Sunday, September 14, 2025
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कुंवर जपेंद्र की एक पीआईएल…जिसने उन्हें पहुंचाया 16 लाख लोगों तक! प्राइवेट स्कूलों की हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट दौड़..!

(मनोज इष्टवाल)

सच कहूँ तो दम तो है इस बंदे में…! राजनीति हो या समाजसेवा, अगर ऐसी पारदर्शिता के साथ कोई व्यक्ति समाज के लिए समाज के साथ जुड़कर काम करे तो भला वह नाम क्यों नहीं आम व्यक्तियों के बीच चर्चित होवेगा! आप दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को ही देख लीजिये! भले ही उन्होंने अन्ना हजारे के नाम की सीढ़ी लगाईं हो लेकिन अब वर्तमान में जो कारनामा वह दिल्ली की राजनीति में कर रहे हैं उसका तोड़ भाजपा के राष्ट्रीय थिंक टैंक के पास भी मौजूद समय में नहीं है! कुंवर जपेंद्र ने जिस तरह से उत्तराखंड में निजी शिक्षण संस्थानों की बर्षों से चल रही मनमानी को एक पीआईएल के माधाम से जमीन सुंघा दी वह वर्तमान में पूरे प्रदेश के लगभग 16 लाख परिवारों के बीच चर्चा का बिषय है!

कुंवर जपेंद्र ने कोरोना महामारी के दौर में जब छात्र-छात्राओं की कक्षाएं नहीं चल रही थी व अचानक देखा कि निजी शिक्षण स्न्थानों ने ऑनलाइन पढ़ाई का सिगुफा छेड़ कर घर बैठे विद्यार्थियों से तीन माह का शुल्क मांगना शुरू कर दिया तो उन्होंने तब पार्टी पॉलिटिक्स से उपर उठकर काम करना शुरू कर दिया! मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. निशंक की अपील पर उन्होंने झंडा बुलंद किया और जाकर नैनीताल हाईकोर्ट में निजी शिक्षण संस्थाओं के लिए शिक्षा नीति व शुल्क एक्ट बनाने के साथ-साथ स्कूलों या तकनीकी शिक्षा संस्थानों द्वारा घर बैठे छात्र-छात्राओं से फीस मांगने को लेकर जनहित याचिका दायर कर डाली!

यह सब इतना अप्रत्यक्ष हुआ कि सारे निजी शिक्षण संस्थान वाले अचम्भित रह गए! उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा भी हो सकता है! शिक्षा सचिव द्वारा आदेश जारी किया जाता है कि निजी शिक्षण संस्थान अभिवाहकों पर बेवजह फीस वसूली का दबाब न डालें लेकिन यह क्या शाम तक निजी शिक्षण संस्थानों की ओर से 62 लाख रूपये की राशि मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा होते ही अगले दिन यह आदेश बदल दिया जाता है! कुंवर जपेंद्र सिंह की पीआईएल की खबर जैसे ही भाजपा की प्रदेश इकाई को लगती है तब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत द्वारा उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है कि वे इस पर अपना लिखित बयान जारी करें कि उन्होंने बिना पार्टी को विश्वास में लिए यह कदम क्यों उठाया!

यह बयानबाजी या नोटिस कुंवर जपेंद्र को सोशल साईट पर मिलता है जिसका जबाब वह सोशल साईट के माध्यम से ही भाजपा उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष को देते हैं व लिखते हैं कि उन्होंने समाज के हित में पार्टी की गरिमा के साथ सामाजिक हितों की पैरोकारी करते हुए यह कदम उठाया है, क्योंकि इन 20 बर्षों के राज्य में अभी तक निजी शिक्षण संस्थानों के लिए कोई एक्ट न बनाया जाना कहीं भी प्रदेश की जनता के हित में दिखाई नहीं देता है! यह लगभग 16 लाख छात्र-छात्राओं के माता-पिता की उस जेब पर सीधा-सीधा डाका है जो प्राइवेट व सरकारी माध्यमों के माध्यम से अपने परिवार का लालन-पालन कर अपने बच्चों के भविष्य के लिए मजबूरीवश इस मनमर्जी के शिकार हो रखे हैं!

कुंवर जपेंद्र बताते हैं कि उनके पास सैकड़ों अभिवाहकों के फोन आये और प्रतिबर्ष फीस बढौतरी, नए साल में नए एडमिशन के नाम पर पैंसा लेना! मनचाही दुकानों से ही कापी-किताबें मनचाहे दामों पर खरीदवाना और मनचाहा शुल्क वसूलना जैसे प्रकरण जब उनके सामने रखे गए तब जाकर उन्हें पता चला कि इन निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी क्यों चल रही है! आज तक ये शिक्षण संस्थान प्रदेश में शिक्षा का जो ब्यापार कर रहे हैं उसके लिए इन 20 बर्षों के कार्यकाल में अब तक की सरकारों द्वारा कोई भी एक्ट नहीं बनाया गया है जिससे हर साल हर अभिवाहक इन शिक्षण संस्थानों की मनमर्जी का शिकार होता है!

बहरहाल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए जनता के पक्ष में फैसला लिया व शिक्षा विभाग उत्तराखंड को सख्त आदेश जारी किये कि वह प्रदेश के हर जिले में अपने नोडल अधिकारी बनाए व निजी शिक्षण संस्थानों को तीन माह की फीस न वसूलने के आदेश जारी करे, जो निजी शिक्षण संस्थान यह आदेश न मानें तो उन पर फ़ौरन कार्यवाही करें!

हाईकोर्ट के आदेश के बाद सभी निजी शिक्षण संस्थानों में हडकम्प मच गया, वहीँ सरकारी मशीनरी के लिए भी यह गर्म दूध से कम नहीं हुआ क्योंकि एक तरफ निजी शिक्षण संस्थानों से मिलने वाली हर बर्ष मलाई व दूसरी ओर लगभग 16 लाख वोट बैंक..! ऐसे में सरकारी सिस्टम ने पारदर्शिता दिखाते हुए सभी शिक्षण संस्थानों को पात्र लिखे कि हाईकोर्ट के आदेश के मध्यनजर कोई भी शिक्षण संस्थान लॉकडाउन के दौरान बंद हुए स्कूल, तकनीकी शिक्षण संस्थान अभिवाहकों से फीस नहीं वसूलेंगे!

ऐसे में भला निजी शिक्षण संस्थान कहाँ चुप बैठने वाले थे क्योंकि यह तो एक झटके में अरबों रुपयों की कमाई का नुक्सान जो था! इसलिए ठीक हाई कोर्ट की तरह वकीलों की एक टीम को लेकर ये शिक्षण संस्थान सुप्रीम कोर्ट की शरण चले गए हैं! कुंवर जपेंद्र कहते हैं कि उन्हें इस बात की ख़ुशी है कि अभिवाहक लगातार उनके सम्पर्क में हैं और उन्होंने भी पूरा मन बना लिया है कि वे इस मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई लड़कर ही रहेंगे! उन्होंने कहा कि उन्हें अभिवाहकों से कुछ नहीं चाहिए लेकिन इतना जरुर चाहेंगे कि वे शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश में हो रही मनमानी में उनके उत्साहवर्द्धन के लिए उनका साथ देते रहें! उन्होंने कहा कि हमे पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की शिक्षा नीति से सबक लेना चाहिए क्योंकि उनकी ही शिक्षा नीति की कॉपी कर आम आदमी पार्टी ने केंद्र शासित दिल्ली प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व फैसले लिए हैं और यही कारण भी है कि केजरीवाल दुबारा सत्ता में काबिज हुए हैं!

कुंवर जपेंद्र कहते हैं कि ऑनलाइन शिक्षा के व्यापार को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी समझा है और वह भले से जानते हैं कि ऐसी महामारी के दौर में भला आम गरीब व मिडिल क्लास कहाँ से एंड्राइड फोन या लैपटॉप खरीदकर शिक्षा ग्रहण कर पायेगा इसलिए प्रधानमन्त्री मोदी ने 6 डीटीच चैनल खुलवाकर इसे सरल बना दिया है! उनका मानना है कि मोदी जैसा सर्वमान्य नेता बमुश्किल ही सदी में पैदा होते हैं! वह उनके पहले ऐसे आदर्श हैं जिनके कारण उन्होंने भाजपा की सदस्यता गरहन की है!

बहरहाल कुंवर जपेंद्र ने जो दुस्साहसिक कदम मौजूदा भाजपा सरकार में पार्टी में रहते हुए उठाया है वह आम राजनेता के वश की बात नहीं क्योंकि आज नेता समाज हित से पहले अपने हित साधता हुआ आगे बढ़ता है! यहाँ अगर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर जपेंद्र के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी करते हैं तो वहां पार्टी अब यह सोचने को भी मजबूर होगी कि अगर कुंवर जपेंद्र के विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही हुई तो आगामी 2022 के चुनाव में पार्टी को कम से कम 16 लाख परिवारों की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में कुंवर जपेंद्र के साथ खड़े दिख रहे हैं!

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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