(मनोज इष्टवाल)
यकीन मानिए अगर किसी महिला को पूरी तरह से समझना है तो मर्दों को “हाफ वीमेन” नाटक जरुर देखना चाहिए! औरत के हर स्वरूप को बेहद बेबाकी से उसके सम्पूर्ण जीवन के परिदृश्यों को कलम के माध्यम से उकेरकर सबके समक्ष लाना या रखने की इस अद्भुत कला के लिए वसुंधरा नेगी को साधुवाद!
बतौर पटकथा लेखक, निर्देशक व वसुधा चरित्र अभिनय में वसुंधरा के तीन स्वरूपों की अगर समीक्षा करूँ तो सीधा-सीधा यह लिखूंगा कि वसुंधरा को इन तीनों चरित्र में से एक चरित्र अपने से हटा देना चाहिए! या उसे अभिनय हटा देना चाहिए या फिर निर्देशन! क्योंकि यह सम्भव नहीं हो पाता कि आप अगर डायरेक्शन कर रही हैं तो अपने अभिनय के किरदार के साथ आप इन्साफ कर रही हो!
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर दिल्ली के प्रेक्षागृह में जब “हाफ वीमेन” नाटय मंचन दृश्य पटल पर उभरा तो शुरुआती दौर से चरम की तरफ पहुँचते-पहुँचते जहाँ हाल में पिन ड्राप साईंलेंस था वहीँ पोजेज ज्यादा लम्बे होने से बिषय वस्तु भटक न जाए उसको जोड़े रखने में सूत्रधार हेम पन्त ने सुंदर स्वरूप प्रस्तुत किया!
एक ऐसी लड़की की कहानी को वसुंधरा ने अपने शब्दों में ढालकर प्रस्तुत किया जो अभी ठीक से जिन्दगी को समझ भी न पाई थी! दीदी के गुजर जाने के बाद यह लड़की वसुधा किस तरह अपनी दीदी की बेटी प्रिया की देखभाल करती है व किस तरह वसुधा व प्रिया दोस्तों की तरह बचपन को गुजारते हैं ! दृश्य पटल पर अभी समझ भी न पाए कि अचानक वसुधा के माँ पिता उन दोनों के आपसी लगाव देखते हुए वसुधा के उम्र दराज जीजा विनोद के पास वसुधा को पत्नी स्वरूप अंगीकार करने का प्रस्ताव रखते हैं , बहुत तेजी से दृश्य पटल पर उभरता है और आँखों से निकल भी जाता है!
वसुधा तब 18वें बसंत में होती है व विनोद 40 बर्ष पूरे कर लेता है! लेकिन शादी के बंधन में बंधने के बाद भी न वसुधा को यह पता रहता है कि शारीरिक सम्बन्ध ही पति-पत्नी का दर्जा दे पाता है और न विनोद ही यह साहस कर पाता है कि इस मासूम के साथ ऐसे सम्बन्ध बनाए जाने चाहिए!
नाट्य मंचन में ट्विस्ट तब आता है जब पड़ोसन डॉ. रेनू आकर वसुधा को समझाती है कि पति-पत्नी का मतलब क्या होता है! वह वसुधा के अंदर वह कामोवेश उत्पन्न करती है व जीवन का दृष्टांत देते हुए कहती है कि बिना बच्चे के एक माँ बनना या पत्नी कहलाना सम्भव नहीं है! डॉ. रेनू को जब लगता है कि वसुधा कुमार केशव जैसे लेखक के प्रति सिर्फ रुझान ही नहीं रखती बल्कि उससे दिल से प्यार भी करना शुरू कर देती है! उससे घंटो फोन पर बात करती है और उसका फोन तक रिसीव नहीं करती!
कुमार केशव वसुधा को उसकी खाली जिन्दगी भरने के लिए लिखने को प्रेरित करता है! वसुधा एक दिन सज संवरकर पति विनोद के आगे खड़ी हो जाती है व कहती है कि मुझे एक बच्चा चाहिए! विनोद भडकता है व कहता है इसका मतलब तुम्हे अब प्रिया से प्यार नहीं रहा! वसुधा ऐसे दोराहे पर खड़ी है जहाँ वह समाज की दृष्टि में पत्नी या औरत तो है लेकिन पति व उसके अभी तक पति पत्नी के सम्बन्ध हैं ही नहीं! वह केशव कुमार से प्यार तो करती है लेकिन समाज उसकी इजाजत नहीं देता! आखिर एक औरत है तो है क्या..! यह जब वह समझना शुरू कर देती है तब उसे लगता है कि एक औरत वास्तव में कितनी मजबूर है!
जब लड़कपन होता है तब माँ-बाप इसलिए उसकी शादी उसके जीजा से कर देते हैं ताकि उनके सम्बन्ध उनकी बड़ी बेटी की ससुराल से यथावत रहे! जब वह पत्नी बनती है तब पति उसकी कद्र नहीं करता! वह पढ़ना चाहती है लेकिन पति चाहता है कि वह सिर्फ घर पर ध्यान दे! घर की खिड़कियाँ बंद करके रहा करे! जब वह केशव कुमार के उपन्यासों के दृष्टांत पढ़ती हैं तो आत्ममुग्ध हो जाती है व उससे मन ही मन प्यार कर लेती है!
और जब…एक बच्चे की माँ बन जाती है तब केशव कुमार को उसके जन्मदिन पर बुलाती है व तब तक केक नहीं काटती जब तक केशव कुमार पहुँच नहीं जाता! अनजान व्यक्ति को आया देख माँ भड़कती है व बिना केक कटे ही वापस लौट जाती है! वसुधा प्रश्न करती है कि उसका क्या दोष था जो उसे लडकपन में ही अपने से भी दुगनी उम्र के ब्यक्ति के साथ इसलिए बाँध दिया जाता है ताकि पारिवारिक रिश्ते बने रहें!
बहरहाल पूरी कहानी में एक औरत की विवशता का वह मंजर साफ़ झलक रहा था जो आम ऐसे रिश्तों में होता ही है! यहाँ हाफ वीमेन का किरदार कुछ ऐसा था की किरदार में जिंदगी या किरदार ही जिंदगी। वसुधा जब एक औरत की जिन्दगी की हकीकत का दृष्टांत समुख रखती है तब पता लगता है कि इस पृथ्वी को धरा या वसुधा नाम से क्यों पुकारा जाता है! माँS शब्द छोटा है लेकिन एक औरत को माँ बने रहने के लिए क्या क्या कीमत चुकानी होती है! जब प्रश्न एक बेटी के अन्तस् से जागृत होकर समाज के आगे आते हैं तो लगता है ये शब्द नहीं बल्कि दिल चीरने वाले बाण है! यह कहानी सच उस अधूरी औरत का कडुवा सच है जिसे समाज के आगे रखा ही जाना चाहिए ताकि पुरुष समाज के साथ औरत की सबसे बड़ी दुश्मन औरत को भी यह आभास हो सके कि हाफ वीमेन है क्या?
नाटक अंत तक बांधे रखा तालियाँ भी पड़ी! वसुधा सहित हर किरदार ने दमदार अभिनय की छाप छोड़ी लेकिन मंच में voice catching माइक न होने से सिर्फ वसुधा का किरदार निभा रही इस नाटक की लेखक व निर्देशक वसुंधरा के कुछ डायलॉग पीछे प्रोपर नहीं सुनाई दिए! पूरी टीम को शुभकामनाएं