Sunday, December 22, 2024
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सोमेश्वर की डोली, ढोली व माली को उड़ाकर आकाश में ले गयी काला पहाड़ की सिंगणा-पटांगणा परियां!

*बेहद खतरनाक हैं हिमालय के उस काले पहाड़ पर निवास करने वाली ये सिंगणा-पटांगणा परियां!

*पूर्व में हरपु नामक ढोल वादक को भी ले उड़ी थी अपने साथ काले पहाड़ पर! जिसे हरपु पर्वत के नाम से ही जानते हैं यहाँ के लोग!

(मनोज इष्टवाल)

परीलोक या परियों के अद्भुत संसार पर यूँ तो पूरे विश्व भर में कई कहानियां, किस्से, दंतकथाएं व वर्तमान में भी ऐसे तमाम घटित घटनाओं का जिक्र होता रहा है लेकिन कई पुरानी किंवदन्तियाँ इसलिए वर्तमान समाज नकार देता है क्योंकि उनमें एविडेंस (प्रमाणिकता) की कमी रहती है! इसलिए अक्सर होता यह है कि इन्हें कहानी किस्से मात्र कहकर आम लोग तबज्जो नहीं देते लेकिन यह दूसरा इत्तेफाक है जब मैं अपनी यात्राओं के दरमियान हर की दून (पर्वत क्षेत्र) की उन परियों, बणदयो, बणदेवी, बणकियों, मात्रियों, आँछरियों इत्यादि विभिन्न नामों से जाने जानी गयी देवियों का अक्षरत: यथार्थ वर्णन कर रहा हूँ!

१- कोटगांव सोमेश्वर मेला २- काला पहाड़ (हरपु पर्वत शिखर) ३- स्वर्गारोहिणी!

यूँ ही जब बनदेवियों, परियों, ऐडी-आंछरियों, बणकियों, मात्रियों, भराडी या रक्त-पिचासिनियों की बात सामने आती है तब थात, बुग्याल, थाच, हिमशिखर, ओडार-गुफाएं अर्थात कम से कम 7000-8000 फिट से ऊंचाई वाले पर्वत श्रृंखलाओं के हिमालयी प्रदेश में घटित घटनाओं की यादें ताजा हो जाती हैं! आज भी हम ऐसे ही तिलिस्मी क्षेत्र के अतिथि थे जहाँ मात्रियों-परियों का अद्भुत संसार है! जहाँ की हर पर्वत शिखर पर परियों का वास है!

हिमालय दिग्दर्शन यात्रा टीम के सर्वेसर्वा ठाकुर रतन असवाल व उत्तरकाशी जिले के सीमान्त बंगाण क्षेत्र के कुकरेडा ग्राम प्रधान चतर सिंह चौहान के साथ हम कोटगाँव सोमेश्वर डोली जात्रा में शामिल होने आये हैं! इसी दौरान चर्चा के दौर में 22 गाँव के सोमेश्वर देवता से चर्चा बिणासु, सरुकाताल, कंडारा, काण्डे की परियों से होती हुई हर की दून स्थित काला पहाड़ की मात्रिओं (मातृकाओं)/परियों पर जा पहुंची तो मैंने अपने जून 2016 के संस्मरण सुनाने शुरू कर दिए! तब तक पंडित रामकृष्ण उनियाल बोल पड़े- अरे सर, हमारे पूर्वजों के तो बड़े किस्से हैं इसीलिए उन्हें ओसला गाँव वाले सोमेश्वर डोली जातरा में नहीं बुलाते क्योंकि अगर कोई कोट गाँव का उनियाल भूल से वहाँ चला गया तो सारी बणद्यो (मातृकाएं, परियां) वहां से भाग खड़ी होती हैं ऐसे में वहां के लोग इसे सोमेश्वर यात्रा का अधूरापन मानते हैं!

सबने सोचा बात आई गयी हो गयी लेकिन मेरे लिए यह बड़ा बिषय था! मैंने 10 जुलाई 2019 की सुबह फिर उन्हें टटोला तो वे मुझे लेकर कुश मंदिर के प्रांगण में ले गए जहाँ उन्होंने मंदिर के भंडारी पंडित नीलाम्बर उनियाल जी से मेरी मुलाक़ात करवाई! देखा-देखी में दो चार और इकठ्ठा हो गए तो ओसला गाँव की सिंगणा-पटांगणा परियों के दुस्साहिक कदम की जानकारी सुनते ही रोंगठे खड़े हो गए! उन्होंने बताया कि यहाँ बात लगभग एक सदी पूर्व की है जब हमारे पूर्वज कोटगाँव की जगह सिदरी गाँव में रहते थे तब उनियाल जाति के ब्राह्मण पंडित केशाराम उनियाल इस क्षेत्र के नामी गिरामी तांत्रिकों में शुमार थे!

१- कोटगांव सोमेश्वर मंदिर के बाहर बैठे जखोल के मंदिर पुजारी २- पर्वतीय भेषभूषा में ओसला के ग्रामीणों के साथ लेखक मनोज इष्टवाल ३- बाजगी वरदास व अन्य (कफुआ गाते हुए) साथ में पंडित रामकृष्ण उनियाल व नीलाम्बर उनियाल!

ओसला गाँव में सोमेश्वर महाराज का भ्रमण था! यहाँ डोली जात्रा मेले में हजारों की संख्या में 22 गाँव के लोग जुटे थे! इधर मंदिर के गर्भ गृह से जैसे ही डोली बाहर निकाली गयी और ढोल नगाड़ों के साथ बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने को उतारू हुए वैसे ही ओसला गाँव में काले पहाड़ की सिंगणा-पटांगणा परियों के रथ आकाश में मंडराने लगे! लोगों में डर और दहशत से अफरातफरी मच गयी! सिंगणा-पटांगणा परियों के रथ मंदिर प्रागंण में उतरे व अपने साथ दो देवताओं के माली, बाजगी व डोली लेकर दूर आकाश की ओर उड़ने लगे! देव डोली को यूँ अपने हाथों से जाता देख पूरे 22 गाँव पर्वत जिनमें पट्टी पंचगाई, बड़ासू व ओडार के हजारों ग्रामीण शामिल थे, में कोहराम मच गया! सिंगणा-पटांगणा मातृकाएं जहाँ ढोल वादक व मालियों के साथ देवता की पालकी को आसमान में उड़ाते हुए तेजी से काले पर्वत की ओर बढ़ रही थी वहीँ केशा राम ने अपना चिन्द्रा (एक प्रकार का जूता जो चमड़े से निर्मित होता है व उस पर ऊनि तागे की सिलाई होती है) निकाला, उस पर कुछ मन्त्र बुदबुदाए और पूरी ताकत से आसमान में उस ओर उछाल दिया जिधर परियां डोली, बाजगी, मालियों को लेकर बढ़ रही थी!

अब ओसला के ग्रामीणों में नहीं बल्कि सिंगणा-पटांगणा नामक परियों में कोहराम मच गया और उन्होंने तांत्रिक पंडित केशाराम उनियाल व ओसला के ग्रामीणों को धमकी देते हुए डोली, ढोली व माली तीनों को मुक्त कर दिया! इस तरह सोमेश्वर की डोली भी बची व साथ में माली व ढोली भी! लेकिन समाज का स्वरूप देखिये जिन्होंने यह सब किया उन्हें ही ओसला के ग्रामीणों ने आगे से अपने यहाँ होने वाले मेले में आने से मना कर दिया क्योंकि जब भी तांत्रिक केशाराम उनियाल का कोई वंशज यहाँ के मेले में सम्मिलित होता मेले में ग्रामीणों पर झूल रही परियां डर के मारे भाग जाया करती थी जिस से उस बर्ष ग्रामीणों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता था! और तो और ग्रामीणों का यह भी कहना है कि इसी कारण ओसला से आगे कंडारा खड्ड, उपला खड्ड पार कर आप बिनाई पहुँचते हैं. जहाँ ओसला के ग्रामीण आपको अपने अंतिम खेतों में ओगल व फाफरा उगाते हैं,  रींडू गाड़ पार कर आप अलछयूँ तोक पहुँचते हैं ! यही वह अळछयूँ तोक है जहाँ कभी ओसला के दर्जन भर परिवार रहते थे लेकिन अब वे खंडहरों में तब्दील हैं! कुछ लोगों का मानना है कि इन्हीं मात्रियों के कारण यह गाँव तब से उजाड़ है! ओसला के ग्रामीणों को शायद यह लगता होगा कि उनकी ये मातृकाएं देवियाँ हैं जिन्हें वे किसी भी कीमत पर नाराज नहीं करना चाहते इसीलिए उन्होंने कोटगाँव के उनियालों को ओसला सोमेश्वर मेले में प्रतिबंधित कर दिया है! ग्रामीण बताते हैं कि कोटगांव का भेड़ चुगाने वाला शिल्पकार शुक्रिया लाल अभी हाल के ही बर्षों में भेड़ चुगाने जब हर की दून क्षेत्र में गया था तब परियों ने उसे चेतावनी दी थी कि वह हरपु डांडा (काले पहाड़) की ओर न आये सीधे अपने घर चला जाए उसकी भेड़ें वे स्वयं चुगा लेंगी व सीजन समाप्त होते ही सकुशल कोटगाँव भेज देंगी लेकिन बेचारा गरीब नहीं माना क्योंकि वह अपने साहूकारों को घर आकर क्या जबाब देता ! उसने यह व्यथा अपने साथ के भेड़ पालकों को बताई जिसके बाद वह मर गया और परियों ने अपने वायदे के अनुसार उसकी समस्त भेड़-बकरियां कोटगांव सुरक्षित पहुंचाई!

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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