(रुद्रनाथ के पंडित हरीश भट्ट की कलम से)
।।।ॐ।।।
उत्तराखंड को देवभूमि यूँहीं नहीं कहा जाता। वेद पुराणों व सभी धार्मिक ग्रन्थों में यहां के अनुष्ठान, पूजाएं व अन्य धार्मिक क्रिया कलापों में आपको इस प्रदेश के धार्मिक व सांस्कृतिक रूपों में कई पूजा विधि विधान मिलेंगे। कहीं देवता का पश्वा नंगी धारदार तलवार, खुंखरी, फरसों में चलता, नाचता दिखेगा। तो कहीं आग की बिशाल लपटों के अंदर बैठ अपना भैरवी जमाण लगाता दिखाई देगा। कहीं आग में सुर्ख लाल हुई लोहे की छड़ों को चाटता दिखाई देगा तो कहीं त्रिशूल या गर्म चिमटों व सांकलों से अपने शरीर पर वार करता दिखाई देगा।
ऐसे ही कई अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में एक अनुष्ठान “माँ चंडिका देवी” का भी होता है। जब किसी पुरुष पर माँ अपनी कृपा दृष्टि दिखाई है तो उसे पूरे नौ महीने नारी के सोलह श्रृंगारों के साथ अपनी दिनचर्या गुजारनी पड़ती है।
माथे पे बिंदिया, आंखों में काजल, कानों में कुंडल, गले में मंगल सूत्र (गुलाबंद), नाखूनों में नेल पालिश, उंगलियों में अंगूठियां, हाथों में चूड़ियां, कमर में घुंघरू घण्टियां, पांवों में पाजेब और घुंघरू…..! ये किसी महिला या लड़की का का श्रृंगार नहीं…… बल्कि ये पहनाए जाते हैं, एक पुरुष या लड़के को, वो भी एक घंटे, एक दिन, एक हफ्ते, एक महीने के लिए नहीं, पूरे नौ महीनों के लिए सुबह से रात तक के लिए वो भी सिर्फ देखने दिखाने के लिए नहीं, उनसे उस “साधना” को जो घर परिवार बच्चों को छोड़ कर नंगे पांव एक समय ही भोजन कर सिर्फ अपनी “ईष्ट देवी मां चंडिका” के लिए समर्पित होकर उसके गुणों की महिमा को अपने नियम धर्म संयम से तीर्थ क्षेत्रों एवम गांवों में देवरा यात्रा के नाम से भ्रमण कर विशेष तरह के “नृत्य” को करने के माध्यम से जिस नृत्य को इनके नाम से ही जाना जाता है उसे “एरवाल नृत्य” कहते हैं, और इनको इनकी इसी पोशाक से ही चंडिका का “एरवाल” कहा जाता है।
अपनी “ईष्ट देवी मां चंडिका” पर अपने अटूट आस्था विश्वास श्रद्धा के कारण ही ये लोग इतनी बड़ी “साधना तपस्या” को कर पाते हैं, जो इस कलियुग में सतयुग के ऋषियों के हजार सालों की “साधना तपस्या” के बराबर है।
आप सभी दशज्युला कांडई के ग्राम वासियों एवम “मां चंडिका” देवरा यात्रा के आयोजकों को इस हमारी धार्मिक आध्यामिक पारंपरिक देवभूमि उत्तराखण्ड की मान्यताओं को जीवित रखने के लिए कोटि कोटि नमन के साथ “मां चंडिका देवी” को दंडवत प्रणाम प्रभु कृपा बनी रहे …!
नोट – रहस्यों को जानने के लिए, पेहले स्वयं को स्वयं से साक्षात होना पड़ेगा…!