Sunday, September 8, 2024
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कमल के बहाने ही सही 18 साल के प्रदेश के कई ज्वलंत मुद्दे उठा गए शेखर पाठक!

कमल के बहाने ही सही 18 साल के प्रदेश के कई ज्वलंत मुद्दे उठा गए शेखर पाठक!

(मनोज इष्टवाल)

जुम्मा-जुम्मा तीन दिन पहले की बात हुई ! सुप्रसिद्ध छायाकार व यायावर कमल जोशी की प्रथम बरसी पर धाद द्वारा आयोजित “प्रथम कमल जोशी स्मृति व्याख्यान” पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए पहाड़ के सम्पादक व पदमश्री डॉ. शेखर पाठक ने कई ऐसे ज्वलंत मुद्दे सामने लाकर खड़े कर दिए जो राज्य निर्माण के बाद भी ज्यों के त्यों खड़े हैं! उन्होंने ढांचागत व्यवस्थाओं में स्वास्थ्य चिकित्सा, परिवहन, शिक्षा, पेयजल सहित तमाम वो बिंदु सामने लाकर खड़े कर दिए जिनके लिए हम सब राज्य आन्दोलन के लिए कूद पड़े थे! पहाड़ की हालत इस दौरान बद से बद्दतर होती रही और शहरों की आमद बढती गयी! पलायन अभी भी बदस्तूर जारी है लेकिन उसे रोकने की कोई ठोस योजना नहीं!

उन्होंने कहा कि हमने महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों, दिव्यागों व बच्चों के लिए एक सुरक्षित समाज तक इतने बर्षों राज्य निर्माण के बाद भी विकसित नहीं किया! समाज में यह विखराव विकराल रूप ले रहा है जिसे समेटने के लिए कोई कार्य योजना दिखाई नहीं देती! उन्होंने निजी विद्यालयों की कार्यप्रणाली पर प्रहार करते हुए कहा कि शिक्षा व चिकित्सा दोनों ही धंधा बन चुकी हैं जहाँ एक ओर डॉक्टर खून चूस रहे हैं वहीँ दूसरी ओर डिग्रियां सरेआम बिक रही हैं!

पलायन को सतत प्रक्रिया बताते हुए डॉ. शेखर पाठक ने  क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के पिता द्वारा किये गए पलायन से जोड़ते हुए कहा कि अगर वे पलायन नहीं करते तो हो सकता था महेंद्र सिंह धोनी किसी परिवहन निगम की बस के कंडक्टर होते! हाँ आगे बढ़ने के लिए पलायन जरुरी है लेकिन उसे हमेशा प्लावित रहने देना ठीक नहीं! आल वेदर रोड पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया भर में पहाड़ी प्रदेशों में 12 मित्र चौड़ी सडक नहीं है लेकिन उत्तराखंड में आलवेदर रोड फोर लेन का रूप ले रही है जिससे कितना प्राकृतिक असंतुलन बिगड़ेगा या बिगड़ रहा है , यह हम सब जानते हैं!

हिमालय को खुद आपदा का परिणाम बताते हुए डॉ. शेखर पाठक ने कहा है कि हिमालयी प्रदेश उत्तराखंड आपदाओं का केंद्र इसलिए है क्योंकि हिमालय खुद आपदाओं के बाद खडा हुआ है. इसे बेहिसाब बन रहे बड़े बांधों से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि आगामी समय में ये बाँध हिमालयी भू-भाग के अस्तित्व के लिए बड़ा ख़तरा साबित हो सकते हैं ! इनकी जगह अगर छोटे छोटे बाँध ऊर्जा उत्पादन हेतु बनाए जाते तो ज्यादा बेहतर होता! पंचेश्वर बाँध का जिक्र करते हुए उन्होंने जहाँ कई छोटी नदियों व संगमों के ऐतिहासिक धार्मिक महत्व के समाप्त होने व सम्पूर्ण घाटी की शानदार खेती व कई गाँवों के सम्बन्धों को रोटी-बेटी से जोड़ते हुए कहा कि यह बाँध बनाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि इस से न सिर्फ हमारी लोक संस्कृति को खतरा है बल्कि इसमें धर्म संस्कृति व लोक समाज भी समाप्त हो रहा है और तो और यह बाँध आने वाले समय में कई आपदाओं का केंद्र बनेगा ऐसा मेरा मानना है!

नशा नहीं रोजगार दो!- प्रदीप टम्टा

सांसद प्रदीप टम्टा ने कमल से अपने को सम्बन्ध करते हुए जहाँ दोनों के विद्यार्थी जीवन के दौरान आन्दोलन को याद करते हुए कहा कि हमारा आन्दोलन “नशा नहीं रोजगार दो” को लेकर चलता था वहीँ उन्होंने अस्कोट-आराकोट यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि वह उच्च हिमालयी यात्रा है हमें मध्य हिमालय को भी इस यात्रा में सम्मिलित करना चाहिए क्योंकि इस से हमें विभिन्न धर्म संस्कृतियों व लोक समाज को करीब से समझने देखने का भी मौक़ा मिल सकता है! शिक्षिका उत्तरा पन्त प्रकरण पर अप्रत्यक्ष वार करते हुए उन्होंने कहा कि पहाड़ों के दुर्गम और अति दुर्गम क्षेत्र में ऐसे अध्यापक या कर्मचारी ज्यादा सेवाएँ दे रहे हैं जो ओबीसी या एसटी/एससी हैं या फिर वे लोग जिनके पास राजनैतिक पहुँच नहीं है! यह दुर्भाग्यपूर्ण है! 

अध्यक्षीय भाषण निराशाजनक- प्रो. पन्त 

अपने अध्यक्षीय भाषण की शुरुआत करते हुए प्रो. पुष्पेश पन्त ने कमल जोशी को अपने घर परिवार से जोड़ते हुए जितना भी वक्तब्य दिया उसमें कहीं भी एक शब्द सारगर्वित नहीं रहा क्योंकि उनके पूरे भाषण में उनका परिवार उनके बहु बेटे और कमल जोशी की उपस्थिति रही! होना भी यही चाहिए था कि वे इसे कमल जोशी पर फोकस करते लेकिन उन्होंने बड़े चाव के साथ जो बातें रखी उनमें कमल जोशी के कारण बेटे की फोटोग्राफी व बेटे बहु की दूरियां, मैं अधर्मी शराब भी पी लेता हूँ और गौ मांस भी खा लेता हूँ जैसी बातें कहना बेहद निराशाजनक रहा! प्रो. पुष्पेश पन्त को जितने भी लोग सुनने आये थे सभी उनके वक्तब्य से बेहद निराश हुए!

वहीँ कवि/पत्रकार साहित्कार मंगलेश डबराल ने भी कमल जोशी पर प्रकाश डालते हुए यह कहा कि यह यायावर बेहद बिलक्षण प्रतिभा का धनी रहा है!

इंसान के भावों को कैमरे में उतारता था कमल- लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी 

लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने सिर्फ और सिर्फ अपने वक्तब्य में कमल जोशी से जुडी चंद यादों को याद करते हुए उन्हें श्रधान्जली देते हुए कहा कि वे कमल को जितना जानते थे वह यह कहेंगे कि वह बेमिशाल थे! मैं उन्हें 80 के दशक से पूर्व से जानता हूँ! मैं तब सूचना विभाग में कार्यरत था और वे जब भी कोई प्रश्न किया करते थे तब हमें यही कौतुहल रहता था कि जाने वह प्रश्न क्या होगा क्योंकि वे सबसे हटकर प्रश्न करते थे! धीरे-धीरे हमारी निकटता बढती गयी और बाद में मेरे लिए कमल कुछ और नहीं एक ऐसा छायाकार रह गया था जो इंसान नहीं उसके भावों को उजागर करती फोटो खींचता था! उसके लिए मैं नरेंद्र था एक गीतकार, कवि व गायक! एक बार कमल ने इच्छा ब्यक्त की कि वह मेरे गीतों को बिना संगीत के रिकॉर्ड करना चाहता है मैंने कहा कभी मेरे आवास पौड़ी रुकने आओ! बैठकर इस पर कार्य करेंगे. फिर वह भी व्यक्त हो गया और मै भी! उसकी मौत की सूचना मुझे दो दिन बाद पता लगी जब मैं मैक्स हॉस्पिटल में जिन्दगी व मौत से जूझता हुआ बाहर निकला और अखबार में उसके मरने की खबर पढ़ी! तब उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से पूछा था कि यह मुझे क्यों नहीं बताया तो जवाब मिला आप स्वयं इस हालात में नहीं थे! जबकि धाद के केन्द्रीय अध्यक्ष हर्षमणी व्यास ने कहा कि वे कमल को नहीं जानते थे लेकिन अब अधिक जानने लगे जब वे यहाँ उपलब्ध नहीं हैं!

हम उनके हिस्से का शौर्य यश नहीं जुटा पाए!- डॉ. अनिल जोशी

हैस्को के संस्थापक व कमल जोशी के छोटे भाई डॉ. अनिल जोशी ने जब बोलना प्रारम्भ किया तो माहौल काफी ग़मगीन हो गया वे बोलते हुए कई क्षण भावुक भी हुए उन्होंने कहा- भाई साहब से अक्सर मैं यही पूछता था कि आप हमारे हो या किसी अन्य के! वह बेहद चुप रहने वाले ठहरे..! लेकिन इसका जवाब मुझे आज मिल गया ! आप सबने इसका जवाब दे दिया कि मेरा या कमल जोशी का परिवार छोटा नहीं बल्कि कितना बड़ा है! वे अक्सर मेरी जिद के आगे झुक जाते थे ! कोई नयी चीज आई तो मैं फ़ौरन लपक लेता था उन्होंने कभी विरोध नहीं किया भले ही बाद में मैं उन्हें दे देता था! अब उनके जाने के बाद लगा कि कमल जोशी भाई साहब क्या चीज थे! वे किसी भी झगडे में कभी एक का पक्ष नहीं लेते थे यह उनकी महानता थी! मैं उस व्यक्तित्व के आगे आज बहुत छोटा हूँ, क्योंकि उनके जीते-जी हम उनके हिस्से का शौर्य यश नहीं जुटा पाए! डॉ. अनिल जोशी कहते हैं कि मैंने कमल जोशी को रोते कभी नहीं देखा! उनके जीते जी मैं उनकी कई बातें ग्रहण नहीं कर पाया लेकिन अब उनके जाने के बाद लगता है कि वे खुद में क्या थे! कोटद्वार वाले मकान को हम उनकी स्मृतियों के साथ ज़िंदा रखेंगे क्योंकि उनके कोटद्वार के मित्र व आप सभी भी ऐसा ही कुछ चाहते हैं!

धाद विचारों का समूह है, संस्कृति का ध्वजारोहक है!- लोकेश नवानी 

धाद के संस्थापक लोकेश नवानी को किसी कार्यक्रम का संचालन करते हुए मैंने पहली बार देखा! उनका संचालन बेमिशाल लगा क्योंकि उस में हर तरह की विविधता थी! कभी लोकेश कमल के छायांकन पर बात करते तो कभी अपनी कविताओं में कई गंभीर मुद्दों को खड़ा कर उन्हें सामाजिक जामा पहनाते नजर आये! दरअसल संचालन कर रहे व्यक्ति पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित नहीं होता यही समाजिक रोड़ा है! लोकेश क्या कह गए यह शायद ही किसी ने गंभीरता से लिया हो लेकिन लोकेश जितनी देर सञ्चालन करते रहे हर बार कुछ नए तथ्यों को चर्चाओं में शामिल करने की पहल करते रहे और वक्ताओं को इस बात का ध्यान नहीं रहा कि उन्हें किस बात के लिए इंगित किया जा रहा है! लोकेश नवानी भरसक कोशिश करते दिखे कि इस ब्याख्यान में कमल जोशी से जुडी यादें भी आये और लोक समाज से जुड़े मुद्दों को भी साकार किया जाय!

बहरहाल खचाखच भरे इस हाल की दर्शक दीर्घा में बैठे ऐसे कई चेहरे थे जो कमल जोशी के साथ बहुत करीबी रहे हैं! अस्कोट से आराकोट तक की यात्राओं के साथी ही क्या ज्ञानेंद्र पांडे जैसे मित्र भी जो दिल्ली में उनके रूम पार्टनर हुआ करते थे! नैनीताल समाचार के राजीव लोचन शाह जिनके साथ कमल अक्सर योजनायें बनाते थे! गीता गैरोला जिनके यहाँ अक्सर चेंसू, फाणु, कापली व भात खाने कमल पहुँच जाया करते थे! पलायन एक चिंतन के रतन सिंह असवाल से लेकर तमाम ऐसे कई चेहरे थे जिनके साथ कमल की कई यात्राएं रही! जाने क्यों नहीं यहाँ मुझे अरण्य रंजन दिखे जिनके साथ अक्सर वह देहरादून, टिहरी, उत्तरकाशी की यात्राओं में दिखाई देते थे!

धाद, पहाड़, या नैनीताल समाचार अगर चाहें तो उनके मित्रों के अनुभवों पर आधारित एक ऐसी समग्र पुस्तक लोक समाज को कमल जोशी की बरसी पर लाकर दे सकती है जो बेहद अलग तरह की होगी! यकीनन गीता गैरोला के साथ धाद के महासचिव तन्मय ममगाई व धाद की हर विंग के सदस्य पदाधिकारी बधाई के पात्र हैं जिन्होंने एक छायाकार को सर माथे पर बिठाकर हमें जीने की प्रेरणा दी और यह चाहत भी कि अभी न सही मरने के बाद भी हम जीवित रहेंगे इस अमाज के बीच क्योंकि समाज आपका सटीक मूल्यांकन जीते जी न भी करे मरने के बाद अवश्य करता है! यहाँ एक बात और हुई कि कमल जोशी के नाम से आगामी समय में कुछ पुरस्कार शुरू किये जायेंगे जो यकीनन प्रशंसनीय है! गुणानंद जखमोला के ये शब्द  सार्थकता लेंगे ऐसा मेरा मानना है! “कुछ को बाजार बड़ा बनाता है और कुछ को विचार! – धाद विचारों का समूह है, संस्कृति का ध्वजारोहक है!”  उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा कि धाद के संस्थापक लोकेश नवानी ने कहा कि कुछ को बाजार बड़ा बनाता है और कुछ को विचार। धाद को विचार ने बड़ा बनाया है। धाद को बेकार की बहस में न उलझाएं। धाद के लोगों को भी चाहिए कि वे अपना कंधा इस बहस के लिए न दें।

कुम्मी घिल्डियाल ने सजाई फूलों की सेज!(ट्वीट) 

टीएचडीसी के अकाउंट अफसर कुम्मी घिल्डियाल जो अपने आप में बेहतरीन फोटोग्राफर भी हैं ने कमल जोशी की याद में अपने उद्गारों में कहा कि वे एक महान ब्यक्तित्व के धनि कमल जोशी की फोटो गैलरी को अपनी फोटो की फूलों की सेज में सजा उन्हें टिहरी से ही भावभीनी श्रधांजली अर्पित करते हैं क्योंकि उनकी हर फोटो ने उन्हें फोटो अन्गल के मापदंड सिखाये हैं और वे भरसक कोशिश करते हैं कि हर पल हर दिन उनकी फोटोज से कुछ सीख लूँ! 

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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