पिथौरागढ़ उत्तराखंड (हि. डिस्कवर )
यूँही उत्तराखंड को देवभूमि नहीं कहा जाता! इसके पीछे जाने कितने और कारण भी होंगे लेकिन यह कारण यकीनन बेहद अद्भुत है। जनपद पिथौरागढ़ का एक गाँव है चमाली…। जहाँ पारस, सानिया व संजना तीनों भाई बहन पढ़ते हैं। संजना दिव्यांग है व दसवीं की छात्रा है, जिसे डोली अर्थात पिनस में बिठाकर पारस व सानिया स्कूल ले जाया करते हैं।
यूँ तो चमाली गाँव में इंटर कॉलेज है, जहाँ ये तीनों भाई बहन पढ़ते हैं। लेकिन संजना अब 10वीँ की बोर्ड दे रही थी, तब पारस कोहली व सानिया अपनी बहन को बोर्ड परीक्षा दिलाने बहन को डोली में ले जाते भाई ने दिल जीत लिया।
यह देखकर सब अचंभित थे कि भला इस घोर कलयुग में ऐसे कैसे संभव है कि जब पारस व सानिया स्वयं भी बारहवीँ कक्षा की बोर्ड परीक्षा दे रहे हैं तब वह कैसे अपनी अपाहिज बहन को डोली में बिठाकर पैदल चलकर गाँव से 14 किमी. दूर परीक्षा केंद्र परीक्षा दिलाने लाये होंगे।
ज्ञात हो कि ग्राम चमाली निवासी पारस कोहली, उनकी बहनें सानिया और संजना इंटर कालेज चमाली में पढ़ते हैं पारस और सानिया क्लास 12वीं जबकि संजना 10वीं की बोर्ड परीक्षा दे रही हैं। दिव्यांग संजना चलने-फिरने में असमर्थ है। परीक्षा केंद्र उनके गांव से 14 किमी दूर जीआईसी शैलकुमारी में बनाया गया है, परीक्षा के लिए संजना, पारस और सानिया ने लोधियागैर में कमरा लिया है।
संजना को लोधियागैर से करीब आधा किलोमीटर दूर परीक्षा केंद्र ले जाने के लिए पारस, सानिया और उनके रिश्तेदार आकाश डोली का सहारा लेते हैं। भाई बहन का रिश्ता अटूट होता है बहन चल नहीं सकती तो उसके भाई इस तरीके से उसको स्कूल लाते हैं।
सोशल साइट पर यह पोस्ट राजकीय इंटर कॉलेज शैलकुमारी पिथौरागढ़ द्वारा शेयर की गई थी। अक्सर संजना परीक्षा केंद्र में आते जाते समय पारस व आकाश के कंधे में डोली में बैठकर आती है। संजना के चेहरे की मुस्कराहट में जहाँ उसका सेल्फ कॉन्फिडेंस साफ झलकता दिखता है, वहीं यह अभिमान भी कि उसके भाई के कंधे इतने सबल हैं जो अपनी बहन को शिक्षा दिलाने के लिए इतनी मशक्कत करते हैं। सचमुच एक सलूट तो इन बच्चों के लिए बनता हैं और बिग सलूट इनके माँ बाप के लिए जिन्होंने अपने बच्चों में ऐसे संस्कार भरे हैं।