझसे सहवास करता है। रात्रि के चौथे पहर  जब वह जाता है तब मुझे बहुत पसीना आता है और उससे मुझे होश आने लगता है। इन तीन बर्षों में गुलाबो बहुत दुर्बल हो गई थी। फिर भी उसको बताये गए ऊपयों का उसने तत्परता से प्रयोग किया जिसके बाद प्रेतात्मा ने उसके पास आना बन्द कर दिया।

डॉ शिब प्रसाद डबराल “चारण” ने जानकारी देते हुए बताया कि मृत्यु के समय कई व्यक्ति, अपनी पत्नी या पति को शीघ्र अपने साथ ले जाने की घोषणा कर जाते हैं। हमारे गांव में एक बिष्ट की पत्नी जिसकी आय लगभग 56 बर्ष थी, जब मरने लगी तो उसने अपने व्यथित पति से कहा – थोडा धीरज रखो। मैं एक बर्ष के भीतर तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगी। बिष्ट-दम्पति के भीतर ही तुम्हें की कोई सन्तान न थी।

नौ मास पश्चात् रात्रि के प्रथम पहर में बिष्ट की पत्नी प्रकट हुई। विष्ट उस समय भोजन बनाने का उपक्रम क़र रहा था। प्रेतात्मा ने बिष्ट को हल्का सा झटका दिया जिसका अगले दिन विष्ट ने मुझसे तथा अन्य व्यक्तियों से घटना का जिक्र किया, रात्रि में उसी दिन बिष्ट ने प्राण त्याग दिए।

गगरेट की घटना।

डॉ डबराल के पास यूँ तो मृत आत्माओं से स्वयं संवाद करने व उन्हें साधने संबंधी कई घटनाओं के लिखित दस्तावेज पांडूलिपि के रूप में उपलब्ध हैं लेकिन कुछ घटनाएं जो मेरे द्वारा उनके 13/07/1982 को लिखी गई पांडूलिपियों से 16 जून 1889 को टीपी गई उनके जिक्र में गगरेट नामक स्थान का जिक्र भी मिलता है। उस दिन इसलिए मुझे इन घटनाओ को संकलित करने का अवसर मिल गया क्योंकि तब मेरे साथ कोटद्वार से डॉ पुष्कर मोहन नैथानी साथ गए थे व वे उनसे तंत्र शिक्षा का ज्ञान प्राप्त कर रहे थे।

डॉ गगरेट की घटना के बारे में जिक्र करते हैं कि गगरेट कस्बे के निकट का एक युवक जिसे सेना में सूबेदार के पद पर नियुक्त हुए केवल एक दिन हुआ था, जालंधर छावनी के पास कार के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से मर गया। उसी दिन गांव में उसकी पत्नी ने स्पष्ट रूप से देखा कि उसका पति घोड़े पर सवार होकर उसके सामने खड़ा था, उसके साथ एक दूसरा घोड़ा भी है जूस पर जीन काठी सजी है, लेकिन उस पर कोई सवार नहीं है।उसने अपने कानों से  सुना। उसका पति कह रहा है- तुरन्त कपड़े पहन कर  इस घोड़े पर चढ़ो और मेरे साथ चलो।

वह दौड़‌कर भीतर गई और जब नए वस्त्र पहन कर बाहर आई तो वहां न तो उसके पति थे और न घोड़े। उसने पड़ोसियों से घटना सुना कर पूछताछ कि क्या उन्होंने उसके पति को कहीं जाते देखा है। किसी ने उसे देखा न था।गाँव में इधर उधर देखने के पश्चात् जब पह घर में आकर  अपने नए वस्त्र उतारने लगी तो अचानक हो उसकी मृत्यु हो गई।

विश्वासघात

डॉ डबराल मृत आत्माओं के ऐसे संशयों पर अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए बताते हैं कि जीवित मानवों के समान प्रेतात्मा भी चाहते हैं। कि उनकी प्रेमिका या उनका प्रेमी उन्हें छोड़कर किसी अन्य को प्रेम का पात्र ने बनाएँ। मेरे एक मित्र को उनकी दिवंगत पत्नी की प्रेतात्मा यदा-कदा तब तक दिखाई देता रही , जब तक उन्होने दूसरा विवाह नहीं किया।

मेरे परिचित एक युवा फोरेस्ट गार्ड की वन में आग बुझाते समय जल कर मृत्यु हो गई। मृत्यु के कुछ दिनों पश्चात से में उनकी प्रेतात्मा अपनी पत्नी की शय्या पर आने लगी। प्रेतात्मा के आगमन से विधवा पत्नी शिहर उठती थी। पर प्रेतात्मा को अपना आलिंगन करने रोक नहीं सकती थी। जब निरंतर कुछ रात्रियों में इसी प्रकार प्रेतात्मा का आगमन होता रहा तो विधवा ने अपनी सास से यह बात कही।

जिस कोठरी में विधवा सोती थी, उसके एक कोने में, एक रात्रि को उसका देवर छिप गया, और विधता के शय्या पर सो जाने के पश्चात् उसके साथ लेट गया। तब से प्रेतात्मा नहीं आया।

प्रेतात्मा भी जीवित मानवों के समान नाना प्रकार की उनके दुर्बलताओं के वशीभूत रहते हैं। केवल सिदात्मा ही वशीभूत नहीं होते।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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