(मनोज इष्टवाल/सम्पादकीय)
जिस कोरोना महामारी के चलते बद्रीनाथ के कपाट खुलने की तिथि राजाज्ञा से इसलिए बदल दी जाती है क्योंकि बद्रीनाथ धाम के रावल दक्षिण भारत से लौटने के बाद उत्तराखंड में 14 दिनी क्वारनटाईन पर रखे जाते हैं! श्री श्री 1008 बोलांदा केदार जिनके सिर पर केदारनाथ के कपाट बंद होने के बाद बाबा केदार का मुकुट 6 माह तक सुशोभित होता है, ऐसे केदारनाथ के रावल भीमशंकरलिंग उखीमठ होने के बावजूद भी बाबा केदार के कपाट खोलने केदारनाथ नहीं जा पाते क्योंकि वे भी तब 14 दिनी क्वारनटाईन प्रक्रिया से इसलिए गुजर रहे होंते हैं ताकि मानवकल्याण के इस कार्य में कहीं उनके ऊपर या बाबा केदार के ऊपर यह आरोप न लगे कि सरकार द्वारा ऐसी दोहरी नीति क्यों अपनाई गयी! भले ही रमजान पर मुस्लिम समाज के कई धर्मानुयायियों ने इसकी कतई चिंता नहीं की है कि उनके पावन महीने में नमाज अगर सब अपने घर से अता करें तो मानव कल्याण होगा लेकिन देवभूमि उत्तराखंड के चार धामों के कपाट खोलने से लेकर अब तक ऐसा कोई प्रकरण सामने नहीं आया था जिस पर अंगुली उठाई जा सके क्योंकि कोरोना महामारी की यह राजाज्ञा व अनुरोध देश के गृह मंत्रालय व प्रधानमन्त्री ने सभी देशवासियों से किया था जिसका देशवासी अक्षरत: पालन कर रहे हैं, और तो और सिर्फ इन धामों में पुजारियों की पूजा के अलावा लॉक डाउन के कारण किसी को जाने की इजाजत तक नहीं है!
अचानक 3 मई 2020 को बद्रीकेदारघाटी से शोर उभरता है! शोर इतना बड़ा कि कुछ ही पलों में वह आग की तरह सम्पूर्ण उत्तराखंड उत्तरप्रदेश व दिल्ली तक जा पहुँचता है! सुनने में आता है कि चमोली के एसडीएम वैभव अग्रवाल द्वारा उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के विधायक पुत्र अमनमणि त्रिपाठी के वाहन संख्या यूपी 32केएस/1110, यूपी 53 डीएल 1314 व यूके 07बीबी/4033 को उत्तराखंड के सबसे पावरफुल नौकरशाह अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश के पत्र संख्या 66/नि.स./अ.मु.स./2020 दिनांक 2 मई 2020 व अपर जिलाधिकारी देहरादून रामशरण शर्मा के द्वारा जारी आदेश को दरकिनार कर उन्हें बद्रीनाथ धाम जाने से रोकता है!
विधायक अमनमणि त्रिपाठी सहित 11 लोगों को जब एक एसडीएम रोकता है तो विधायक का पारा सातवें आसमान चढ़ जाता है! वह बदसलूकी की वह सभी हदें पार कर देता है जो ऐसे विधायकों को अक्सर उत्तर प्रदेश में बाहुबली का तमगा दे देता है! जब ज्यादा ही ज्यादती विधायक की ओर से होने लगती हैं तब एसडीएम अपनी मजिस्ट्रेट पावर का इस्तेमाल करके उन्हें बताते हैं कि उनकी जमीन है क्या! उन्हें फ़ौरन वहां से लौटने को कहा जाता है और साथ में चेतावनी दी जाती है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है! विधायक अमनमणि को लगा कि कहीं अपना नम्बर भी तो उसी जेल में नहीं आने वाला है जहाँ उनके पिता श्री अर्थात अमरमणि त्रिपाठी बंद हैं! वह फ़ौरन लौटते हैं! श्रीनगर गढवाल मंडल विकास निगम में ठहरने का मन बनाते हैं लेकिन पिछले दिन श्रीनगर गढवाल मंडल विकास निगम में की गयी इनके द्वारा किये गए हुडदंग से तंग आये कर्मचारियों ने इन्हें फटकने नहीं दिया, क्योंकि तब तक खबर आग की तरह सोशल मीडिया के माध्यम से आग की तरह सारे क्षेत्र में पहुँच गयी थी!
जाहिर सी बात है कि प्रदेश का एलआईयू भी सक्रिय हुआ होगा और बात आलाकमान तक पहुंची होगी! अपनी फजीहत बचाने के लिए आनन-फानन अमनमणि त्रिपाठी सहित 11 लोगों को पुलिस ऋषिकेश में गिरफ्तार करती है व तुरंत निजी मुचलके पर छोड़ भी देती है! मतलब सीधा सा है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे! लेकिन अब तक अपर जिलाधिकारी देहरादून के उस आदेश की कॉपी शायद योगी सरकार तक पहुँच चुकी थी! सूत्रों का कहना है कि जब यह सारा प्रकरण मुख्यमंत्री योगी को पता चला कि अपर जिलाधिकारी देहरादून के आदेश में यह इंगित किया गया है कि उत्तर प्रदेश के मानननीय मुख्यमंत्री के स्व. पिता जी के पितृकार्य हेतु इनके द्वारा परमिशन ली गयी है तब फ़ौरन उत्तर प्रदेश के भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी द्वारा प्रेस रिलीज कर बताया जाता है कि यह सारा प्रकरण न उत्तर प्रदेश सरकार के संज्ञान में है न मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के!
सीधे-साधे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के मुंह लगे अफसर की यह करतूत यहीं दफन हो जाती तो शायद प्रकरण नहीं उछलता! सोशल साईट पर न्यूज़ पोर्टल्स व जाने माने प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकारों ने खबर को तेजी से वायरल करना शुरू कर दिया! ज्ञात हो कि ये मुख्यधारा के वे नामी पत्रकार हैं जिन पर पत्रकारिता जगत नाज कर सकती है क्योंकि इनमें जितने भी नाम हैं ज्यादात्तर ऐसे हैं जो टूटे तो सही लेकिन झुके नहीं! (पहाड़ टूट सकता है लेकिन झुक नहीं सकता!)
बेचारे अमनमणि भागे-भागे उत्तर प्रदेश बॉर्डर पहुंचे और जैसे ही उत्तर प्रदेश में दाखिल हुए अभी शुकून की सांस भी न ले सके थे कि जिला बिजनौर में नजीबाबाद पुलिस उनके स्वागत में तैयार खड़ी मिली व उन्हें उनकी मित्र मण्डली सहित गिरफ्तार करके ले गयी! सत्तासीन भाजपा का विधायक ऐसे गिरफ्तार हो सकता है कभी? आप कल्पना भी नहीं कर सकते! लेकिन यही तो मुख्यमंत्री योगी की दहशत है और यही कारण है कि पूरे देश में नारे लगते हैं योगी जैसा कोई नहीं! जो मुख्यमंत्री अपने पिता के अंतिम संस्कार में इसलिए शामिल नहीं हो पाता क्योंकि उसका सम्पूर्ण प्रदेश कोरोना महामारी से लड़ रहा है! भला वह मुख्यमंत्री कैसे अपने एक विधायक को बोलता कि जाओ बद्रीनाथ अभी कपाटनहीं खुले! वहां अस्थिकलश डालना व केदारनाथ में पिंडदान करना! शायद इन विधायक जी को यह पता ही नहीं था कि केदारनाथ में पिंडदान नहीं होते व बद्रीनाथ में अस्थियों विसर्जित नहीं की जाती!
इससे बड़ा डरावना सच क्या हो सकता है कि प्रदेश का सबसे पॉवरफुल नौकरशाह को यह पता नहीं है कि अभी बद्रीनाथ के कपाट नहीं खुले हैं व रावल तक क्वारनटाईन में हैं! फिर वह कैसे जिलाधिकारी देहरादून को पत्र लिखकर अमनमणि की 11सदस्यीय टीम को यात्रा पर भेजने का निर्देश दे सकते हैं! और तो और अभी तक जब यात्रा शुरू ही नहीं हुई तो क्या एक अपर मुख्य सचिव पीएमओ व गृह मंत्रालय भारत सरकार के आदेशों की धज्जियां उड़ाकर अपने आप को मुख्यमंत्री से भी बड़ा मानकर जिलाधिकारी को ऐसा पत्र लिख सकता है? और जब फंसने की अपनी नौबत्त आये तो जिलाधिकारी को ही नापना शुरू कर दे!
वहीँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का परिवार इस पूरे घटनाक्रम से बेहद आहत है! योगी आदित्यनाथ के भाई महेंद्र बिष्ट ने जानकारी देते हुए बताया कि यह कैसे सम्भव हो सकता है कि एक पिता के तीन पुत्र हों और उनका अस्थि विसर्जन, पिंडदान करने कोई बाहरी व्यक्ति जाए! उन्होंने कहा कि वे अपने पिता का अस्थिविसर्जन फूलचट्टी में कर चुके हैं फिर यह किसका क्या करने जा रहे थे यह तो अपर मुख्य सचिव को पता होगा या फिर अपर जिलाधिकारी देहरादून की जिन्होंने आदेश जारी किया है!
बहरहाल खबर न्यूज़ पोर्टल्स व सोशल मीडिया पर इतनी वायरल हुई कि काटो तो खून नहीं की स्थिति बनी! वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट, अतुल बरतरिया, राजेन्द्र जोशी, चेतन गुरुंग, शिव प्रसाद सेमवाल, अखिलेश डिमरी सहित दर्जनों पत्रकारों ने अपनी खबर के साथ-साथ अपने प्रश्नों में भी राज्य सरकार की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश को खूब धुला! वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट की खबर को तो कई उन न्यूज़ पोर्टल के स्वामियों ने भी खूब चस्पाया जिन्हें सीधे सरकार से पंगा लेने में अपनी हानि दिखाई देती है लेकिन वे एक भी इस पर एक शब्द नहीं बोले जिन्होंने चाटुकारिता में तलवे चाटने ही छोड़े होंगे बाकी सारी सीमाएं पूरी की हुई हैं! लखनऊ के जानकार सूत्रों से ज्ञात हुआ कि वहां वरिष्ठ पत्रकार अविकल थपलियाल द्वारा लिखे गए सोशल साइट पर लेख के बाद हंगामा मचा और योगी सरकार ने मामला संज्ञान में लिया है।
ज्ञात हो कि ऐसी ही दृढ़ता अपर मुख्य सचिव पूर्व में भी कर चुके हैं जब संविदा कर्मियों को ब्रेक न देने व पूरा वेतन देने के बाद अदालत के नोटिस की नजरअंदाज करते दिखे! ऐसे में हाईकोर्ट ने सख्त रुक अपनाया व इन पर अवमानना का मुकदमा दर्ज किया बाद में एकल पीठ में सुनवाई पर यह बच गए! अपर मुख्य सचिव पर कृषि विभाग में रहते कई आरोप लगे जिसमें ढेंचा बीज प्रकरण भी शामिल है,और तो और वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र जोशी ने तो इनके भ्रष्टाचार पर कई लेख प्रकाशित किये लेकिन सरकार ने किसी का संज्ञान लिया हो ऐसा जानकारी में नहीं आया बल्कि उल्टा यह प्रसारित किया गया कि ऐसे पत्रकार अक्सर ब्लैकमेलिंग करते हैं! उपरोक्त तेज तर्रार पत्रकारों में ज्यादात्तर आज ऐसे ही सिस्टम के कारण बड़े बैनर्स से गायब हैं क्योंकि मीडिया की मंडी के बणिये सामाजिक मूल्यों की नहीं बल्कि अपनी जेबों की चिंता ज्यादा करते हैं! मजबूरन अपने परिवार को पालने वाले ज्यादात्तर पत्रकारों को समझौते के तहत काम करना पड़ता है और वे चाहकर भी वह लिख नहीं पाते जिसे वे सामाजिक दृष्टि में गलत मानते हैं!
बहरहाल देहरादून के मानवाधिकार कार्यकर्ता व अधिवक्ता आलोक घिल्डियाल व लखनऊ की सोशल एक्टिविस्ट व अधिवक्ता डॉ नूतन ठाकुर ने गृह मंत्रालय व पीएमओ को अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश के पत्र पर संज्ञान लेने के लिए पत्र लिखा है व उसमें उन पर कार्यवाही/गिरफ्तारी की मांग भी की है! प्रदेश सरकार ने भी इस पर जांच बिठाई है! वह जांच कौन करेगा इसकी पर्याप्त जानकारी अभी तक मेरे व्यक्तिगत संज्ञान में नहीं है लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने इस प्रकरण पर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की अवश्य मांग की है! अब देखना यह है कि गृह मंत्रालय भारत सरकार व पीएमओ इस पूरे प्रकरण पर क्या कार्यवाही करते हैं या फिर कार्यवाही से पहले ही अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश पहले की तरह लम्बी छुट्टी पर चले जाते हैं!