Sunday, December 22, 2024
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आखिर इस फोटो से क्यों जानना चाहता है हर एक व्यक्ति इस जगह का नाम?

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग अगस्त 2013)

यह थकान भरी लेकिन बेहद ज्ञानबर्धक यात्रा कही जा सकती है जो पश्चिमी नेपाल के दार्चुला से उक्कू-बाकू, बैतड़ी-पाटन-बझांग जिला होती हुई नेपाल के खूबसूरत शहर पोखड़ा के धमपुस या धामपुस गांव आकर मानों ठहर सी गयी हो। यकीनन इस बार शोध यात्रा के साथ-साथ नेपाल के पश्चिमी हिस्से व मध्य हिस्से के कुछ क्षेत्र की कई विषमतायें देखी। कहीं दूर-दूर तक धूल उड़ाती सड़क, तक कहीं ग्रामीण परिवेश के बाटे (रास्ते) तो कहीं बेहद चौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग सड़कों पर इक्की दुक्की गाड़ियां। मेरे टैक्सी ड्राइवर रवि गुरुंग के साथ बोरियत के कोई चांस नहीं। बेहद हंसमुख गुरुंग हर जिले की बॉउंड्री लाइन समाप्त होते ही वहां की परंपराआओं के बारे में मेरा मार्ग दर्शन कर रहा था।

बझांग के एक सरैय्यां वादक के मुंह से जब “बेडु पाको बारामासा” गीत सुना तो अचंभित रह गया। उसने बताया कि यह गीत तो उनके दादा परदादा के जमाने से चला आ रहा है। मैंने खुशी-खुशी जब उसे 100 आईसी (अर्थात 100 रुपये इंडियन करेंसी) ईनाम में दिया तब वह कभी मुझे तो कभी रुपये को उलट पुलट कर देखने लगा। मैं और गुरुंग आगे बढ़ चले तो गुरुंग से मैंने पूछा- यार रवि ये बताओ वह मुझे इस तरह क्यों देख रहा था। रवि बोला- साहब जिसे सारे दिन भर 2 व पांच एन सी (नेपाली रुपया) मिलाता हो व बमुश्किल वह शाम तक सौ रुपय्या कमाता हो उसके लिए 160 रुपया बड़ी बात है। यहां इंडियन करेंसी 100 रुपय्या का 160 रूपय्या नेपाली करेंसी मिलता है।

बात आई गई हो गयी अब रवि ने बताया कि हम गण्डकी के पार जिला कास्की में पहुंच चुके हैं। यहां से पोखरा 31 किमी बचा है। आप बताओ आपको पोखरा जाना है या फिर मैं आपको एक पोखरा से पहले धमपुस गांव ले चलूं। वहां आपको बहुत सस्ता होटल मिल जाएगा मेरे रिश्तेदार का है। घर जैसा अटमोस्टफीयर भी…!

मैं सोच में पढ़ गया तो रवि को लगा शायद मैं घबरा रहा हूँ। वो बोला –  साब कोई नहीं पोखरा ही चलते हैं। मैं फिर कभी अपने रिश्तेदारों से मिल आऊंगा। मैं समझ गया कि ड्राइवर हमसे पहले हमारी भाव भंगिमा समझ जाता है। मैं मुस्कराया व बोला- कैसी बात करते हो गुरुंग। पोखड़ा में तो होटल लगभग दो ढाई हजार का पड़ेगा। यहां ग्रामीण परिवेश में तो और सस्ता होगा। वह बोला – साब, 400 या 500 में..! सुबह आप अन्नपूर्णा शिखर पर नजर डालोगे तो तबियत खुश हो जाएगी। मैं बोला- फिर तो खामफुस ही चलो। वह खुश नजर आया और हंसता हुआ बोला- खामफुस नहीं सर धमपुस…!

ठट्ठा मजाक चल ही रहा था और शाम धीरे-धीरे ढलान पर थी। बैतड़ी से हम लगभग 300 या सवा 300 किमी चले होंगे। यही कोई 8 -9 घण्टे का सफर. .! मैं बोला गुरुंग जी कुछ लंबे रूट से नहीं आये हम। वह बोला- साब पहुंचने वाले हैं। आपके हिसाब से चलता तो अभी आधे तक ही पहुंचते। क्योंकि बैतड़ी से महेंद्र नगर लगभग 75 किमी पड़ता व महेंद्र नगर से पोखरा लगभग 600 किमी. , ऐसे में हमें लगभग 18 से 20 घण्टे लगते और पेट्रोल भी ज्यादा खर्चा होता। पता है नेपाल में एक ऑल्टो कार हमें 14 से 16 लाख रुपये की पड़ती है। इतना रोड टैक्स देना पड़ता है। मेरे लिए तो फायदा था लेकिन दुबारा क्या आप गुरुंग को याद करते। बहरहाल धमपुस की यात्रा करने के लिए हम कांडे से लगभग दो ढाई घण्टे का ट्रैक करके धमपुस पहुंचते हैं।

धमपुस गाँव नेपाल।

धामपस उत्तरी-मध्य नेपाल के गंडकी अंचल में कास्की जिले में एक गाँव और ग्राम विकास समिति है। 1991 की जनगणना के समय, इसमें 547 व्यक्तिगत परिवारों में 2,753 लोगों की आबादी थी। यह धीरे-धीरे एक पर्यटन स्थल में बदल रहा है। इसमें चोटियों अन्नपूर्णा, धौलागिरी और माछापुछरे के दृश्यों के साथ ऑस्ट्रेलियाई बेस कैंप है। वैसे तो इसके इर्द-गिर्द दक्षिणी अन्नपुर्णा पर्वत शिखर, बाराशिखा, नीलगिरी, हिउँचुली, माच्छापुछरू (फिशटेल माउंटेन) धौलागिरी माउंटेन रेंज व तुकुचे हिमालयी पर्वत शृंखलाऐं पड़ती हैं लेकिन इस गांव की खूबसूरती के पल सुबह सूरज  निकलने से पहले व सूरज छुपने के समय के होते हैं।

हम रवि गुरुंग के साथ उन्हीं के रिश्तेदार राजू गुरुंग के होटल में ठहरे। ठंड की अभी शुरुआत जहां मैदानी भूभाग में कही जा सकती है, यहां ठीकठाक ठंड थी। अलाव जल चुका था व नहाने के लिए पानी गर्म किया जा रहा था। मन बिल्कुल नहीं था कि नहाऊं लेकिन बदन भी इस थकान भरी यात्रा से चूर चूर था। शानदार गर्मागरम चिकन सूप ने थोड़ा रिलेक्स दिया। यहां नेट सुविधा थी। राजू गुरुंग बताते हैं कि दो सोलर लाइट गीजर भी हैं जो सुबह गर्मागरम पानी देते हैं लेकिन अभी पानी हमाम में गर्म हो रहा है। रवि बोला- साब क्या खाएंगे। मैं बोला -जो मन हो लेकिन ध्यान रहे मैं इंडियन ब्राहमण हूँ । अंडा फिश चिकन खा लेता हूँ बाकी अन्य कोई मांस नहीं खाता। वह हंसा समझ गया कि मेरा इशारा किस ओर है।

नेपाल का धामपस गांव (1650 मीटर) पोखरा घाटी से उत्तर में स्थित है जो सुनहरे स्लेटी पत्थरों की छतों और शानदार हिमालयी पहाड़ों के भव्य दृश्य से आपको मंत्रमुग्ध  है। इस गांव में लंबी पैदल यात्रा से पहाड़, प्रकृति, परिदृश्य और विस्मयकारी दृश्यों का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। यह आश्चर्यजनक है कि हर बर्ष  प्रवासी पक्षियों का एक अलग वर्ग धामपस गाँव का दौरा करता है, जिससे यह एक मौसमी पक्षी देखने का स्थान बन जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि ये पक्षी इस गांव व अन्नपूर्णा क्षेत्र को अपना तीर्थ स्थल मानते हैं।

धामपस गांव के बारे में एक और जानकारी मिलती है कि गुरुंग जाति के लोग ही यहां के मूल निवासी हैं। नेपाल के अन्नपूर्णा क्षेत्र में ट्रेकिंग करते समय पर्यटक आमतौर पर धमपुस गांव में एक स्टे पॉइंट के रूप में रुकते हैं। निवासियों की आय का मुख्य स्रोत लोगों की आवाजाही है, या हम कह सकते हैं- पर्यटन। यहाँ के गुरुंग बताते हैं कि अभी हाल के बर्षों से ही यहां ठहरने का पड़ाव ज्यादा प्रभावी हुआ । देखा -देखी में यहां अब लगभग दो दर्जन होटल बन चुके हैं, जहां अन्नपूर्णा ट्रेकिंग पर आए  विश्व समुदाय के लोग अपना वक्त गुजारते हैं और यात्रा की थकान मिटाते हैं।

धामपस लंबी पैदल यात्रा छोटी छुट्टियों और पोखरा में उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो हलचल भरे शहर के पास रात भर लंबी पैदल यात्रा करना चाहते हैं। यह लंबी पैदल यात्रा मार्ग बहुत आदर्श है, क्योंकि अन्नपूर्णा क्षेत्र में, धामपस पहाड़ी नेपाल के सर्वोत्तम दृष्टिकोणों में से एक है। धामपस से, पोखरा के उत्कृष्ट दृश्य को भी देखा जा सकता है और सूरज ढलते ही परिदृश्य और भी बेहतर हो जाता है।

पोखरा से धमपुस गांव पहुंचने के लिए आपको कांडे गांव से एक घंटे की ड्राइव तक ड्राइव करना होता है। यह दूरी पोखरा से 20 किमी सड़क मार्ग की है। उसके बाद कांडे गांव से ऑस्ट्रेलियाई बेस कैंप तक लगभग डेढ़ घंटे की पैदल दूरी पर होता है। ऑस्ट्रेलियाई शिविर की ऊंचाई 2100 मीटर है। रास्ते भर आप दक्षिणी अन्नपूर्णा, ह्यूंचुली, लामजुंग हिमाल और फिशटेल की मंत्रमुग्ध कर देने वाली झलक देख सकते हैं। बाद में, आप धामपुस गाँव की ओर बढ़ेंगे, जिसका अर्थ है अन्नपूर्णा पर्वतमाला के आकर्षक दृश्यों के साथ एक गुरुंग बस्ती। सच कहें तो धमपुस मूलतः गुरुंग जाति का ही गांव माना जाता रहा है। धमपुस से वापस लौटने के लिए हमे ढंपू के आधे रास्ते होते हुए फेडी के लिए ट्रेकिंग करके नीचे उतरना होगा और फिर हम वापस पोखरा लौट सकेंगे।

हिमालयी पर्वत श्रृंखला से घिरा अन्नपूर्णा अभ्यारण।

प्राप्त जानकारी के अनुसार अन्नपूर्णा अभयारण्य एक उच्च हिमनद बेसिन है जो पोखरा से सीधे 40 किमी उत्तर में स्थित है। अंडाकार आकार का यह पठार 4000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है, और पहाड़ों की एक अंगूठी से घिरा हुआ है। अन्नपूर्णा रेंज, जिनमें से अधिकांश 7000 मीटर से अधिक हैं।  एकमात्र प्रवेश द्वार के साथ हिंचुली और माछापुचेरे की चोटियों के बीच एक संकरी घाटी, जहां ग्लेशियरों से बहकर मोदीखोला नदी में बहती है।  अभयारण्य में 1956 तक बाहरी लोगों द्वारा प्रवेश नहीं किया गया था।   सभी तरफ ऊंचे पहाड़ों के कारण, अन्नपूर्णा अभयारण्य गर्मियों की ऊंचाई पर एक दिन में केवल 7 घंटे सूरज की रोशनी प्राप्त करता है। अन्नपूर्णा अभयारण्य में 5-7 दिन की ट्रेक पर ऊंचाई और गहराई का अनूठा संयोजन पारिस्थितिक तंत्र की एक असाधारण विविधता को जन्म देता है। दक्षिण की ओर की ढलानें रोडोडेंड्रोन और बांस के घने उष्णकटिबंधीय जंगलों में आच्छादित हैं, जबकि उत्तर की ओर ढलान, बारिश की छाया में, पास के तिब्बती पठार के समान एक शुष्क ठंडी जलवायु है।

राजू गुरुंग के अनुसार अन्नपूर्णा अभयारण्य को गुरुंग लोगों के लिए पवित्र माना जाता था, जो इस क्षेत्र में रहने वाले कई मूल लोगों में से एक थे।  उनका मानना ​​​​था कि यह नागों, नाग-देवताओं द्वारा छोड़े गए सोने और विभिन्न खजाने का भंडार था।

गुरुंग कहते हैं वहीं भारतबर्ष  में कहा जाता है कि अभयारण्य हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के साथ-साथ पुराने एनिमिस्टिक देवताओं के कई देवताओं का घर था। प्रवेश द्वार पर माछापुचारे की चोटी को भगवान शिव का घर माना जाता था, और रोज गिरती बर्फ के फूहों  को उनकी दिव्य धूप का धुआं माना जाता था। कुछ समय पहले तक, स्थानीय गुरुंग लोगों ने किसी को भी अंडे लाने से मना किया था। या अन्नपूर्णा अभयारण्य में मांस, और महिलाओं और अछूतों को भी वहां जाने की मनाही थी। लेकिन वर्तमान में अब ग्रामीण परिवेश में यह शुरू हो गया है।

कवर फोटो -गूगल देवता।

 

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