देहरादून (हि. डिस्कवर )
विश्व संवाद केंद्र द्वारा उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पहला सोशल मीडिया कॉन्क्लेव आयोजित किया गया जिसमें सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफोर्म पर संवाद व परिचर्चा के दौरान देश की लोक संस्कृति, सांस्कृतिक एवं सामाजिक मुद्दों के साथ-साथ सोशल मीडिया की लोकप्रियता एवं दबाब पर विभिन्न वक्ताओं ने अपने विचार मंच से साझा किये! इस दौरान डीजीपी अशोक कुमार ने जहाँ मीडिया के हर प्लेटफॉर्म को बेहद संजीदगी के साथ उठाया वहीँ प्रो. संगीत रागी ने इसके वैश्विक, सामजिक व सांस्कृतिक बिम्बों पर प्रकाश डाला है।
आई आर डी टी ऑडियोटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलित कर की गई।
इस दौरान वक्ता के रूप में मंच से अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक मनोज इष्टवाल ने कहा कि वर्तमान युग में अब सोशल मीडिया की दखल को किसी भी रूप में रोका जाना सम्भव नहीं है क्योंकि आंकड़ों के हिसाब से अगर 2020 तक के आंकड़े देखें जाएँ तो सोशल मीडिया में विश्व भर के 58.4 अर्थात लगभग 462 करोड़ लोग जुड़े थे लेकिन मात्र दो बर्ष बाद इसमें 42 करोड़ 80 लाख लोग और जुड़े. सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफोर्म को संचालित करने वाले वर्तमान में 290 करोड़ लोग हैं। उन्होंने सोशल मीडिया में बढती फेक न्यूज़ की बाढ़ पर जहाँ एक ओर चिंता जताई वहीँ दूसरी ओर सोशल मीडिया की शक्ति के रूप में हाल के दिनों में उत्तराखंड के पौड़ी गढवाल के पूर्व विधायक यशपाल बेनाम की बेटी की मुस्लिम धर्म में हो रही शादी से उभरे जनविरोध का हवाला देते हुए कहा कि यह सोशल मीडिया की ही शक्ति है कि पूर्व विधायक को अपनी बेटी की शादी रद्द करनी पड़ी। उन्होंने लोक समाज व लोक संस्कृति के संवर्धन व संरक्षण पर कहा कि जब तक हम अपनी भावी पीढ़ी में अपने लोक व लोक के सांस्कृतिक मूल्यों की वकालत नहीं करते तब तक लगातार इसका क्षरण होता रहेगा. इसके संरक्षण व संवर्धन के प्रचार प्रसार में सोशल मीडिया सबसे बड़ी भूमिका निभा सकता है।
शिक्षक व प्रकाशक डॉ नवीन जिंदल ने कहा है कि वर्तमान में सोशल मीडिया हि समाज के दर्पण का जरिया बन गया है, हमें बिना रोक टोक के अपनी बातें अगर जन साधारण तक पहुंचानी हैं तो यह प्लेटफ़ॉर्म हम सबके लिए महत्वपूर्ण है। बिशेषकर युवा पीढ़ी के रुझान को देखते हुए यह भी डर है कि कहीं यह समाज को दिशाहीन तो नहीं करेगा इसलिए हमें बेहद नपे तुले अंदाज में अपने वक्तव्य को सोशल मीडिया को जरिया बनाकर रखना होगा। यूट्यूबर विजय आर्यन ने अपनी बातें साझा करते हुए अपने अनुभव को एक यूट्यूबर के रूप में ही उदृत करते हुए कहा है कि वह दो शोर्ट फिल्मों के जरिये युवा पीढ़ी की सोशल मीडिया में वर्तमान चहलकदमी पर यह समझने व समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि हम जो भी परोसेंगे समाज उसे उसी रूप में अंगीकार करना शुरू कर देगा इसलिए हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि हम जो भी कंटेंट यूट्यूबर के रूप में सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर लायें व समाज के लिए ज्ञानप्रद व स्वस्थ मनोरंजक हो। ब्लॉगर दीपक कंडवाल ने कहा कि हमें इस बात का ख्याल रखना होगा कि हम सोशल साईट पर जो बाँट रहे हैं उसके प्रतिफल में हमें क्या प्राप्त हो रहा है क्योंकि पैंसा कमाना ही सब कुछ नहीं है. हमें इसके नकारात्मक पक्ष को दरकिनार कर सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार अनुपम त्रिवेदी ने सोशल मीडिया कि शक्ति के कई महत्वपूर्ण बिषयों पर चर्चा करते हुए कहा कि यह सोशल मीडिया की ही पॉवर है कि वर्तमान में टीवी चैनल्स को वह सब उठाना पड़ता है जो आवश्यक नहीं है लेकिन समाज उसे आवश्यक बना देता है क्योंकि सोशल मीडिया उसे ट्रोल कर ज्यादा महत्वपूर्ण बना देता है! उन्होंने कहा कि यह सोशल मीडिया की ही दें है कि उत्तराखंड के कई लोकपर्व जो क्षेत्रीय थे व धीरे धीरे उनका वजूद सीमित हो रहा था उन्हें सोशल मीडिया ने पुनर्जीवन देकर सिर्फ एक समाज के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए मूल्यवान बना दिया है जिनमें इगास के भैलो, हरेला व पिथौरागढ का सातुं-आठों त्यौहार प्रमुख हैं। ये त्यौहार ने सिर्फ सोशल मीडिया में अपना वजूद दर्ज किये बल्कि अपने साथ उत्तराखंड के पकवानों को भी जीवंत कर गए। जे के सीमेंट के अध्यक्ष व मुख्य डिजिटल अधिकारी जितेन्द्र सिंह ने कहा कि हम इस प्लेटफ़ॉर्म पर दूसरे को कम न आंककर साकारात्मकता के साथ अपनी बातें शेयर करें क्योंकि इसके प्रभाव में आकर कई आपकी विचारधारा को पसंद करने वाले उसे ही अपने सामाजिक जीवन में अंगीकार कर आगे बढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि वे प्रधानमन्त्री मोदी जी के किसी विभाग में जुड़े थे व अक्सर विभागीय बैठकों में किसी बिषय वस्तु पर ज्यादात्तर नुक्ताचीनी करना एक सबब सा था लेकिन एक दिन जब स्वयं प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा कि हम नाकारा वस्तुओं को उठाने की जगह उसके साकारात्मक पक्ष को लेकर आगे बढ़ें तो चीजें उलझने की जगह सुलझती चली जायेंगी और हुआ भी यही कि हमने जो भी सकारात्मक पक्ष आम आदमी के मध्य सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित किया आम जन उसे हि अंगीकार करते चले गए और यही सचमुच सोशल मीडिया की ताकत भी है।
डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस अशोक कुमार ने सोशल मीडिया को मीडिया के हर प्लेटफॉर्म से जोड़कर कहा कि शुरूआती दौर में पत्रकारों की संख्या बेहद सीमित थी। प्रिंट मीडिया के चुनिन्दा अखबार व उनमें छपने वाली खबर जिन्हें एक दिन में एक ही बार पढ़ा जाता था, फिर इलेक्ट्रोनिक मीडिया आया तो स्वाभाविक तौर पर पत्रकारों की संख्या बढ़ी लेकिन इसमें खबरों का आधार डेस्क पर बैठे लोग प्रिंट मीडिया की तरह काफी मशक्कत के बाद चुना करते थे लेकिन इसके साथ ही बाजारीकरण भी बढ़ा। सोशल मीडिया आने के बाद जहाँ इसका बिशाल स्वरूप सामने आया वहीँ कई नाकारात्मक पक्ष भी सामने आने लगे जिनमें फेक न्यूज़ का सिलसिला बढ़ा। उन्होंने कहा सोशल मीडिया ने कम से कम उनके विभाग को राहत तो दी कि अब हम अपनी खबरों को कभी भी कहीं भी ट्रोल करने में सक्षम हैं और यही कारण भी है कि उत्तराखंड पुलिस की सोशल मीडिया यूनिट से दो लाख से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। उन्होंने जहाँ इसे सुगम बताया वहीँ यह भी कहा कि इस तीसरी आँख का देखने व सोचने का दायरा भी कई बार हमें परेशान करता है क्योंकि उसके नाकारात्मक पक्ष से मुसीबतें सभी के लिए बढ़ जाती हैं।
पत्रकार अखिलेश डिमरी ने कहा कि अगर हम लोक समाज की संस्कृति के संरक्षण को लेकर सोशल मीडिया की जनसहभागिता की बात करते हैं तब हमें इस बात का ध्यान रखा होगा कि हम कंटेंट क्रेटर के रूप में अपनी कौन सी साकारात्मक भूमिका को निर्वहन करें जिससे हमारे सांस्कृतिक पक्ष को मजबूती के साथ रखा जाय व उसका लाभ समाज को सीधे सीधे मिल सके।
सुप्रसिद्ध लेखिका सोनाली मिश्रा ने सोशल मीडिया को अपनी पुस्तकों से जोड़ते हुए कई उदाहरण दिए जिसमें उन्होंने मातृशक्ति के उस रूप को बिशेष रूप से फोकस किया जिसमें उन्हें सिन्दूर लगाना, मंगलसूत्र पहनना इत्यादि वर्तमान के परिपेक्ष्य में ओल्ड फैशंल्ड लगता है. उन्होंने ऊँ नारियों का जिक्र भी किया जो कहती हैं सिर्फ लड़कियां ही क्यों रक्षा बंधन पर भाई को राखी बांधे, भाई क्यों नहीं बहन के हाथ में राखी बाँध सकता है! उन्होंने कहा कि इन मुद्दों पर अपनी भारतीय परम्पराओं की वकालत करने व संस्कृति के संवर्धन व संरक्षण की बात करने पर वह अक्सर उन लोगों के निशाने पर होती हैं जिनका सपना ही भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास करना है व ऐसे सभी सनातन परम्पराओं के चिह्नों को मिटा देना है जो सनातन परम्पराओं को जीवंत बनाए रखें।
डीयू के राजनैतिक शास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो. संगीत रागी ने सोशल मीडिया के कई स्वरूपों पर चर्चा करते हुए कहा कि जिस तरह एक विश्व व्यापी षड्यंत्र के तहत भारतीय पुरातन संस्कृति एवं सभ्यता को मिटाने के हर संभव प्रयास सोशल मीडिया के माध्यम से किये जा रहे हैं वह किसी से छुपा नहीं है। उन्होंने फिल्म केरल स्टोरी के विरोध व केरल स्टोरी के सच को उजागर करते हुए कहा कि किस तरह माइंडवाश के माध्यम से हमारी बेटियों को लव जिहाद में धकेला जा रहा है यह देखने व समझने वाली बात है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में जिस तरह अवैध मजारें दिखाई दे रही हैं वह हम सबके लिए शुभ संकेत नहीं है क्योकि अगर इस पर शीघ्र कार्यवाही नहीं हुई तो आने वाले समय में इसके कई घातक परिणाम देखने व सुनने को मिल सकते हैं क्योंकि चीन सीमा से लगा यह प्रदेश जहाँ देवभूमि के रूप में जाना जाता है वहीँ अगर ये षड्यंत्रकारी अपने षड्यंत्र में कामयाब हो गए तो आये दिनों में स्थिति विकट हो सकती है। उन्होंने अवैध मजारों के तोड़े जाने की कार्यवाही पर इशारों-इशारों में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह अभियान और तेजी से बढ़ाया जाना चाहिए ताकि ऐसे देशद्रोहियों के हौसले पस्त हों।
कार्यक्रम का संचालन का संचालन हिमांशु अग्रवाल व निखिल शांडिल्य ने किया। तदोपरान्त विश्व संवाद केंद्र द्वारा वक्ताओं को सम्मानित किया गया। इस दौरान पांचजन्य के स्थानीय सम्पादक दिनेश मानसेरा, आरएसएस के सह प्रांत प्रचारक संजय जी, दिनेश उपमन्यु, विक्रम सिंह, प्रीती शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार विश्वजीत नेगी, मोहन भुलानी, पुष्कर नेगी विशाल जिंदल, महेंद्र सिंह, शिवम् अग्रवाल, परितोष सेठ, पराग धकाते इत्यादि मौजूद थे।